1567 ई. को “अकबर के सिपहसालार जिन्होंने चित्तौड़ के खिलाफ इस युद्ध में भाग लिया” :- हुसैन कुली खान, वज़ीर खान, आसफ खान, राजा टोडरमल, गाजी खान बदख्शी, अब्दुल्ला खान, राजा भगवानदास कछवाहा (आमेर), मेहतर खान, मुनीम खान, अजमत खान, शुजात खान, जमालुद्दीन, मीरमर ओबर, कासिम खान, जान बेग, यार बेग, सैयद जमालुद्दीन, मुहम्मदशाह, मुहम्मद अमीन, मिर्जा बलूच बेग, मीरक बहादुर, मुजफ्फर खान, खान आलम, कबीर खान, याजदां कुली, राव परवतदास, मुहम्मद सालिह हयात, इख्तियार खान, काजी अली बगदादी, हसन खान चगताई, शाह अली एशक आगा, जर्द अली तुवाकी, आदिल खां व अन्य।
“मुगल फौज का सैन्यबल” :- 80000 सैनिक, 10-12000 नौकर-चाकर, 80 तोपें, 800 बन्दूकें, 95 घूमने वाली बन्दूकें, 5000 हाथी (अकबर ने हथियारों से युक्त एक हाथी की तुलना 500 घुड़सवारों से की। अकबर के अनुसार यदि उस हाथी पर योग्य महावत सवार हो तो एक हाथी 1000 घुड़सवारों के बराबर होता है)
“दोनों तरफ से पुरज़ोर लड़ाई” :- अकबर ने 3 तरफ़ तोपखाने लगवाए थे :- उत्तर में लाखोटा दरवाज़े के सामने, पूर्व में सूरजपोल के सामने और दक्षिण में चित्तौड़ी बुर्ज़ के सामने। तीनों ही तोपखानों से तोपों के बड़े-बड़े गोले दागे गए।
“मोहर मगरी का निर्माण” :- अकबर को तोपें चलाने के लिए मीनार या बुर्ज की आवश्यकता थी, तो उसने चित्तौड़ी बुर्ज़ के नीचे की तरफ़ एक रेत की मगरी बनवाने का निश्चय किया। लेकिन जो भी मज़दूर रेत लेकर आता, वह किले में तैनात राजपूतों के तीर के निशाने पर होता था। इस भय के कारण मज़दूर पीछे हटने लगे। अकबर ने मज़दूरों को लालच दिया कि जो भी इस मगरी को बनाने के लिए एक टोकरी मिट्टी डालेगा, उसे चांदी की बजाय सोने की मुद्रा दी जाएगी, इसीलिए इस मगरी का नाम “मोहर मगरी” पड़ा। (कुछ वर्ष पहले पुरातत्व विभाग को इस मोहर मगरी पर अकबर के सोने के सिक्के मिले थे। जो मज़दूर राजपूतों के तीरों से मारे गए थे, ये मुद्राएं उन्हीं मज़दूरों की थी)। यहीं अकबर ने 2 बड़ी दीवारें बनवाई, जिनमें खिड़कियां रखी गई थीं। अधिक ऊंचाई के कारण इन खिड़कियों से दागी गई गोलियां किले तक पहुंचती थीं।
17 दिसम्बर, 1567 ई. को “500 मुग़लों के चिथड़े उड़ना” :- अकबर ने 3 सुरंगें बनवाई थीं, जिनमें से 2 सुरंगों में 120 मन व 80 मन बारूद भरवाया गया था। अकबर ने इन दोनों सुरंगों में एक साथ विस्फोट करने की आज्ञा दी, लेकिन ये विस्फोट ठीक तरह से नहीं हुआ। बादशाही सैनिकों ने बारुद से तैयार एक सुरंग उड़ा दी, जिससे दीवार के पास खड़े 50 राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए। इस विस्फोट से बहुत दूर-दूर तक पत्थर गिरे थे। धमाके की आवाज़ 50 कोस तक सुनाई दी। मुगलों ने देखा कि दीवार टूटने से किले में दाखिल होने का रास्ता निकल गया होगा। ये सोचकर भारी संख्या में मुगल उस तरफ दौड़े, पर तभी अचानक दूसरी सुरंग में भी विस्फोट हो गया, जिससे लगभग 300 पैदल व 200 घुड़सवार समेत कुल 500 मुगल मारे गए। इन 500 में से 20 अकबर के सिपहसलार थे। बहुत से मुगल पत्थरों के नीचे कुचले गए। अत्यधिक धुंए और धूल के कारण बहुतों की आंखें खराब हो गईं।
“अकबर के वे खास सिपहसालार, जो बारुद के फटने से मारे गए” :- सैयद जमालुद्दीन, मुहम्मदशाह, मुहम्मद अमीन, मिर्जा बलूच बेग, जान बेग, यार बेग, याजदां कुली, मुहम्मद सालिह हयात, हयात सुल्तान, शाह अली एशाक आका, मीरक बहादुर, शेरबाग येसवाल के भाई व अन्य। इस घटना ने अकबर समेत उसके सारे सिपहसलारों और सैनिकों को झकझोर कर रख दिया, लेकिन फिर भी अकबर ने संभलकर अपने सब सैनिकों में उत्साह भर दिया और उन्हें फिर से चित्तौड़गढ़ पर हमला करने के लिए प्रेरित किया।
1568 ई. को “खान आलम को गोली लगना” :- राजपूतों की बन्दूक से निकली एक गोली अकबर के ठीक पास में खड़े खान आलम को लगी। अबुल फजल इस घटना पर करामाती बात लिखता है कि “किलेवालों की एक गोली शहंशाह के करीब खड़े खान आलम को लगी, पर शहंशाह के रहमोकरम से वह गोली खान आलम के ज़िरहबख्तर में ही अटक गई और खान आलम के पसीने से गोली ठण्डी हो गई”।
“तीसरी सुरंग में विस्फ़ोट” :- बीकाखोह व मोहर मगरी की तरफ आसफ खान के नेतृत्व में बन चुकी तीसरी सुरंग में विस्फोट किया गया, पर विस्फोट ठीक से नहीं हुआ और केवल 30 राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए। तीनों सुरंगों में विस्फोट से किले वालों को तो ज्यादा फर्क न पड़ा, पर बादशाही फौज का ज्यादा नुकसान हुआ। लेकिन फिर भी अकबर जानता था कि किला फतह होगा, तो बारुद से ही होगा। पहली सुरंग में विस्फोट से चित्तौड़ी बुर्ज़ पर खड़े 50 राजपूत काम आए थे, उस समय यह बुर्ज़ पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी। लेकिन राजपूतों ने एक ही रात में यह बुर्ज़ फिर से बनवा दी। इस तरह जहां-जहां भी किले को क्षति पहुंचती, एक ही रात में उसकी मरम्मत करवा दी जाती।
“अकबर द्वारा इस्माइल खां को गोली मारना” :- एक दिन अकबर चकिया नाम के हाथी पर बैठकर किले के इर्द-गिर्द घूम-फिरकर मोर्चाबन्दी का जायज़ा लेता हुआ लाखोटा दरवाजे के करीब पहुंचा। एक गोली बादशाही सिपहसालार जलाल खां के कान के पास से गुजरी, तब सब मुगलों ने बादशाह से कहा कि “हुज़ूर, इस बन्दूकची ने हमारे बहुत से आदमी मारे हैं”। ये बन्दूकची 1000 अफगानों के सरदार इस्माइल खां थे।
अकबर ने अपनी बन्दूक से गोली दागी, जिससे इस्माइल खां शहीद हुए। आधी रात को भी मुगल सिपाही किले की दरारों से भीतर प्रवेश करने के प्रयास करते थे, लेकिन राजपूतों द्वारा मारे जाते। अकबर ने अपने सिपाहियों में ऐसा जोश भर दिया कि वे जंग के आखिरी दिनों में भूखे रहकर ही लड़ते रहे। किले पर चढने वाले बादशाही सैनिकों पर किले वालों ने उबलता तेल, जलते हुए कपड़े, बड़े-बड़े पत्थर फेंककर भी लड़ाई जारी रखी।
“फ़ैज़ी व अकबर की मुलाकात” :- चित्तौड़ की घेराबन्दी के दौरान ही अबुल फजल का भाई फैजी अकबर के सामने पहली बार हाजिर हुआ था। दरअसल वहां अकबर की कड़ी सुरक्षा की गई थी, जिसके तहत उसके सामने जालीदार चद्दर लगा रखा था। फैजी जब अकबर से मिला, तब उसे जालीदार चद्दर के बाहर रहकर ही बात करनी पड़ी, उस समय फैजी के मुंह से निकल पड़ा “बादशाह पिंजरे के अन्दर हैं, मज़ा नहीं आ रहा”। चित्तौड़ का ये घेरा 123 दिन (4 माह) तक चला।
* अगले भाग में अकबर द्वारा वीर जयमल राठौड़ को गोली मारने व चित्तौड़ के तीसरे जौहर के बारे में लिखा जाएगा
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
सभी वीरो को नमन
जय मेवाड़
जय मेवाड़ की सेना
Very nice effort
Author
Thanks hardik
वीर गाथा बहुत ही सुन्दर ढंग से लिख रहे है आप आने वाली पिढी को प्रेरणा मिलेगी
Author
धन्यवाद सा
20 bhag kaha he
Author
आज शाम को पोस्ट होगा
बहुत ही सुन्दर हुकम।
सभी मेवाङी वीरों को कोटि कोटि नमन