वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 24)

1576 ई. – “महाराणा प्रताप की मांडलगढ़ पर चढाई” :- राजा मानसिंह फौज समेत मांडलगढ़ पहुंच तो चुके थे, पर उन्होंने एक बार फिर महाराणा प्रताप को सन्धि के लिए मनाना उचित समझा।

बहुत से इतिहासकारों के अनुसार राजा मानसिंह एक ही बार महाराणा प्रताप को सन्धि हेतु मनाने पहुंचे थे, पर यहां कुछ प्रमाण रखे जाते हैं, जिससे साबित होता है कि राजा मानसिंह 2 बार महाराणा प्रताप को मनाने गए थे।

अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है “मानसिंह बादशाही फौज के साथ मांडलगढ़ पहुंचा। शहंशाह ने मानसिंह के लिए हुक्म भिजवाया कि वह कुछ वफादार लोगों के साथ जाए और राणा को नींद से जगाकर

शहंशाह के दरबार का रास्ता दिखा दे। नींद से जागने के इस मौके पर राणा ने बिना अक्लमन्दी से अपनी ज़िद और भी बढ़ा ली। उसने शहंशाह के भाग्य को नज़रअन्दाज कर दिया। राणा ने गुरुर में आकर बादशाही लश्कर का ख्याल

महाराणा प्रताप

न करके मानसिंह को अपना मातहत जमींदार समझते हुए मांडलगढ़ पर हमला करने का इरादा किया और वह फौज लेकर तबाही मचाने आगे चढ़ आया, पर उसके खैरख्वाहों ने उसे ऐसा करने से रोका”

राजा मानसिंह पर लिखे गए ग्रन्थ मानप्रकाश में लिखा है कि “मांडलगढ़ से निकलकर अग्नि के समान तेजस्वी राजा मानसिंह ने महाशक्तिशाली राणा प्रताप से कहा कि तुम्हे

सर्वस्व देकर बादशाह की सेवा करनी है। राजा मान की बात सुनकर राणा अत्यन्त क्रुद्ध हो गया और राजा मानसिंह को मारने के लिए मांडलगढ़ आ पहुंचा”

निष्कर्ष रुप में ये कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह महाराणा प्रताप को दोबारा सन्धि के लिए मनाना नहीं चाहते थे, क्योंकि पिछली बार का अपमान वह भूला नहीं था। पर ये अकबर का आदेश था,

इसलिए वह जरुर महाराणा प्रताप को मनाने गए होंगे। वहां राजा मानसिंह की बातों ने महाराणा प्रताप के क्रोध को बढ़ा दिया, जिससे महाराणा प्रताप ने क्रोधवश मांडलगढ़ पर चढ़ाई करने का फैसला किया।

मांडलगढ़ दुर्ग

अकबरनामा व मानप्रकाश ग्रन्थ के अनुसार महाराणा प्रताप मांडलगढ़ तक पहुंच चुके थे या मांडलगढ़ के लिए निकल चुके थे, पर राणा रासौ ग्रन्थ के अनुसार महाराणा प्रताप ने मांडलगढ़ पर हमला करने का सिर्फ विचार किया था, चढाई नहीं।

यहां राणा रासौ की बात गलत साबित होती है, क्योंकि यदि महाराणा प्रताप ने सिर्फ विचार ही किया होता, तो ये बात अबुल फजल को पता न चलती।

महाराणा प्रताप ने चढाई की, पर सामन्तों द्वारा मनाने पर तत्काल हमला न करके कुछ समय बाद तैयारी से हमला करना बेहतर समझकर गोगुन्दा लौट गए।

महाराणा प्रताप द्वारा राजा मानसिंह को जीवनदान :- राजा मानसिंह के नेतृत्व में मुगल फौज मांडलगढ़ दुर्ग से रवाना हुई और मोही गांव में पड़ाव डाला। मोही से निकलकर मोलेला गांव में पड़ाव डाला।

मोलेला में राजा मानसिंह ने रसद आदि जमा करना शुरू किया और परिस्थितियों का बारीकी से विश्लेषण किया। महाराणा प्रताप सेना सहित गोगुन्दा से रवाना हुए। महाराणा प्रताप ने खमनौर से 10 मील दक्षिण-पश्चिम में लोसिंग (ढाणा) गाँव में पड़ाव डाला।

महाराणा प्रताप

यहां एक घटना हुई कि राजा मानसिंह इस बात से अनजान थे कि महाराणा प्रताप की फौज का पड़ाव मोलेला गांव से महज़ 12 मील के फासिले पर है।

मोलेला गांव से राजा मानसिंह 1000 सवारों समेत शिकार के लिए निकले और महाराणा प्रताप की फौज के पड़ाव के बहुत नजदीक आ गए।

महाराणा प्रताप ने पूरबिया दुरस परवतसिंहोत व सिसोदिये नेता भाखरोत को गुप्तचर के तौर पर राजा मानसिंह का पता लगाने भेजा। इन गुप्तचरों ने महाराणा प्रताप को इस बात की सूचना दी।

महाराणा प्रताप के पास राजा मानसिंह को पराजित करने का सुनहरा अवसर था। सभी सामन्तों ने राजा मानसिंह पर हमला करने का प्रस्ताव रखा।

पर बड़ी सादड़ी के झाला मान ने कहा कि हम राजा मानसिंह को धोखे से नहीं हरा सकते। महाराणा प्रताप ने भी झाला मान की इस बात पर सहमति जताई। राजा मानसिंह मोलेला चले गए और अगले दिन उन्हें पता चला कि उनको जीवनदान मिला है।

राजा मानसिंह

महाराणा प्रताप के समकालीन चारण कवि दुरसा जी आढा द्वारा रचित दोहा :- अकबर कूट अजाण, हियाफूट छोड़े न हठ। पगां न लागण पाण, पणधर राण प्रतापसी।।

अर्थात अकबर अज्ञानी और मूर्ख है, जो अपने झूठे हठ को नहीं छोड़ता, परन्तु उसके पैरों में नहीं पड़ने की प्रतिज्ञा को धारण करने वाले महाराणा प्रताप सिंह अपने पराक्रम को नहीं छोड़ेंगे।

महाराणा प्रताप के समकालीन बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा लिखित दोहा :- जासी हाट बात रहसी जग, अकबर ठग जासी एकार। रह राखियो खत्री धर्म राणे, सारा ले बरतो संसार।।

अर्थात ठग रूपी अकबर भी एक दिन इस संसार से कूच कर जावेगा और यह हाट भी उठ जावेगी। परन्तु संसार में यह बात अमर रह जावेगी कि क्षत्रियों के धर्म में रहकर उस धर्म को केवल राणा प्रतापसिंह ने ही रखा।

अब पृथ्वी भर में सबको उचित है कि उस क्षत्रियत्व को अपने बर्ताव में लो अर्थात राणा प्रतापसिंह की भांति आपत्ति भोगकर भी पुरुषार्थ से धर्म की रक्षा करो।

हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के सहयोगी मेहता रतनचंद

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

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