छत्रपति शिवाजी महाराज (भाग – 3)

जावली दुर्ग पर शिवाजी महाराज का अधिकार :- जावली दुर्ग पर चन्द्रराव मोरे का अधिकार था। मूल नाम यशवंत मोरे था, चन्द्रराव पदवी थी। मावलों के सारे मुखियों को अपने साथ लेने के शिवाजी महाराज के प्रयत्नों के बीच चन्द्रराव मोरे दीवार बनकर खड़ा था। आदिलशाही सूबेदार के साथ मिलकर चन्द्रराव मोरे ने शिवाजी महाराज के विरुद्ध एक दल भी बनाया था।

शिवाजी महाराज ने रघुनाथ बल्लाल कोरडे को जावली दुर्ग में भेजा। रघुनाथ बल्लाल 1 दिन दुर्ग में रुके और अगले दिन खंजर से चन्द्रराव मोरे की हत्या कर दी व उसके भाई सूर्य राव को जख्मी कर दिया। शम्भुजी कावजी ने सूर्य राव का कत्ल कर दिया।

चन्द्रराव मोरे की हत्या की खबर सुनते ही शिवाजी महाराज ने फौज समेत जावली दुर्ग पर हमला कर दिया। जावली पर हमले के समय शिवाजी महाराज की कुल फौज 60,000 बताई जाती है, जबकि कुछ इतिहासकार इससे कम फौज होना बयान करते हैं। बिना किसी नेतृत्व के किले वाले 12000 पैदल सैनिक 6 घंटे तक बहादुरी से लड़े, पर अंत में 15 जनवरी, 1656 ई. को किला खाली कर दिया।

चन्द्रराव मोरे के 2 बेटों समेत पूरे परिवार को बन्दी बना लिया गया। चन्द्रराव मोरे का खास सिपहसालार हनुमन्त राव मोरे बच निकला। हनुमन्त राव मोरे को मारना जरुरी समझकर शिवाजी महाराज ने इसी वर्ष अक्टूबर माह में शम्भुजी कावजी के ज़रिए उसकी हत्या करवा दी।

इस तरह जावली दुर्ग पर शिवाजी महाराज का कब्जा हुआ। शिवाजी महाराज द्वारा ऐसा रवैया अपनाने की वजह ये थी कि चन्द्रराव मोरे ने बीजापुर सुल्तान के साथ मिलकर शिवाजी महाराज को बन्दी बनाने की भरपूर नाकाम कोशिशें की थीं।

जावली दुर्ग के समीप ही शिवाजी महाराज ने एक और दुर्ग बनवाया, जिसे प्रतापगढ़ नाम दिया। यहीं माँ भवानी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई, जो कि उनकी इष्टदेवी हुईं। अप्रैल, 1656 ई. में शिवाजी महाराज ने रायगढ़ नामक एक बड़ा किला मोरे से छीन लिया। यही बाद में उनकी राजधानी हुई।

छत्रपति शिवाजी महाराज

24 सितंबर, 1656 ई. को शिवाजी महाराज ने अपने सौतेले मामा शम्भुजी मोहिते के पास दशहरे की भेंट के बहाने जाकर उनको अकस्मात कैद कर लिया। शाहजी की आज्ञानुसार शंभुजी सुपे परगने के हाकिम थे। उन्होंने शिवाजी महाराज के अधीन कार्य करने से मना कर दिया था, इसलिए शिवाजी महाराज ने उनको अपने पिता के पास भेजकर सुपे पर अधिकार कर लिया।

शिवाजी महाराज श्रृंगारपुर पहुंचे। श्रृंगारपुर पर सूर्वे का अधिकार था, लेकिन इस वक्त ये सूर्वे के मंत्री शिरके के अधीन था। सूर्वे भाग निकला और शिरके ने शिवाजी महाराज की अधीनता स्वीकार की।

1656 ई. के जनवरी माह में शिवाजी महाराज का विवाह सकवरबाई गायकवाड़ से हुआ। सकवरबाई जी की एक पुत्री हुई। इसी वर्ष 4 नवम्बर को मुहम्मद आदिलशाह की मृत्यु हो गई और बीजापुर की गद्दी पर एक नौसिखिया अली आदिलशाह बैठा। शिवाजी महाराज ने इस मौके का फायदा उठाते हुए मुगल इलाकों को लूटने का इरादा किया।

मुगल शहज़ादा औरंगज़ेब उन दिनों दक्षिण में था। औरंगज़ेब ने बीजापुर पर कब्ज़ा करने का उचित मौका जानकर शिवाजी महाराज सहित आसपास के जागीरदारों को अपने पास मदद के लिए बुलाया। शिवाजी महाराज ने सोनाजी पंडित को औरंगज़ेब के शिविर में भेजा। कुछ दिन बाद शिवाजी महाराज ने सोनाजी को वापिस बुला लिया और तय किया कि वे मुगलों का साथ देने के बजाय मुगल प्रदेशों पर ही आक्रमण करेंगे।

1657 ई. में शिवाजी महाराज ने अपनी पुत्री सखुबाई जी का विवाह महादजी नाइक निम्बालकर से करवा दिया। इस वर्ष मार्च माह में शिवाजी महाराज ने काशी जी व मीनाजी भोसला को 3000 घुड़सवारों समेत भेजकर चमारगुण्डा, रायसीन आदि मुगल क्षेत्रों को लूट लिया।

शिवाजी महाराज ने जुन्नर नगर के पहरेदारों को मारकर नगर की दीवारें रस्सी के सहारे फांदकर 3 लाख हूण, 200 घोड़े व बहुत से जेवर लूट लिए। इस वर्ष 14 मई को पुरन्दर दुर्ग में शिवाजी महाराज व सईबाई निम्बालकर के पुत्र सम्भाजी राजे भोसले का जन्म हुआ।

छत्रपति शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज की मुगलों से पहली बड़ी मुठभेड़ :- मुगल बादशाह शाहजहां के बेटे शहजादे औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के खिलाफ फौजी टुकड़ी भेजी। उसने नासिरी खां, इराज खां, शाइस्ता खां, राव कर्ण आदि को कुल 3000 घुड़सवारों की फौज समेत भेजा।

इसी वर्ष 28 अप्रैल को मुल्तफत खां ने चमारगुण्डा में मीनाजी भोसला को पराजित कर दिया। कुछ दिन की मशक्कत के बाद मुल्तफत खां और मिर्जा खां ने चमारगुण्डा में पूरी तरह से फतह हासिल कर ली। शाइस्ता खां और राव कर्ण को शिवाजी महाराज को पकड़ने के लिए जुन्नार की तरफ भेजा गया।

शिवाजी महाराज जुन्नार छोड़कर निकल गए और मुगलों की पकड़ में नहीं आए। शिवाजी महाराज ने अहमदनगर पहुंचकर वहां लूटमार शुरु कर दी। आखिरकार नासिरी खां शिवाजी महाराज तक पहुंचने में सफल रहा।

यहाँ दोनों पक्षों में लड़ाई हुई, जिसमें कईं योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की। हालांकि शिवाजी महाराज फिर बच निकलने में सफल हुए। औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के मुल्क में कत्लेआम का हुक्म दिया, जिससे कई घरों को लूट लिया गया व कई आम लोग कत्ल हुए।

औरंगजेब ने कर तलब खां, अब्दुल मुनीम, नासिरी खां व राव कर्ण को शिवाजी के खिलाफ अलग-अलग जगह तैनात किया। ये सिपहसालार कुछ हद तक कामयाब रहे। शिवाजी महाराज ने अपने किसी मराठा सिपहसालार को अहमदनगर का किला लूटने भेजा, जो कि वहाँ के किलेदार मुल्तफत खां से पराजित हुआ। इस वर्ष जून, जुलाई व अगस्त में मराठों और मुगलों के बीच जगह-जगह मुठभेड़ हुई।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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