मेवाड़ महाराणा उदयसिंह (भाग – 9)

“महाराणा उदयसिंह से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य”

* महाराणा उदयसिंह ने राजपुरोहित नारायणदास को बडगाँव प्रदान किया था

(इन पुरोहित के बारे में महाराणा प्रताप के भाग में लिखा जाएगा)

* आमेर के राजा भारमल ने अपने बेटे भगवानदास को महाराणा उदयसिंह के सामन्त के तौर पर उनके दरबार में भेजा

* खींचीवाड़ा के गोपालसिंह खींची और आबू के राजा भी महाराणा उदयसिंह के सामन्त थे

* महाराणा उदयसिंह ने रावत साईंदास चुण्डावत को भैंसरोड़, बेगम, गंगराड़, बड़ोद की जागीर दी

“महाराणा उदयसिंह की सादड़ी विजय”

देवलिया के रावत बाघसिंह (चित्तौड़ के दूसरे शाके में वीरगति पाने वाले) के पुत्र रायसिंह के पुत्र बीका को महाराणा उदयसिंह ने किसी कारण से नाराज होकर सादड़ी से निकाल दिया

बीका वडेरी गांव में मेरों की शरण में चला गया और होली के दिन मौका देखकर अपने साथियों को बुलाया व दगा करके मेरों को मारकर देवलिया पर कब्जा किया

1556 ई.

“अजमेर का बखेड़ा”

मुगल बादशाह अकबर ने पीर मुहम्मद सरवानी को फ़ौज समेत मेवात (अलवर) पर हमला करने भेजा, जहां हाजी खां मेवाती का राज था। हाजी खां भागकर अजमेर आ गया।

(हाजी खां अफगान बादशाह शेरशाह सूरी का गुलाम था। हाजी खां ने मारवाड़ से अजमेर और नागौर छीन लिए थे। सारे राजपूताने में ये बात फ़ैल गई थी कि हाजी खां के पास बहुत सा सोना, धन और रंगराय नामक रखैल है।)

इन्हीं दिनों मारवाड़ के राव मालदेव ने राव पृथ्वीराज जैतावत को हाजी खां के विरुद्ध फ़ौज समेत अजमेर पर हमला करने भेजा

हाजी खां ने महाराणा उदयसिंह को संदेश भेजकर कहा कि “राव मालदेव मुझ को मारने आ रहा है और मैं आपकी पनाह में आया हूँ। आप मेरी मदद करें”

महाराणा उदयसिंह हाजी खां की सहायता के लिए बूंदी के राव सुर्जन हाडा, मेड़ता के जयमल राठौड़, रामपुरा के दुर्गा सिसोदिया आदि के साथ 5000 की फ़ौज लेकर अजमेर की तरफ रवाना हुए

हाजी खां ने बीकानेर नरेश से भी सहायता मांगी थी। बीकानेर और मारवाड़ में पहले से शत्रुता तो थी ही, इसलिए बीकानेर के राव कल्याणमल राठौड़ ने महाजन के स्वामी ठाकुर अर्जुनसिंह, जैतपुर के स्वामी रावत किशनदास, सेवारा के स्वामी नारण के नेतृत्व में 5000 की फ़ौज भेजी।

मेवाड़ के 5000 राजपूत, बीकानेर के 5000 राजपूत और हाजी खां के 5000 पठानों की फ़ौजें देखकर मारवाड़ के राजपूतों ने राव पृथ्वीराज जैतावत से कहा कि “मारवाड़ के अच्छे-अच्छे योद्धा पहले ही शेरशाह सूरी की फ़ौज से लड़ते हुए काम आ चुके हैं। हम भी काम आ गए तो राव मालदेव बहुत निर्बल हो जाएंगे। इतनी बड़ी सेना का सामना करना कठिन है, इसलिए लौट जाना ही बेहतर है”

राव पृथ्वीराज जैतावत विचार करके फ़ौज समेत लौट गए, तो महाराणा व बीकानेर की फ़ौजें भी बिना लड़े ही लौट गईं। लौटने के बाद पृथ्वीराज जैतावत बड़े शर्मिंदा हुए।

5 नवम्बर, 1556 ई.

“पानीपत का दूसरा युद्ध”

पानीपत की दूसरी लड़ाई मुगल बादशाह अकबर और हेमचंद्र के बीच हुई

पानीपत के युद्ध में हेमचन्द्र पराजित हुए व इस विजय से अकबर को 1500 हाथी मिले। मुगलों की तरफ से इस युद्ध का नेतृत्व बैरम खान ने किया।

पानीपत युद्ध के बाद हिंदुओं के कटे सिरों की मीनार बनाते मुग़ल

“महाराणा उदयसिंह व हाजी खां में तकरार”

मेवाड़ के ग्रन्थ वीरविनोद में लिखा है कि “हाजी खां और महाराणा उदयसिंह का झगड़ा हो गया, जिसका हाल कुछ इस तरह है कि महाराणा ने तेजसिंह डूंगरसिंहोत व सूजा बालेचा को हाजी खां के पास भेजकर कहलवाया कि हमने तुम्हारी मदद की है, इसलिए तुम हमें 40 मन सोना, कुछ हाथी और रंगराय नाम की पातर दो”

हाजी खां ने 40 मन सोना और कुछ हाथी देना तो मंजूर किया, पर रंगराय को अपनी पत्नी बताकर देने से इनकार किया

हाजी खां ने जो कहा वो फारसी तवारिख तारीख-इ-खान-इ-जहानी में लिखा है कि “वह काफिर मुझसे सोना-हाथी मांगता तो मैं दे देता, पर उस मरदक (एक फ़ारसी गाली) ने मुझसे रंगराय मांगी है, जिसे मैं हर्गिज़ नहीं दे सकता। मैं शर्म के मारे नहीं रह सकता, मैं उससे जंग लडूंगा। जो मेरे नसीब में लिखा होगा, वही होगा”

हाजी खां की मदद करने के बाद महाराणा के मन में रंगराय को लेकर कुविचार आया। महाराणा के सामंतों ने उनसे कहा भी था कि यह मांग सही नहीं है, पर महाराणा नहीं माने। यहां निश्चित रूप से गलती महाराणा की थी। और यदि उन्हें यह मांग रखनी ही थी, तो हाजी खां की सहायता करने से पहले करनी थी।

तेजसिंह डूंगरसिंहोत व सूजा बालेचा ने भी महाराणा को बहुत समझाया, पर महाराणा नहीं माने

“हाजी खां और राव मालदेव में सुलह”

हाजी खां और राव मालदेव में पहले ही झगड़ा था, फिर भी हाजी खां ने राव मालदेव से महाराणा उदयसिंह के विरुद्ध लड़ने के लिए सहायता मांगी

राव मालदेव भी महाराणा उदयसिंह से बहुत से हिसाब चुकता करना चाहते थे, इसलिए उनको हाजी खां की मदद करना हरसंभव उचित लगा

राव मालदेव ने हाजी खां को कहलवाया कि “तुम लड़ाई की तैयारी करो। लड़ाई के वक़्त मैं मारवाड़ की तरफ़ से फ़ौजी मदद भिजवा दूंगा”

राव मालदेव राठौड़

* अगले भाग में हाजी खां और राव मालदेव की सम्मिलित फ़ौज व महाराणा उदयसिंह की फ़ौज के बीच हुए हरमाड़े के युद्ध के बारे में लिखा जाएगा

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

4 Comments

  1. हार्दिक शर्मा
    December 12, 2020 / 3:29 pm

    निष्पक्ष इतिहास के लिए आपका धन्यवाद

    • December 13, 2020 / 2:56 am

      आभार हार्दिक

error: Content is protected !!