वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 48)

मुगल बादशाह अकबर का मेवाड़ अभियान :- अकबर 26 सितम्बर, 1576 ई. को अजमेर पहुंच चुका था। अकबर के अजमेर में रहते हुए ही महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा में मुगलों को मार भगा कर वहां अधिकार स्थापित किया।

अकबर ने तय किया कि मेवाड़ को मुगल सल्तनत में शुमार करने के लिए इस बार वह स्वयं मेवाड़ अभियान पर जाएगा। ये अकबर का स्वयं के नेतृत्व में दूसरा मेवाड़ अभियान था।

अकबर पहली बार मेवाड़ 1567 ई. में आया था और चित्तौड़ में भयंकर विध्वंस हुआ। इस दौरान अकबर पांच महीनों तक मेवाड़ में ही रुका था। अब अकबर नौ साल बाद 1576 ई. में फिर से मेवाड़ आया।

इस बार अकबर मेवाड़ और मेवाड़ के आसपास लगभग एक वर्ष तक रहा और महाराणा प्रताप को मारने के हरसम्भव प्रयास किए। 11 अक्टूबर, 1576 ई. को अकबर एक भारी भरकम फौज के साथ अजमेर से मेवाड़ के लिए निकला।

अकबर

अकबर की फौज में तकरीबन 80,000 बादशाही सैनिक, कईं सिपहसलार, सैकड़ों हाथी व 2-4 हजार नौकर चाकर थे। अकबर भली भांति जानता था कि मेवाड़ अभियान उसके लिए सदा से ही चुनौतीभरा रहा है।

1567 ई. की चढ़ाई के दौरान अकबर ने भारी धन संपदा, 30 हज़ार सैनिक और 5 माह का कीमती समय खोया था, फिर भी मेवाड़ नरेश को झुकाने में असफल रहा। तत्पश्चात हल्दीघाटी की लड़ाई हुई, जिसमें उसने सबसे योग्य सेनापति को मेवाड़ भेजा पर लड़ाई अनिर्णीत रही।

अकबर के मेवाड़ जाने का हाल अबुल फजल ने कुछ इस तरह लिखा है कि “मेवाड़ के बागी राणा का उत्पात हर दिन बढ़ता जा रहा था। शहंशाह के हुक्म मानने के बजाय गुरुर में डूबे राणा ने पहाड़ी लड़ाई इख्तियार करते हुए

तबाही मचा रखी थी। राणा और उसके मुल्क को बरबाद करने की खातिर शहंशाह ने फौज को मेवाड़ जाने का हुक्म दिया। उस वक्त अजमेर के दरबार में जितने भी सिपहसालार थे,

वे सब शहंशाह के साथ हो लिए। शहंशाह शिकार के बहाने मेवाड़ की तरफ निकले। उनके साथ शुरुआत में ज्यादा फ़ौज नहीं थी, लेकिन थोड़ी ही देर में एक बहुत बड़ी फौज इकट्ठी हुई।”

सामन्तों द्वारा महाराणा प्रताप के समक्ष मेवाड़ को स्वाधीन रखने की प्रतिज्ञा लेना

अबुल फ़ज़ल आगे लिखता है कि “सारे फौजी आदमी और सिपहसलार सर से लेकर पांव तक लोहे के ज़िरहबख्तर पहने हुए थे। दूर से देखने पर ये लोग शीशे जैसे दिखने लगे थे,

एक सिपाही तो लोहे से मढ़ा हुआ था, जिसकी भौंहें सुइयों जैसी लग रही थी। इस तरह शहंशाह ने मेवाड़ की तरफ कूच किया। इस वक़्त शहंशाह ने एक हुक्म जारी किया कि

इस मुहिम में जिन सिपहसलारों को फ़ौज की देखरेख और हिफाज़त के लिए हर रोज़ तैनात किया जाए, वे शहंशाह को आते और जाते दोनों वक्त कोर्निश किया करे”

कोर्निश :- कोर्निश एक तरह का सलाम है, जिसके लिए अकबर ने ये नियम बना रखा था कि कोर्निश करने वाला व्यक्ति बादशाह के सामने जाकर धीरे से बैठे। सीधे हाथ से मुट्ठी बांधकर हथेली का पिछला भाग ज़मीन पर टेके और धीरे से सीधा उठाये।

दाहिने हाथ से तालु पकड़कर इतना झुके कि दोहरा हो जाये और जब उठने लगे तब दाहिनी ओर से कुछ झुककर उठे। इसी को कोर्निश कहते थे, जिसका अर्थ था कि उस व्यक्ति का सारा जीवन अकबर को समर्पित है।

महाराणा प्रताप

कोर्निश उन हिंदुओं के लिए अत्यंत अपमानजनक था, जिन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी। अकबर ने यह आदेश दे रखा था कि इस तरह की कोर्निश के वक्त मन में अपने-अपने ख़ुदा का ख़्याल आना चाहिए।

कोर्निश के वक्त मन में खुदा के ख्याल की बात अकबर की इस विचारधारा को स्पष्ट करती है कि वह स्वयं को जनता के समक्ष ईश्वर तुल्य रखना चाहता था।

बहरहाल, मैंने यहां कोर्निश का बड़े विस्तार से उल्लेख किया, ताकि पाठक इस शब्द से भली भांति परिचित हो सके। प्रश्न ये उठता है कि अकबर के दरबारी इस प्रकार की कोर्निश से पहले से परिचित थे, तो फिर अकबर द्वारा इस समय ये आदेश क्यों दिया गया ?

इसका जवाब ये है कि अकबर ये चाहता था कि जब वह बड़े-बड़े अधीनस्थ राजाओं, सिपहसलारों, शाही फ़ौज, हाथी-घोड़ों की विशाल कतारों के साथ मेवाड़ में प्रवेश करे, तो वहां के लोग और महाराणा के आदमी ये देखें कि

महाराणा प्रताप

सब किस प्रकार अकबर के सामने स्वयं को समर्पित कर रहे हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो अकबर का वास्तविक उद्देश्य मेवाड़ की प्रजा को भयभीत करना और महाराणा प्रताप को मुगल अधीनता स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से विवश करना था।

समय ऐसा आ चुका था कि ओहदे और जागीरें पाने के लिए अकबर के सामने झुकने वालों की कतारें लगती थीं। लेकिन धन्य है मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप, जिन्होंने अपना मस्तक एकलिंगनाथ जी के सिवाय किसी के आगे नहीं झुकाया।

अपने व मेवाड़ के स्वाभिमान को उन्होंने उस समय भी जीवित रखा, जब मुगल सल्तनत अपने चर्मोत्कर्ष की तरफ बढ़ रही थी।

महाराणा प्रताप ने चित्तौड़गढ़ की पराजय के प्रतिशोध के लिए कमर कस ली और अकबर को एक बार पुनः असफलता की ओर धकेलने के लिए तैयारियां शुरू कर दी।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Amit Kumar
    May 26, 2021 / 10:25 am

    बहुत सुंदर वर्णन है।

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