वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 8)

फरवरी, 1568 ई. :- अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग पर 4 महीने घेरा डालकर हमला किया। चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ, जिसमें कुंवर प्रताप के 1700 रिश्तेदारों समेत 8000 राजपूत योद्धा, 1000 पठान, 30000 प्रजा व तकरीबन 1000 क्षत्राणियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।

चित्तौड़ के तीसरे साके की घटना महाराणा प्रताप के जीवन का आधार बन गई। महाराणा प्रताप व अकबर के बीच होने वाली भविष्य की लड़ाइयों का आधार अब केवल स्वतंत्रता तक सीमित नहीं रह गया था।

अकबर के इस कुकृत्य ने महाराणा प्रताप के स्वाधीनता के लक्ष्य में प्रतिशोध की ज्वाला भी भभका दी। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के हज़ारों चाहने वालों को अपने प्राण त्यागने पड़े,

लेकिन महाराणा इस दुःखद घटना से विचलित नहीं हुए बल्कि इस घटना ने उनके मन को और अधिक साहस से भर दिया।

मायरा (गोगुन्दा) स्थित महाराणा प्रताप का शस्त्रागार

आसिया शाखा के चारण पीथा जी द्वारा रचित दोहा :- खटकै खत्रवेध सदा खेहड़तो, दिनप्रत दांखतो खत्रदाव। अकबर साह तणौ ऊदावत, राण हिये चरणां अन राव।।

अर्थात क्षत्रियों के मार्ग में चलने वाला महाराणा युद्ध में बादशाह अकबर के चित्त में खटकता है और अन्य राजा सेवा में पड़े रहते हैं, इस कारण महाराणा प्रतापसिंह सदा अकबर के हृदय पर चढ़ा रहता है और अन्य अकबर के अधीन राजा अकबर के चरणों मे पड़े रहते हैं।

1569 ई. :- अकबर ने राव सुर्जन हाड़ा को रणथंभौर के युद्ध में परास्त कर संधि हेतु विवश किया। इसी वर्ष अकबर ने मजनू खां काकशाह को फ़ौज समेत भेजकर कालिंजर के शासक रामचंद्र को परास्त कर कालिंजर दुर्ग भी फतह कर लिया।

इसी वर्ष अजमेर के शेख सलीम चिश्ती के यहां अकबर के बेटे सलीम का जन्म हुआ, जो आगे चलकर जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ।

महाराणा प्रताप

1570 ई. :- अकबर के बेटे मुराद का जन्म हुआ। इसी वर्ष महाराणा उदयसिंह कुम्भलगढ़ पधारे व फिर से सैनिकों की नई भर्ती प्रारम्भ की।

कुम्भलगढ़ से वे फिर गोगुन्दा पधारे जहां वे बीमार रहने लगे। महाराणा उदयसिंह ने गोगुन्दा को मेवाड़ की राजधानी घोषित कर दी।

नवम्बर-दिसम्बर, 1570 ई. – “अकबर का नागौर दरबार” :- अकबर ने नागौर दरबार रखा, जहां राजपूताने के कई शासक उपस्थित हुए, पर महाराणा उदयसिंह ने इसमें भाग नहीं लिया।

इस दरबार में जितने भी शासक थे, सभी ने बादशाही मातहती कुबूल की, पर मारवाड़ के राव चन्द्रसेन भरे दरबार से उठकर चले गए और जंगलों में प्रवेश किया।

नागौर दरबार राजपूताने के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना रही और इस घटना के बाद राजपूताने का सूरज अस्त होता दिखाई दे रहा था।

अकबर

जैसलमेर के हरराय भाटी, बीकानेर के कल्याणमल राठौड़, जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह राठौड़ ने मुगल अधीनता स्वीकार की। नागौर दरबार में बीकानेर के कुँवर रायसिंह राठौड़ भी उपस्थित थे।

जैसलमेर के हरराय भाटी स्वयं इस दरबार में उपस्थित नहीं हो पाए थे, इसलिए उन्होंने अपना प्रतिनिधि भेजकर मुगल अधीनता स्वीकार की।

नागौर में मालवा के बाज बहादुर ने अकबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। ये वही शख्स था, जिसे शरण देकर मेवाड़नाथ महाराणा उदयसिंह ने उस समय की सर्वोच्च मुगल सत्ता को चुनौती दी थी।

1571 ई. – अकबर ने आमेर के राजा भारमल कछवाहा को महाराणा उदयसिंह के पास सन्धि प्रस्ताव लेकर भेजा, पर महाराणा उदयसिंह ने इसे अस्वीकार किया।

इसी वर्ष अकबर ने आगरा के स्थान पर फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाई और वहां एक बड़ा किला भी बनवाया।

अकबर की इस नई राजधानी में पानी की बड़ी कमी थी, इसलिए यह आगरा से बेहतर राजधानी साबित नहीं हो सकी। इसी वर्ष अकबर ने मुजफ्फर खां के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण करने के लिए फौज भेजी।

दिवेर स्थित वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की प्रतिमा

अंग्रेज इतिहासकार फ्रेडरिक लिखता है :- दरबारी इतिहासकार चाहें जो कहें, महाराणा प्रताप को विद्रोही तथा दुराग्रही ज़मीदार नहीं कहा जा सकता। जो भूमि उनके अधीन थी, वह स्वयं उनकी थी। संग्राम में उनके

साथ ऐसे सामंत जाते थे, जिनके साथ पीढ़ियों से संबंध था। महाराणा प्रताप को समस्त राजपूत अपना विधिवत स्वाभाविक स्वामी स्वीकार करते थे। और जैसा कि

सुनिश्चित रूप से की गई कार्रवाइयों से सिद्ध होता है, यह औचित्य की भावना उन राजपूतों तक के हृदयों में अमिट रूप से बनी हुई थी, जो अकबर के झंडे के नीचे लड़ रहे थे और उसके सबसे स्वामिभक्त सेनानी थे”

प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने महाराणा प्रताप के बारे में लिखा कि “महाराणा प्रताप के सामने जो झुक जाता है, उसका माथा ऊंचा उठ जाता है”

महाराणा प्रताप

अगले भाग में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक का विस्तृत वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

1 Comment

  1. भभूतराममेघ
    May 10, 2021 / 1:55 am

    ऐसेवीरपुरुषोकाइतिहास अछेतकदीरवालोकोमिलताहे जयराणापृतापकी

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