छत्रपति शिवाजी महाराज (भाग – 5)

1660 ई. के मई माह में शाइस्ता खां ने मुगल फौज के साथ हमला कर शिवाजी महाराज से पूना नगर छीन लिया। शिवाजी महाराज ने बीजापुर से पन्हाला दुर्ग छीन लिया। पुनः सिद्दी जोहर ने 2 मार्च, 1660 ई. को 15000 की फौज लेकर पन्हाला दुर्ग को घेर लिया, शिवाजी महाराज को मुगल फौज ने चार महीने तक घेरे रखा।

अफ़ज़ल खां के बेटे फ़ज़ल खां ने अपने बाप की मौत का बदला लेने के लिए पन्हाला दुर्ग के निकट स्थित पवनगढ़ दुर्ग के निकट पहाड़ी की चोटी पर तोप लगाई और पवनगढ़ पर गोले दागने लगा। शिवाजी महाराज को लगा कि वे चारों ओर से शत्रुओं से घिर चुके हैं।

अंततः एक दिन बारिश की रात में शिवाजी महाराज वहाँ से बच निकलने के लिए चुपचाप किले से नीचे उतरे और पवनगढ़ के सामने पड़ी हुई बीजापुर की छावनी पर हमला कर दिया। इस हमले का उद्देश्य केवल अफरा-तफरी मचाना था, ताकि घेराबंदी से बचा जा सके। उसी अफरा-तफरी में शिवाजी महाराज चकमा देकर विशालगढ़ किले की तरफ चले गए।

छत्रपति शिवाजी महाराज

विशालगढ़ अभी 8 मील दूर था, कि फ़ज़ल खां मशालें लेकर सेना सहित शिवाजी महाराज के पीछे आ गया। संकट की इस घड़ी में शिवाजी महाराज के स्वामिभक्त सेनापति बाजीप्रभु देशपांडे ने दुश्मनों को रोके रखा और अंततः 700 सैनिकों सहित अपने प्राणों की आहुति दी।

जिस घाटी में ये लड़ाई हुई, वहां बीजापुरी फ़ौज ने कब्जा कर लिया। जौहर ने 22 सितंबर को पन्हाला दुर्ग मराठों से छीनकर सुल्तान के हवाले कर दिया। इस प्रकार शिवाजी महाराज के राज्य के दक्षिणी हिस्से में बीजापुरी फ़ौज का प्रभाव होने लगा।

लेकिन इस बार मुसीबत केवल दक्षिण में ही नहीं थी। शिवाजी महाराज के राज्य के उत्तरी भाग में स्थित चाकन के प्रसिद्ध किले की बुर्ज़ों को मुगल सेनापति शाइस्ता खां ने सुरंग खोदकर बारूद भरवाकर उड़ा दी। यह किला मराठों से छीन लिया गया। इस लड़ाई में 268 मुगल मारे गए।

चाकन के किलेदार फिरंगोजी नरसाळा को शिवाजी महाराज ने चाकण पर तैनात किया था। शाइस्ता खां ने चाकण पर अधिकार कर लिया व फिरंगोजी नरसाळा को धन देकर अपनी तरफ मिलाने की कोशिश की, पर उन्होंने मना कर दिया। हालांकि बाद में शाइस्ता खां ने फिरंगोजी नरसाळा को शिवाजी महाराज के पास जाने दिया।

इस समय तक औरंगज़ेब अपने भाइयों को पछाड़ चुका था और हिन्द में उसका प्रभाव ग़ालिब हो गया। 1661 ई. में उत्तरी कोंकण जीतने के लिए कारेतलब खां को फ़ौज सहित भेजा गया। वह एक पहाड़ी जंगल में भटक गया, जहां उस तक शिवाजी महाराज ने रसद व पानी नहीं पहुंचने दिया। जब शिवाजी महाराज ने उसकी फ़ौज को घेर लिया, तो उसने आत्मसमपर्ण कर दिया और 3 फरवरी 1661 ई. को प्राणों की भिक्षा लेकर लौट गया।

शिवाजी महाराज ने फ़ौज सहित कूच किया और दक्षिण कोंकण पर का क्षेत्र बीजापुर वालों से छीन लिया। शिवाजी महाराज ने जंजीरा से खारेपटन तक पश्चिम समुद्र के इलाकों पर अधिकार कर लिया। फिर शिवाजी महाराज ने श्रृंगारपुर पर भी अधिकार कर लिया।

इन्हीं दिनों मुगलों ने उत्तरी कोंकण में स्थित कल्याणशहर पर कब्ज़ा कर लिया। 1661 से 1663 ई. तक मराठों व मुगलों में लड़ाइयां होती रहीं, जिनका कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। मुगल सेना अब भी पांव जमाए हुए थी।

शाइस्ता खां पर शिवाजी महाराज का हमला :- 5 अप्रैल, 1663 ई. को शाइस्ता खां अपने हरम व शाही फौज के साथ पूना के उसी लाल महल में था, जिसमें बाल शिवाजी का बचपन बिता था। शिवाजी महाराज ने रात्रि के समय हमला करने का फैसला किया।

शिवाजी महाराज ने 1000 मराठा बहादुरों को अपने साथ लिया और अपने पीछे 1-1 हजार की 2 फौजें नेताजी पालकर व मोरोपन्त पेशवा के नेतृत्व में लीं। सबसे पहले शिवाजी महाराज ने एक नकली शादी के बहाने से बाराती बनकर मराठों के साथ पूना नगर में प्रवेश किया।

शिवाजी महाराज ने पूना में अपना बचपन बिताया था, इसलिए वे इस जगह से अच्छी तरह वाकिफ थे। शाइस्ता खां के महल में जश्न चल रहा था व बहुत से मुगल सो गए थे। शिवाजी महाराज ने 400 मराठों व अपने 2 अंगरक्षकों बाबाजी बापूजी व चिमनाजी बापूजी के साथ महल में प्रवेश किया।

चिमनाजी ने 200 मराठों के साथ हरम में व शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खां के कमरे में प्रवेश किया। 2 मराठे अन्धेरे में पानी के एक तालाब में गिर गए। शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खां की 4 अंगुलियाँ काट दीं।

शाइस्ता खां की उंगलियां काटते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज

बाबाजी बापूजी ने 200 मराठों के साथ जो सामने आया उसका कत्ल कर दिया व कमरों में घुस-घुसकर सोते हुए मुगलों का भी कत्ल कर दिया। इस अफरातफरी में हरम की 8 औरतें जख्मी हुईं, शाइस्ता खां का बेटा अबुल फतह कत्ल हुआ, 2 बेटे जख्मी हुए, शाइस्ता खां के 40 आदमी और 6 दासियाँ कत्ल हुईं।

6 मराठे इस लड़ाई में काम आए और 40 जख्मी हुए। खजाइनुलफुतुह में खफी खां लिखता है “मेरा बाप उस वक्त शाइस्ता खां के पास मौजूद था। इस फसाद के होने से बादशाह आलमगीर ने नाराज होकर शाइस्ता खां को बंगाले की सूबेदारी पर भेज दिया और दक्षिण की सूबेदारी शहजादे मुअज्जम को देकर उस तरफ भेजा”

अफ़ज़ल खां के वध के बाद औरंगज़ेब के मामा शाइस्ता खां जैसे बड़े ओहदे वाले सिपहसालार की ऐसी दुर्दशा करके शिवाजी महाराज ने हिंदुस्तान भर में वाहवाही लूटी।मआसिरे आलमगिरी में लिखा है “इन दिनों एक वाकिया ये हुआ कि शिवा ने रात में अचानक अमीर उल उमरा शाइस्ता खां पर हमला कर उसकी 4 अंगुलियाँ काट दीं”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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