27 जनवरी, 1556 ई.
“हुमायूं की मृत्यु”
मुगल बादशाह हुमायूं की पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर मृत्यु हुई
लेनपूल लिखता है “बादशाह हुमायूं जीवनभर ठोकरें खाता रहा और आखिर में ठोकर खाकर ही मर गया”
यह मुग़ल बादशाह अन्य बादशाहों की तुलना में काफ़ी नर्म साबित हुआ। इसने अपना राज्य अपने भाइयों में बांट दिया और खुद दिल्ली में बैठा रहा।
हुमायूं चौसा और बिलग्राम की लड़ाइयों में अपने से 4 गुना छोटी फ़ौज के मालिक शेरशाह सूरी से परास्त हो गया। हुमायूं परास्त होकर घोड़े समेत गंगा नदी में कूद गया, जहां एक नाविक ने उसके प्राण बचाए।
शेरशाह सूरी से परास्त होने के बाद हुमायूं के एक भी भाई ने उसे शरण तक न दी। 15 वर्षों तक हुमायूं भटकता रहा और फिर से दिल्ली की सत्ता हाथ में आई, लेकिन एक ही वर्ष राज करने के बाद हुमायूं की मृत्यु हो गई।
1556 ई.
“मेवाड़-मारवाड़ के बीच टकराव”
खैरवा व देलवाड़ा के सामन्त जैतसिंह झाला की पुत्री स्वरुपदे मारवाड़ के राव मालदेव राठौड़ की पत्नी थीं
(जैतसिंह झाला के पिता राजराणा झाला सज्जा थे, जो कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बहादुरशाह की फ़ौज से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। जैतसिंह झाला मारवाड़ चले गए थे, जहां उन्हें खैरवा की जागीर दी गई)
राव मालदेव झाली रानी स्वरूपदे सहित अपने ससुराल खैरवा गए, जहां उन्होंने जैत्रसिंह की दूसरी पुत्री वीरबाई झाली को देखकर जैत्रसिंह से कहा कि “इसका भी ब्याह हमारे साथ करवा दो”
परन्तु जैत्रसिंह झाला ने ये कहते हुए मना कर दिया कि “मैं अपनी बेटी पर दूसरी बेटी को सौत नहीं बना सकता”
राव मालदेव ने पहले तो नरमी से कहा, परंतु जैत्रसिंह द्वारा मना करने के बाद ज़ोर दिखाया, तब रानी स्वरूपदे झाली ने अपने पिता से कहा कि “राव जी से शत्रुता मोल लेना खैरवा के बस की बात नहीं है, वे आपको बर्बाद कर देंगे, इसलिए अभी आप शादी का इक़रार कर लीजिए, फिर थोड़े दिन बाद जैसी आपकी इच्छा हो वैसा करें”
जैत्रसिंह झाला को ये बात पसंद आई, फिर भी उन्होंने बहाना बनाकर राव मालदेव से कहा कि “अभी लग्न नहीं है और हमारे पास विवाह का ख़र्च भी अधिक नहीं है”
राव मालदेव ने उसी समय 15 हज़ार का धन विवाह के खर्च हेतु जैत्रसिंह को दिया और विवाह का इक़रार पक्का कर लिया
राव मालदेव अपनी रानी स्वरूपदे को खैरवा में ही छोड़कर जोधपुर चले गए। जैत्रसिंह ने सभी सामंतों के साथ बैठकर विचार किया, तो सलाह मिली कि सिवाय महाराणा उदयसिंह के और कोई राव मालदेव के विरुद्ध जाकर आपकी पुत्री से विवाह करने का साहस नहीं कर सकता।
जैतसिंह ने महाराणा उदयसिंह को पत्र में लिखा कि “राव मालदेव के दबाव में आकर मैंने उनके साथ अपनी पुत्री के विवाह का करार कर लिया है, पर मैंने उसका संबंध आपके साथ करने का विचार किया है। मेरी तरफ से मेरी पुत्री वीरबाई आपकी रानी हो चुकी है”
महाराणा उदयसिंह ने विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर कुम्भलगढ़ के समीप गुडा नामक स्थान पर विवाह किया
विवाह के अवसर पर रानी वीरबाई झाली की बहन स्वरुपदे ने उनको जेवरों से भरा डिब्बा तोहफे में दिया, लेकिन गलती से डिब्बे में कुलदेवी मां नागणेचाजी की मूरत दे दी।
विवाह के बाद महाराणा उदयसिंह जैत्रसिंह झाला को भी अपने साथ लेकर कुंभलगढ़ पहुंचे व दरबार रखा, तब डिब्बे में नागणेचा जी की मूरत होने का पता चला। महाराणा उदयसिंह ये देखकर काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने मां नागणेचाजी की पूजा अर्चना की। महाराणा उदयसिंह मां नागणेचाजी के सम्मान में साल में 2 बार विशेष दरबार भी रखा करते थे। यह पूजन व दरबार माघ शुक्ल 7 व भाद्रपद शुक्ल 7 को होता था। मेवाड़ में करीब 350 वर्षों तक यह पूजन प्रतिवर्ष इन 2 दिन तक होता रहा।
“गोडवाड़ का युद्ध”
राव मालदेव ने जब महाराणा उदयसिंह व रानी वीरबाई के विवाह की ख़बर सुनी, तो क्रोधित होकर मेवाड़ की तरफ़ रवाना हुए
गोडवाड़ में दोनों फ़ौजों का आमना-सामना हुआ, जिसमें महाराणा की फ़ौज ने शिकस्त खाई
राव मालदेव ने गोडवाड़ पर अधिकार करके वहां एक थाना तैनात कर दिया और फिर जोधपुर आ गए
“महाराणा उदयसिंह द्वारा राव मालदेव को चिढाना”
महाराणा उदयसिंह ने राव मालदेव को चिढ़ाने के लिए कुम्भलगढ़ दुर्ग की चोटी पर ‘झाली रानी का मालिया’ बनवाया, जो अब तक किले में मौजूद है। महाराणा उदयसिंह ने झाली रानी के मालिये पर एक चिराग तैयार करवाया, जो 2 मन बिनौले व तेल से जला करता था।
(कुंभलगढ़ के किले से मारवाड़ के पाली आदि क्षेत्रों के तालाब वग़ैरह तक नज़र आते हैं। इसलिए वहां से भी कुंभलगढ़ पर जल रहा ये दीया लोगों ने देखा तो राव मालदेव को सूचित किया)
“राव मालदेव की कुंभलगढ़ पर चढ़ाई”
राव मालदेव ने ये देखकर कुम्भलगढ़ पर हमला करने का फैसला किया
राव मालदेव की फौज में शामिल सूजा बालेचा ने महाराणा उदयसिंह के खिलाफ युद्ध में भाग ना लेकर राव मालदेव से बिगाड़ कर लिया
सूजा बालेचा राव मालदेव के मुल्क को लूटते हुए महाराणा उदयसिंह के पास पहुंचे। महाराणा ने सूजा बालेचा को नाडोल की जागीर दी।
राव मालदेव ने नगा राठौड़ भारमलोत को 500 सवारों समेत नाडोल पर हमला करने भेजा
सूजा बालेचा विजयी हुए और राव मालदेव की तरफ से राठौड़ बाला, धन्ना, बीजा काम आए
राठौड़ पचायण कर्मसिंहोत, राठौड़ बीदा भारमलोत बालावत आदि सरदारों के साथ राव मालदेव ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर हमला किया, पर दुर्ग की मज़बूती के कारण एक महीने के पड़ाव के बावजूद अधिकार नहीं कर पाए
लौटते वक्त राव मालदेव मेवाड़ के कुछ इलाके में लूटमार करते हुए मारवाड़ चले गए
* अगले भाग में महाराणा उदयसिंह व पठान हाजी खां के बीच तनाव की स्थिति के बारे में लिखा जाएगा
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
कुंभलगढ़ दुर्ग पहाड़ों के मध्य है , पाली जिले के क्षेत्रों से केसे देखा जा सकता है ?
क्युकी कुंभलगढ़ की तलहटी में पहुंच कर है दुर्ग दिखता है ।।
Author
साफ मौसम में कुम्भलगढ़ दुर्ग के शीर्ष पर पहुंचकर देखिएगा
Nice
बहुत ही सुंदर जानकारी
Author
धन्यवाद सा
Aapka bahut bahut abhar itihas ki es sundar jankari k liy
Nich
It is interested history 🙏🙏🙏