हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ के कई प्रमुख सामंत व महाराणा के सहयोगी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जो सामंत वीरगति को प्राप्त हुए, उनके उत्तराधिकारियों की तलवार बंधाई की रस्म अदा करके उन्हें ठिकाने की गद्दी पर बिठाया गया।
हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी, मेवाड़ के प्रमुख सामन्त, राजपरिवार के सदस्य आदि :-
राजराणा देदा झाला :- ये हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाने वाले झाला मानसिंह जी के पुत्र थे। महाराणा प्रताप जब कोल्यारी गांव में उपचार करवा रहे थे, तब उन्होंने कुंवर अमरसिंह को झाड़ौल भेजकर देदा जी को कोल्यारी बुलवाया।
महाराणा ने देदा जी को झाड़ौल की राजगद्दी का तिलक देकर तलवारबन्दी की रस्म पूरी की। महाराणा ने राजराणा देदा को दरबार में अपने मुंह बराबर बैठक प्रदान की।
घाणेराव के ठाकुर गोपालदास राठौड़ :- इनको हल्दीघाटी युद्ध में कई घाव लगे थे। घाणेराव मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के 16 ठिकानों में से एक है। घाणेराव वर्तमान में पाली जिले की देसूरी तहसील में स्थित है।
ठाकुर गोपालदास जी मेड़ता के राव वीरमदेव जी के पौत्र व घाणेराव ठिकाने के संस्थापक ठाकुर प्रतापसिंह जी के पुत्र थे। ठाकुर गोपालदास घाणेराव के द्वितीय ठाकुर साहब थे।
बिजौलिया के राव शुभकरण पंवार :- ये मेवाड़ की महारानी अजबदे बाई के भाई थे। इनके पिता राव माम्रख जी व दो भाई पहाडसिंह व डूंगरसिंह हल्दीघाटी युद्ध में काम आए।
राव शुभकरण पंवार ने न केवल महाराणा प्रताप, बल्कि बाद में महाराणा अमरसिंह के समय भी अंत तक साथ दिया व अपने पूर्वजों की कीर्ति उज्ज्वल की।
कानोड़ के रावत भाण सारंगदेवोत :- ये मेवाड़ के महाराणा लाखा के पौत्र सारंगदेव जी के वंशज थे। इनके पिता रावत नैतसिंह सारंगदेवोत ने हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाई थी।
कानोड़ मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के 16 ठिकानों में से एक है व प्रथम श्रेणी में यह सारंगदेवोत राजपूतों का एकमात्र ठिकाना है।
महाराज शक्तिसिंह जी :- महाराणा प्रताप के छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया।
महाराज शक्तिसिंह के लगभग सभी पुत्र भी महाराणा प्रताप की सेवा में उपस्थित रहे थे और छापामार लड़ाइयों में महाराणा का साथ दिया। शक्तावत राजपूतों पर आधारित ग्रंथ सगतरासो में इनके बलिदानों का विस्तृत वर्णन है।
सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत :- ये मेवाड़ के भीष्म कहे जाने वाले रावत चुंडा जी के वंशज थे। रावत कृष्णदास चुंडावत के पिता रावत खेंगार चुंडावत थे, जो रतनगढ़ खेड़ी की लड़ाई में काम आए थे।
रावत कृष्णदास ने जगमाल को राजगद्दी से हटाकर महाराणा प्रताप को राजगद्दी दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रावत कृष्णदास ने हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ की हरावल में रहकर मुगल फौज की हरावल का विध्वंस किया था।
बेगूं के रावत गोविन्ददास चुंडावत :- ये रावत खेंगार चुंडावत के द्वितीय पुत्र व रावत कृष्णदास चुंडावत के जुड़वा भाई थे। रावत गोविन्ददास चुंडावत को बेगूं की जागीर मिली। बेगूं मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के 16 ठिकानों में से एक है।
देवगढ़ के रावत दूदा चुण्डावत :- इनके पिता रावत सांगा चुंडावत हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। रावत दूदा देवगढ़ के द्वितीय रावत साहब थे।
देवगढ़ मेवाड़ के सामन्तों की प्रथम श्रेणी के 16 ठिकानों में शुमार है। रावत दूदा ने न केवल महाराणा प्रताप, बल्कि बाद में महाराणा अमरसिंह के साथ रहकर भी मुगलों से काफी लड़ाइयां लड़ी।
देलवाड़ा के राजराणा कल्याणसिंह झाला :- इनके पिता राजराणा झाला मानसिंह ने हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाई थी।
कल्याणसिंह झाला के भाई शत्रुसाल झाला ने शुरुआत में महाराणा प्रताप का साथ दिया था, परन्तु बाद में इनकी महाराणा प्रताप से अनबन हो गई, जिसका वर्णन सीरीज में आगे किया जाएगा।
भाण सोनगरा चौहान :- इनके पिता पाली के अखैराज सोनगरा थे। इनके बड़े भाई मानसिंह जी सोनगरा ने हल्दीघाटी की रणभूमि में अपने प्राणों का बलिदान दिया था। भाण सोनगरा भी अपने भाई की भांति वीर व कुशल योद्धा थे। ये महाराणा प्रताप के मामा थे।
बेदला के बलभद्र सिंह चौहान, सरदारगढ़ के 9वें ठाकुर गोपालदास डोडिया, बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया, कोठारिया के रावत पृथ्वीराज चौहान, भामाशाह कावड़िया, ताराचन्द कावड़िया,
मेवाड़ के प्रधानमंत्री महासहानी रामा, चारण कवि रामा सांदू, चारण कवि गोरधन बोगसा, पानरवा के राणा पूंजा, मांडण कूंपावत, बनोल के ठाकुर तेजमल राठौड़,
जवास के 9वें रावत बाघसिंह, महता नरबद, महाराणा प्रताप व महारानी अजबदे बाई के पुत्र कुँवर भगवानदास आदि वीरों ने महाराणा प्रताप का छापामार युद्धों में साथ दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)