मेवाड़ महाराणा उदयसिंह (भाग – 21)

1568 ई. को हुए भीषण युद्ध के बारे में अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है कि “ऐसी जंग आज से पहले ना किसी ने देखी और ना सुनी, इन 4 महीनों में हजारों वाक्ये लिखने लायक थे, पर मैं सब कुछ बयां नहीं कर सकता”।

“24 फरवरी, 1568 ई. को वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धा” :- राजराणा जैता सज्जावत व राजराणा सुल्तान आसावत :- ये दोनों अपना मोर्चा छोड़कर सूरजपोल दरवाजे पर रावत साईंदास चुण्डावत की मदद खातिर पहुंचे और वहीं काम आए। कोठारिया के रावत साहिब खान चौहान :- रावत साहिब खान कोठारिया के 7वें रावत साहब थे। रावत साहिब खान के पुत्र पृथ्वीराज हुए।

लावा (सरदारगढ़) के सांडा सिंह डोडिया :- ये लावा के 7वें ठाकुर साहब थे। ये घोड़े पर बैठकर तलवार चलाते हुए गम्भीरी नदी के पश्चिम में वीरगति को प्राप्त हुए। इनके पुत्र ठाकुर भीमसिंह डोडिया हुए। “थी सांडा प्रतिज्ञा द्वार न हो भंग, चाहे कटे शीष या कटे हर अंग। ललकारा शत्रु को स्वयं पर वार लिया, दुर्ग बचाने अपना जीवन बलिदान दिया।” विजयसिंह जी, जैतसिंह जी, मेड़तिया उरजण रायमलोत, ईसरदास वीरमदेवोत मेड़तिया भी वीरगति को प्राप्त हुए।

* जयमल राठौड़ व कल्ला राठौड़ का बलिदान :- पैर में गोली लगने के कारण ज़ख्मी जयमल जी ने घोड़े पर बैठने का प्रयास किया, लेकिन नहीं बैठ पाए। तब उनके भतीजे 23 वर्ष के कल्ला जी ने अपने 60 वर्ष के काका जयमल जी को अपने कन्धों पर बिठाया और दोनों ने 2-2 तलवारों से युद्ध किया। ऐसा लग रहा था मानो चारभुजा जी स्वयं युद्धभूमि में अवतरित हुए।

इसीलिए कल्ला राठौड़ को 2 सिर व 4 हाथ वाले लोकदेवता भी कहा जाता है। जयमल जी और कल्ला जी 4 हाथों से शत्रुओं का संहार करते हुए आगे बढ़ रहे थे। मुगल फ़ौज के पैर टिक नहीं पा रहे थे। इन दोनों वीरों ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए हनुमानपोल दरवाज़े से मुगलों को बाहर खदेड़ दिया। हनुमानपोल दरवाजा पार करने के कुछ ही समय बाद जयमल जी को बन्दूक की गोलियां लगी, जिससे वे वीरगति को प्राप्त हुए।

जयमल जी के वीरगति प्राप्त करने के बाद कल्ला जी ने दुगुने साहस का परिचय दिया और अकेले ही मुगलों को पीछे खदेड़ने लगे, लेकिन भैरवपोल दरवाज़े तक पहुँचने से पहले ही एक मुगल सैनिक ने उनका सिर काट दिया। इस तरह राजपूताने के इन 2 महान वीरों का प्राणान्त हुआ।मान्यता है कि कल्ला जी का धड़ लड़ते हुए रनेला नामक स्थान पर उनकी पत्नी कृष्णकान्ता के पास पहुंचा, जहां वे सती हो गईं। रनेला में कल्ला जी का मुख्य मंदिर है।

चित्तौड़ में जयमल राठौड़ व कल्ला राठौड़ की छतरियां बनी हुई हैं। कल्ला राठौड़ की छतरी 4 खम्भों की है व जयमल राठौड़ की छतरी 6 खम्भों की है। “जठै झड्या जयमल कला छतरी छतरां मोड़। कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़॥” अकबर ने फतहनामा-इ-चित्तौड़ में जयमल राठौड़ की तुलना 1 हजार घुड़सवारों से की।राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश में मिलाकर कल्ला राठौड़ के 475 मन्दिर हैं, जिनमें से 175 मंदिर केवल बांसवाड़ा में ही हैं। इन मंदिरों में शनिवार व रविवार को श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं और अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए उनकी आराधना करते हैं। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि जो बीमारी कल्लाजी के मंदिर में ठीक नहीं होती, वो बीमारी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को जयमल जी के मंदिर में ठीक होती है।

* प्रताप राठौड़ :- ये जयमल राठौड़ के भाई थे। 1552 ई. में महाराणा उदयसिंह ने प्रतापसिंह जी को घाणेराव की जागीर दी थी। बाद में घाणेराव ठिकाना मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के 16 ठिकानों में शुमार हुआ।

* सलूम्बर रावत साईंदास चुण्डावत :- मेवाड़ के ये महान योद्धा सूरजपोल द्वार की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इनके एकमात्र पुत्र कुंवर अमरसिंह भी यहीं वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह रावत साईंदास चुण्डावत का वंश यहीं समाप्त हुआ। अकबर ने इस युद्ध के बाद जिन तीन योद्धाओं की तुलना 1-1 हजार घुड़सवारों से की उनमें से एक योद्धा रावत साईंदास चुण्डावत भी थे। “ये लड़ा वीर ज्यौं लड़े है रावत, अपनी मृत्यु जिये रावत चुण्डावत। अपनी क्षत्रियता का ये अभिमानी, कैसी अचम्भित सी ये कुर्बानी।।”

* बड़ी सादड़ी के राजराणा सुरतन सिंह झाला :- ये भी सूरजपोल द्वार की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इनके पुत्र झाला मान/झाला बींदा हुए, जिनका हाल महाराणा प्रताप के भाग में लिखा जाएगा। कानसिंह जी वैरावत राठौड़ :- इनको महाराणा उदयसिंह ने रानी खुर्द को जागीर दी थी। बल्लू सिंह चौहान :- ये पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। मदारिया के रावत दूदा

* दूदा शेखावत :- ये आमेर से थे। करमचन्द कछवाहा :- ये भी आमेर से थे। जालौर के सोनगरा चौहान :- ये महारानी जयवन्ता बाई के रिश्तेदार थे। इनका नाम नहीं मिल पाया है, लेकिन ये ईसरदास जी के साथ मिलकर लड़ते हुए काम आए। बल्लू सिंह सौलंकी :- अकबर ने जब मांडलगढ़ पर फौज भेजी, तब ये मांडलगढ़ छोड़कर चित्तौड़ आ गए थे और यहां आकर बलिदान दिया।

* वीरगति पाने वालों में करीब 1700 राजपूत महाराणा उदयसिंह के रिश्तेदार थे।

* अगले भाग में हाथियों की लड़ाई, वीर ईसरदास जी चौहान व भोजराज जी चौहान के शौर्यपूर्ण बलिदान के बारे में लिखा जाएगा

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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