मेवाड़ महाराणा उदयसिंह (भाग – 13)

1561 ई.

“बाज बहादुर मेवाड़ की शरण में”

मालवा के अंतिम स्वतंत्र शासक बाज बहादुर को अपने अधीन करने के लिए अकबर ने अपनी धाय माँ माहम अनगा के बेटे आदम खान को मालवा भेजा।

बाज बहादुर की पत्नी रुपमती ने ज़हर खाकर आदम खां से अपनी रक्षा की

मालवा का बाज बहादुर पराजित होने के बाद दक्षिण में निजामुल्मुल्क के पास गया, पर निजामुल्मुल्क ने अकबर के खौफ से बाज बहादुर को शरण नहीं दी

तब बाज बहादुर चित्तौड़ आया, जहां महाराणा उदयसिंह ने उसको शरण दी

(चित्तौड़ के तीसरे साके का ये एक महत्वपूर्ण कारण था)

1562 ई.

“वीर जयमल राठौड़ मेवाड़ की शरण में”

हरमाड़ा के युद्ध में मेवाड़ का साथ देने के कारण मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ ने जयमल राठौड़ से मेड़ता छीन लिया था। फिर जयमल राठौड़ अकबर के पास गए और सब हाल बयां किया, तो अकबर ने मेड़ता पर फ़ौज भेजकर राव मालदेव द्वारा तैनात फ़ौज को परास्त किया।

अकबर ने मेड़ता की जागीर शरीफुद्दीन को सौंप दी। शरीफुद्दीन ने सहायक के रूप में जयमल राठौड़ को मेड़ता का अधिकारी बना दिया।

अक्टूबर, 1562 ई. में शरीफुद्दीन बिना अकबर की आज्ञा लिए आगरा से रवाना हो गया था, इसलिए क्रोधवश अकबर ने मेड़ता की जागीर हुसैन कुली को सौंप दी।

(इन दिनों मेड़ता में जो लड़ाइयां हुईं, उनका विस्तृत वर्णन भविष्य में मारवाड़ के इतिहास में लिखा जाएगा)

जयमल राठौड़ अकबर से बिगाड़ करके मेवाड़ पधारे, जहां महाराणा उदयसिंह ने जयमल राठौड़ को 1000 गाँवों समेत बदनोर और करेड़ा की जागीरें दीं

वीर जयमल राठौड़

1562 ई.

“सिरोही के राव मानसिंह देवड़ा मेवाड़ की शरण में”

सिरोही के राव रायसिंह देवड़ा जालोर के पठानों से लड़ते हुए काम आए थे। राव रायसिंह के पुत्र उदयसिंह की आयु कम होने के कारण रायसिंह के भाई दूदा को राजगद्दी मिली। दूदा ने अपने अंतिम समय में वास्तविक उत्तराधिकारी उदयसिंह को सिरोही का राज सौंप दिया।

दूदा ने अपने पुत्र मानसिंह को लाहिआना की जागीर दे दी, परंतु उदयसिंह अपने काका दूदा के उपकारों को भूल गया और मानसिंह की जागीर ज़ब्त कर ली।

सिरोही के मानसिंह देवड़ा ने गृहयुद्ध के बाद मेवाड़ में शरण ली। महाराणा उदयसिंह इस वक्त कुम्भलगढ़ में थे। महाराणा ने राव मानसिंह को बरकाण बीजेवास का पट्टा 18 गांवों समेत दिया।

कुछ समय बाद राव उदयसिंह की शीतला (चेचक) निकलने से मृत्यु हो गई, तो सिरोही के देवड़ा राजपूतों ने सोचा कि जल्द से जल्द कोई बहाना बनाकर मानसिंह जी को सिरोही बुलाया जाए, वर्ना महाराणा उदयसिंह को ये पता चल गया तो वे मानसिंह जी की हत्या करके सिरोही पर कब्जा कर लेंगे

सिरोही के राजपूतों ने राव उदयसिंह के शव को दोपहर तक छुपाए रखा और अश्वशाला के दारोगा जयमल को कुम्भलगढ़ भेजा

जयमल ने मानसिंह देवड़ा से सारा हाल कह सुनाया, तो मानसिंह देवड़ा शिकार के बहाने 50 सवारों समेत कुम्भलगढ़ दुर्ग से बाहर निकलकर सिरोही की तरफ निकल गए

महाराणा उदयसिंह को सारी बात मालूम हुई, तो महाराणा बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने सिरोही से जगमाल देवड़ा को बुलाया

महाराणा ने जगमाल देवड़ा से कहा कि “मानसिंह ऐसे बिना बताए क्यूं चला गया, हम उसका कुछ भी क्यों बिगाड़ते, बल्कि हमने तो उसको जागीरें वगैरह भी दी हैं। मानसिंह की इस हरकत के कारण हम सिरोही के 4 परगने जब्त करते हैं। आप ये बात मानसिंह से कह देना”

मानसिंह देवड़ा को ये बात पता चली तो मानसिंह ने 1 हाथी और 4 घोड़े नज़र करके महाराणा से कहलवाया कि “हुजूर आप सिर्फ 4 परगनों की बात कर रहे हैं, मैं तो पूरे सिरोही समेत जब भी आप कहें, तब हाजिर होने को तैयार हूं”

मानसिंह की विनम्रता देखकर महाराणा उदयसिंह प्रसन्न हुए

महाराणा उदयसिंह

1562 ई.

“राव मालदेव का देहांत”

मारवाड़ के राव मालदेव राठौड़ का देहान्त हुआ। इन रावजी का शासनकाल मारवाड़ के इतिहास का स्वर्णकाल था। समूचे राजपूताने में महाराणा कुम्भा के बाद सर्वाधिक निर्माण कार्य करवाने वाले शासकों में राव मालदेव का नाम लिया जाता है। राव मालदेव ने अनेक युद्धों में पराक्रम दिखाया, मारवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया और किसी बादशाह की अधीनता स्वीकार नहीं की।

राव मालदेव की इच्छा से उनके तीसरे पुत्र राव चंद्रसेन मारवाड़ की राजगद्दी पर बिराजे।

1563 ई.

“मेवाड़ के ही क्षेत्रीय राजपूतों पर महाराणा उदयसिंह की विजय”

* महाराणा उदयसिंह ने भोमट के राठौड़ों पर विजय प्राप्त की

इस युद्ध में कुंवर प्रताप भी लड़े, लेकिन नेतृत्व महाराणा उदयसिंह ने किया

* मेवाड़ के कुछ सामन्त खुद को अर्द्ध स्वतंत्र समझते थे

इस कारण महाराणा उदयसिंह ने जूड़ा, ओगनापानरवा के सामन्तों पर विजय प्राप्त की

1564 ई.

“पन्नाधाय को भूमि प्रदान करना”

चांदरास गाँव में महाराणा उदयसिंह ने साह आसकर्ण देवपुरा को धाय माता पन्नाधाय की सुरक्षा के लिए 451 बीघा भूमि का ताम्रपत्र प्रदान किया

मेवाड़ में इतने बड़े भूभाग के अनुदान का यही एक मात्र लेख है

इस ताम्रपत्र पर “संवत् 1621 आसोज सुदी नवमी” अंकित है

“अकबर की गोंडवाना विजय”

गोंडवाना की रानी दुर्गावती के अथक प्रयासों के बावजूद उन्हें पराजय मिली

इस विजय से अकबर को 1000 हाथी मिले

1564 ई.

“जज़िया माफ़”

अकबर ने पूरे हिन्दुस्तान में जजिया कर माफ किया

अकबर

* अगले भाग में अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने के लिए कूच करने के बारे में विस्तृत वर्णन किया जाएगा

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

6 Comments

  1. हार्दिक शर्मा
    December 16, 2020 / 4:27 pm

    जय महाराणा
    जय मेवाड़
    बहुत अच्छा लेख

  2. महेन्द्र कुमार जोशी
    December 16, 2020 / 5:58 pm

    महाराणा उदय सिंह जी के शासन का सूक्ष्म वर्णन ज्ञानवर्धक हैं।

  3. December 17, 2020 / 3:24 am

    मुझे इतिहास पड़ने बहुत जयदा रुचि है

    जय राज putanaa🙏🙏🙏
    जय माँ भवानी

  4. रुद्र प्रताप सिंह
    December 17, 2020 / 3:35 pm

    जय महाराणा ।

  5. भगवत सिह
    December 18, 2020 / 3:12 am

    बहुत ही अद्भुत जानकारी आप गुगल पर डाल कर सही इतिहास की जानकारी दे रहे है आपको बहुत बहुत धन्यवाद होकम

    • December 18, 2020 / 3:24 am

      आभार आपका

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