वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 83)

1583 ई. में महाराणा प्रताप का छापामार युद्धों में साथ देने वाले बेदला के बलभद्र सिंह चौहान का देहान्त हो गया। ये महाराणा प्रताप की एक रानी के भाई थे। 1584 ई. में महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी युद्ध व छापामार युद्धों में साथ देने वाले जवास के रावत बाघ सिंह का देहान्त हो गया। रावत चन्द्रभान जवास के शासक बने व महाराणा प्रताप का साथ दिया।

इसी वर्ष महाराणा प्रताप के पौत्र व कुंवर अमरसिंह के पुत्र भंवर कर्ण सिंह का जन्म हुआ। घनघोर संघर्ष के इस युग में महाराणा प्रताप अपने पौत्र के जन्म से अत्यंत प्रसन्न हुए। भंवर कर्ण सिंह का जन्म ही मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्र में हुआ, इसलिए वे उस ज़माने के राजा-महाराजाओं की शान-ओ-शौकत से अनजान थे।

महाराणा प्रताप दिवेर, कुम्भलगढ़, मांडल जैसे बड़े क्षेत्रों पर मुगलों को परास्त कर चुके थे। अब महाराणा प्रताप मांडलगढ़ और चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आसपास की समतल भूमि पर तैनात मुगलों पर भी आक्रमण करने लगे।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर के सेनापति जगन्नाथ कछवाहा का मेवाड़ अभियान :- अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है कि “राणा की हरकतें बड़ी खतरनाक होती जा रही थीं। ख़बर आई कि राणा पहाड़ी की घाटियों में से निकल आया है और उसने फिर से कलह करना शुरु कर दिया है। वह कमजोरों पर जुल्म कर रहा था। शरारतियों को सज़ा देना खुदा की इबादत है, इस खातिर आमेर के जगन्नाथ कछवाहा को मुगल फौज की कमान और अजमेर का सूबा सौंपकर राणा को खदेड़ने भेजा गया। जफ़र बेग को बख्शी बनाया गया।”

कमज़ोरों पर ज़ुल्म करने से अबुल फ़ज़ल का आशय मुगल थानों पर हमला करने से है। उसके अनुसार महाराणा प्रताप ने उन मुगल थानों पर आक्रमण किया, जो कमजोर थे, लेकिन अबुल फ़ज़ल का झूठ यहां भी पकड़ा गया, क्योंकि दिवेर, कुम्भलगढ़ और मांडल मेवाड़ में तैनात सभी मुगल थानों में सबसे बड़े मुगल थाने थे।

जगन्नाथ कछवाहा का परिचय :- ये आमेर के राजा भारमल के पुत्र व राजा मानसिंह के काका थे। हल्दीघाटी युद्ध में राजा रामशाह तोमर व बदनोर के रामदास राठौड़ जगन्नाथ कछवाहा के हाथों ही वीरगति को प्राप्त हुए थे। हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर ने जगन्नाथ कछवाहा को महाराणा प्रताप के विरुद्ध कई महीनों तक मांडल के थाने पर तैनात रखा था।

5 दिसम्बर, 1584 ई. को जगन्नाथ कछवाहा ने हजारों की मुगल फौज के साथ राजधानी से प्रस्थान किया। अकबर ने जगन्नाथ कछवाहा को अजमेर का सूबेदार भी नियुक्त किया था, इसलिए वे सबसे पहले अजमेर में कुछ दिन रुके और उसके बाद सेना सहित मेवाड़ में प्रवेश किया। जगन्नाथ कछवाहा के साथ आने वाले प्रमुख मुगल सिपहसालार :- सैयद राजू, मिर्जा जफ़र बेग, वज़ीर ज़मील, सैफ उल्लाह, मुहम्मद खां, जान मुहम्मद, शेर बिहारी आदि।

इन सिपहसालारों में शामिल सैयद राजू वही है, जो हल्दीघाटी युद्ध की हरावल में रहकर लड़ा था और घोड़े से गिर पड़ा था। अकबर ने इस अभियान में जगन्नाथ कछवाहा को सेनापति बनाया और मिर्जा जफ़र बेग को बख्शी बनाया। बख्शी वह व्यक्ति होता था, जो सेना को वेतन देता था।

जगन्नाथ कछवाहा

जगन्नाथ कछवाहा ने भीलवाड़ा में स्थित मांडलगढ़ दुर्ग में प्रवेश किया। जगन्नाथ कछवाहा ने मांडलगढ़ में कुछ दिन ठहरकर सैन्य संचालन पर ध्यान दिया और योजनाएं बनाई। फिर जगन्नाथ कछवाहा ने मांडलगढ़ दुर्ग सैयद राजू को सौंप दिया और खुद सेना सहित महाराणा प्रताप की खोज में लग गए।

बाद में जगन्नाथ कछवाहा ने मोही व मदारिया पर भी कब्जा कर लिया। इस प्रकार मोही व मदारिया के क्षेत्र, जिन पर महाराणा प्रताप ने मुगलों को परास्त कर अधिकार किया था, वहां पुनः मुगलों का कब्ज़ा हो गया।

जगन्नाथ कछवाहा ने महाराणा प्रताप के निवास स्थान पर हमला किया, तो महाराणा प्रताप वो जगह छोड़कर निकले और बेहतरीन छापामार प्रणाली अपनाते हुए दूसरी पहाड़ी से निकलकर हजारों की मुगल फौज पर अचानक आक्रमण कर दिया, जिससे जगन्नाथ कछवाहा बचने में कामयाब रहे, पर मुगल फौज को भारी क्षति हुई।

इस घटना को अबुल फजल कुछ इस तरह लिखता है कि :- “जगन्नाथ कछवाहा ने राणा के डेरे पर हमला किया, पर राणा अपने एक खैरख्वाह के इशारे से बचकर निकल गया। लगा जैसे राणा भाग गया, पर उसने अचानक दूसरी तरफ से पहाड़ियों से निकलकर शाही फौज पर जोरदार हमला किया, जिससे शाही फौज में हडकम्प मच गया। राणा हमला करने के बाद फिर पहाड़ियों में चला गया। इस तरह शाही फौज को यहां कोई जीत नसीब नहीं हुई।”

महाराणा प्रताप की इस प्रकार की छापामार युद्ध पद्धति ने मुगल सेना को झकझोर कर रख दिया। मुगल सेना फिर भी मेवाड़ के पहाड़ों में टिकी रही, लेकिन जगन्नाथ कछवाहा को सुरक्षा व्यवस्था और अधिक दृढ़ करनी पड़ी, क्योंकि वे जानते थे कि इन घाटियों में महाराणा प्रताप से दोबारा सामना अवश्य होगा। जगन्नाथ कछवाहा ने अनावश्यक थानों पर तैनात मुगल फ़ौजी टुकड़ियों को भी एकत्र किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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