छत्रपति शिवाजी महाराज (भाग – 8)

1665 ई. में जयपुर के राजा जयसिंह कछवाहा ने पुरंदर का किला लगभग मराठों से जीत ही लिया था। इस दौरान शिवाजी महाराज ने कई बार राजा जयसिंह को पत्र लिखे, लेकिन राजा जयसिंह ने पत्रों का जवाब नहीं दिया।

20 मई को शिवाजी महाराज ने पंडित राव रघुनाथ बल्लाल को राजा जयसिंह के पास सन्धि प्रस्ताव लेकर भेजा। रघुनाथ बल्लाल ने राजा जयसिंह को एकांत में ले जाकर पूछा कि आप क्या मिलने पर सन्धि करने को तैयार होंगे ? इस पर राजा जयसिंह ने कहा कि हम चाहते हैं कि शिवाजी खुद आकर बिना किसी शर्त पर आत्मसमर्पण करे।

शिवाजी महाराज तक यह खबर पहुंची, तो उन्होंने दोबारा पुछवाया कि क्या मेरे पुत्र के आने से काम नहीं चलेगा ? तब राजा जयसिंह ने कहलवाया कि नहीं, आपको ही आना होगा। फिर शिवाजी महाराज ने कहलवाया कि राजा जयसिंह यदि धर्म की शपथ खाकर कहें कि बातचीत के बाद उन्हें सही सलामत लौटने दिया जाएगा। इस पर राजा जयसिंह ने शपथ खाई और कहा कि ऐसा ही होगा।

8 जून, 1665 ई. को रघुनाथ बल्लाल शिवाजी महाराज के पास पहुंचे। 11 जून को रघुनाथ बल्लाल ने राजा जयसिंह के पास खबर पहुंचाई कि शिवाजी महाराज 6 ब्राम्हणों के साथ यहां आ रहे हैं। राजा जयसिंह ने फ़ौरन अपने मुंशी उदयराज व उग्रसेन कछवाहा को भेजकर शिवाजी महाराज से कहलवाया कि आप अपने किलों को सौंपना चाहो तब ही राजा जयसिंह से भेंट करना, वरना यहीं से लौट जाइये।

शिवाजी महाराज ने “अच्छा, अच्छा” कहकर शिविर में की तरफ प्रस्थान किया। शिविर में प्रवेश करते ही राजा जयसिंह स्वयं उठकर आए और शिवाजी महाराज को गले लगा लिया और फिर उन्हें गद्दी पर बिठाया।

छत्रपति शिवाजी महाराज

अपना रौब दिखाने के लिए राजा जयसिंह ने इशारे से एक सैनिक टुकड़ी भेजकर पुरंदर किले के खड़काला नामक स्थान पर कब्ज़ा करके मराठों से लड़ाई की। ये लड़ाई शिविर से साफ दिखाई दे रही थी। इस लड़ाई में 80 मराठे काम आए। इस पर शिवाजी महाराज ने कहा कि आप लड़ाई बन्द कीजिये, हम पुरंदर छोड़ने को तैयार हैं।

शिवाजी महाराज ने अपने साथियों को पुरंदर का किला खाली करने का आदेश दिया, तो किले वालों ने एक दिन का समय मांगा। 11 जून, 1665 ई. को हुई पुरंदर की प्रसिद्ध सन्धि की वार्ता आधी रात तक चली। पहले तो राजा जयसिंह शिवाजी महाराज के किसी भी किले को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन काफी वार्ता करने के बाद यह सन्धि निष्कर्ष तक पहुंची।

सन्धि के अनुसार शिवाजी महाराज 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएंगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी, जबकि शिवाजी महाराज के पास बचे 12 दुर्गों से होने वाली आमदनी 1 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी महाराज को मिलेंगे, पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे।

इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी महाराज स्वयं औरंगजेब के दरबार में उपस्थित होने से मुक्त रहेंगे, पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। शम्भाजी को 5 हजारी मनसबदार बनाया गया। शम्भाजी को कम से कम 2000 घुड़सवारों समेत जब भी आवश्यकता हो, मुगलों की खिदमत में जाना होगा। शिवाजी महाराज ने मुगलों को बीजापुर के विरुद्ध सैनिक सहायता देने का वचन दिया।

राजा जयसिंह प्रथम

सन्धि के तहत शिवाजी महाराज को ये 23 दुर्ग मुगलों को देने पड़े :- वज्रगढ़, पुरन्दर, कोंडाना, रोहड़ा, लोहागढ़, ईसागढ़, टंकी, खडकवासला, टिकोना, मान्हुली, मुरन, खीर दुर्ग, भंडार दुर्ग, तुलसी खुल, नर दुर्ग, खैगढ़या अंकोला, मार्गगढ़, कोहज, बसंत, नंग, करनाल, सोनगढ़ व मानगढ़।

12 जून, 1665 ई. को पुरंदर के किले से 3000 स्त्रियां, बच्चे आदि व 4000 की शिवाजी महाराज की फौज बाहर आ गई। शिवाजी महाराज राजा जयसिंह व दिलेर खां से मिलने उनके शिविर में गए।

मआसिरे आलमगिरी में लिखा है “शिवा बिना हथियार के राजा जयसिंह के पास आया। राजा जयसिंह ने शिवा काे गले लगाया और अपने पास बिठाया। राजा ने शिवा से जान और जमीन की हिफ़ाजत का वादा किया और एक जड़ाऊ शमशीर, एक जड़ाऊ खंजर इनायत किया। राजा जयसिंह ने शिवा को दिलेर खां के पास भेजा। दिलेर खां भी इसी तरह शिवा से रुबरु हुआ”

14 जून को शिवाजी महाराज ने राजा जयसिंह को एक हाथी व एक घोड़ा भेंट किया। 18 जून को शिवाजी महाराज के पुत्र रायगढ़ किले से आकर राजा जयसिंह के शिविर में पहुंचे। इस प्रकार राजा जयसिंह ने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। निश्चित ही इस बार शिवाजी महाराज की पराजय हुई, परन्तु ये उनके संघर्ष का अंत नहीं था।

बीजापुर पर चढ़ाई हेतु शिवाजी महाराज ने मुगल सेना को सैन्य सहायता उपलब्ध करवाई, जिससे औरंगज़ेब ने खुश होकर उनके लिए 30 सितंबर को एक खिलअत व फ़रमान भेजा। राजा जयसिंह ने शिवाजी महाराज को शिविर में बुलाकर ये वस्तुएं भेंट कर दी। इसके अतिरिक्त राजा जयसिंह ने शिवाजी महाराज को अपनी तरफ से एक रत्नजड़ित तलवार व छुरा पहनाया। फिर राजा जयसिंह ने बीजापुर पर चढ़ाई करने के लिए फौज तैयार की।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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