मचीन्द :- हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ और गोगुन्दा से लगभग 12-14 मील की समान दूरी पर मचीन्द गांव है। यहां महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया एक पहाड़ी दुर्ग है। यहां एक गुफा व एक कुंआ भी है। पहाड़ी की चोटी से 10-15 मील तक का दृश्य देखा जा सकता है।
इस गांव को कुंवर अमरसिंह का जन्म स्थान बताया जाता है, हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यहां एक काफी लम्बी गुफा है, जो महाराणा प्रताप संकट के समय एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए प्रयोग करते थे।
रोहिड़ा :- मचीन्द से 4 मील दूर एक पहाड़ी की तलहटी में रोहिड़ा गांव बसा है। गांव के पास ही एक नाला है। यहां एक पहाड़ी पर खंडहर हैं, जो पहले महाराणा प्रताप के महल हुआ करते थे। यहां महाराणा प्रताप कुछ दिन ठहरे थे।
रोहेड़ा व आहोर के महल :- रणकपुर और ढोलाण के बीच में रोहेड़ा गांव में महाराणा प्रताप के महल हैं। मोगार क्षेत्र के आहोर गांव में भी महाराणा प्रताप ने इसी तरह के महल बनवाए। मेवाड़ के महाराणा जिन मकानों में रहते, वही महल हो जाता है, अन्यथा ये निवास स्थान बहुत ही सादे थे।
जावर :- जावर में चांदी की खानें हैं, जो उदयपुर-ऋषभदेव मार्ग पर स्थित हैं। खानों में से माल निकलने के बाद यहां एक गुफा बन गई, जिसे जावरमाला की गुफा कहते हैं। यहां महाराणा प्रताप कुछ समय रहे थे। इस गुफा का मुंह पूर्व की ओर है। अंदर जाने के लिए सीढ़ियों जैसी जगह से नीचे उतरना पड़ता है। नीचे एक चौड़ी जगह है, जहां 200 लोग बैठ सकते हैं। जावर में महाराणा प्रताप व अकबर की सैनिक टुकड़ियों में कई बार मुठभेड़ हुई थी। मुगलों ने जब यहां सैनिक चौकी बिठाई थी, तब महाराणा प्रताप ने स्वयं अपने नेतृत्व में वह मुगल चौकी हटाई थी।
मायरा की गुफा :- यह गुफा उदयपुर से लगभग 30 किमी. दूर गोगुन्दा के मोड़ी गांव के निकट स्थित है। यहां से हल्दीघाटी 6 मील की दूरी पर है। इस गुफा में प्रवेश के 3 मार्ग हैं। इस गुफा की खासियत ये है कि बाहर से देखने पर लगता है जैसे अन्दर कोई रास्ता नहीं है, पर जैसे-जैसे अन्दर जाते हैं रास्ता निकलता जाता है। गुफा में माँ हिंगलाज का प्राचीन स्थान है। यहां वो स्थान भी है जहां स्वामिभक्त चेतक को बांधा जाता था। यहां महाराणा प्रताप का रसोईघर भी है।
इस गुफा की पहाड़ी के शिखर से 10-12 मील दूर खड़ा व्यक्ति दिखाई दे जाता था, पर 10-12 कदम दूर खड़ा व्यक्ति भी इस गुफा को नहीं देख पाता। इस गुफा के निकट एक नाला है जो वर्ष भर बहता रहता है। महाराणा प्रताप ने इस स्थान को शस्त्रागार बनाया था। मुगल फौज ने गोगुन्दा पर 5-6 बार कब्ज़ा किया, परन्तु गोगुन्दा के निकट स्थित इस गुफा तक कभी नहीं पहुंच पाए। कहा जाता है कि संघर्ष के दिनों में कई बार महाराणा प्रताप यहां रहते थे।
राणा गांव :- यह गांव गोगुन्दा के दक्षिण में लगभग एक मील दूर पठारी मैदान में स्थित है। इस गांव में एक और मील दक्षिण में थोलिया पहाड़ की तलहटी में कुछ खंडहर हैं, जिन्हें राणा महल, राणीकोट, राणा उमर, राणा बाव आदि नामों से जाना जाता है। इन खंडहरों के उत्तर में माल नामक मैदान है। थोलिया का जंगल बहुत घना है, जहां जंगली जानवरों की अधिकता है। इस गांव का नाम महाराणा प्रताप के नाम पर ही पड़ा और यह प्रसिद्ध है कि महाराणा प्रताप ने कुछ समय यहां के महलों में बिताया।
चोर बावड़ी गांव :- उदयपुर-गोगुन्दा के बीच स्थित इस गांव का निर्माण जसवन्त सिंह देवड़ा ने किया। ये महाराणा प्रताप का साथ देने सिरोही से मेवाड़ आए थे। महाराणा ने इस गांव में कुछ समय बिताया और यहां एक बावड़ी बनवाई। इस बावड़ी को दासियों को समर्पित करते हुए इसका नाम “दासियों की बावड़ी” रखा गया।
बदराणा :- यह गांव कमलनाथ-आवरगढ़ से 10 मील उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस गांव का नाम महाराणा प्रताप ने झाला मान, जिन्हें झाला बींदा भी कहा जाता है, उनकी याद में बिदराणा रखा, जो कालान्तर में बदराणा हो गया। इस गांव में महाराणा प्रताप ने हरिहर मन्दिर का निर्माण करवाया। बाद में महाराणा राजसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
उभयेश्वर महादेव मन्दिर :- उदयपुर से 16 मील पश्चिम में उभयेश्वर नामक स्थान है, जहां चारों ओर घना जंगल है। यहां महादेव जी का मंदिर है। मुगलों के आक्रमण से मंदिर की मूर्ति के 2 खंड हो गए हैं। पास ही पानी का एक कुंड है। इस मंदिर से ढलान की ओर जो खंडहर हैं, वो महाराणा प्रताप के महल थे।
गोगुन्दा :- गोगुन्दा में महाराणा प्रताप कुछ वर्षों तक रहे। यह महाराणा प्रताप के शासन की शुरुआती राजधानी रही थी। यहां कई बार मुगलों ने अधिकार किया व उतनी ही बार महाराणा प्रताप ने शाही फौज को शिकस्त दी। यहां महाराणा उदयसिंह का देहान्त हुआ।
यहां स्थित महादेव जी की बावड़ी के किनारे स्थित एक छतरी में महाराणा प्रताप का राजतिलक हुआ, यह छतरी आज भी मौजूद है। यह वह स्थान है, जहां महाराणा प्रताप को अनुभव किया जा सकता है। गोगुन्दा में उस समयकाल में महाराणा प्रताप ने कई बाग-बगीचे बनवाये थे, जिनकी खूबसूरती की प्रशंसा मुगल लेखकों ने भी की है।
महाराणा प्रताप से सम्बंधित स्थान चावंड, आवरगढ़, कोल्यारी, हल्दीघाटी, दिवेर आदि के बारे में पिछले भागों में विस्तार से जानकारी दे दी गई है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में महाराणा प्रताप 1552 से 1567 ई. तक रहे। कुम्भलगढ़ दुर्ग महाराणा प्रताप का जन्म स्थान है।
महाराणा प्रताप से सम्बंधित अन्य स्थान :- राणा खेत, राणा कड़ा, राणा गुफा, राणा का ढाणा, गौरी धाम, पंच महुआ, जोगमंडी, भीमगढ़, गोकुलगढ़, हाथीभाटा, कमेरी, घोड़ाघाटी, मोही, मदारिया, रामा, लोसिंग आदि।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
hkm Chetak to haldi gati ke yuďh me mar gaya tha.or mayra ki gufa vagera me maharana pratap haldi gati ke yuddh ke bad mayra gufa me aaye the.to udar chetak kha se bandhte the