मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ (भाग – 1)

राव मालदेव राठौड़ का जन्म परिचय :- ये मारवाड़ नरेश राव गांगा के ज्येष्ठ पुत्र थे। कुँवर मालदेव की माता माणकदे देवड़ी थीं, जो कि सिरोही के राव जगमाल की पुत्री थीं। कुँवर मालदेव का जन्म 5 दिसम्बर, 1511 ई. को शुक्रवार के दिन हुआ।

1527 ई. – खानवा के युद्ध में कुँवर मालदेव के जाने का वर्णन :- कुछ लेखकों ने कुँवर मालदेव के सेना सहित खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा का साथ देने के लिए जाने की बात लिखी है।

परन्तु मालदेव जी से संबंधित ख्यातों, मेवाड़ के इतिहास व फ़ारसी तवारीखों, किसी से भी इस बात की पुष्टि नहीं होती है। वास्तव में राव गांगा ने मेड़ता वालों को 4 हजार की सेना सहित खानवा के युद्ध में भेजा था। कुँवर मालदेव ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।

राव मालदेव का राजतिलक :- 1531 ई. में राव गांगा के देहांत के 15 दिन बाद 5 जून, 1531 ई. को सोजत में राव मालदेव का राजतिलक हुआ। शिलालेखों में राव मालदेव के लिए ‘महाराजा’, ‘महाराजाधिराज’, ‘महाराय’ आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।

सोजत दुर्ग (पाली)

राव मालदेव की सैन्य शक्ति :- राव मालदेव जब गद्दी पर बैठे, तब उनकी सैन्य शक्ति ज्यादा नहीं थी। लेकिन जब वे अपने शासन के चर्मोत्कर्ष पर थे,

तब मारवाड़ की ख्यातों के अनुसार उनकी सेना में 80 हज़ार सैनिक थे। जबकि फारसी तवारीखों के अनुसार राव मालदेव के पास 50 हज़ार की सेना थी।

तबकात-ए-अकबरी में निजामुद्दीन लिखता है कि “मालदेव, जो कि नागौर और जोधपुर का मालिक था, हिंदुस्तान के राजाओं में फ़ौज और ठाट में सबसे बढ़कर था। उसके झंडे के नीचे 50 हज़ार राजपूत थे।”

(सम्भव है कि राव मालदेव की सेना में 80 हजार सैनिक हों, लेकिन सुमेलगिरी के युद्ध के लिए 50 हज़ार ही गए। क्योंकि कभी भी कोई भी शासक सम्पूर्ण सेना के साथ युद्ध लड़ने नहीं जाता था। शेष सेना को राज्य के किलों व थानों पर भी तैनात रखा जाता था।)

राव मालदेव का व्यक्तित्व :- मारवाड़ की ख्यातों में राव मालदेव से संबंधित जो वर्णन दिया है, उससे उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। राव मालदेव मारवाड़ के प्रतापी शासक थे।

राव मालदेव राठौड़

उन्होंने मारवाड़ के किलों को जितनी सुदृढ़ता प्रदान की, उतनी किसी अन्य शासक ने नहीं की। राव मालदेव अत्यधिक महत्वाकांक्षी थे, किसी भूमि पर विजय पाने के लिए वे बल और छल दोनों का प्रयोग करना जानते थे।

राव मालदेव ने अनेक गांव दान में दिए थे, जिससे उनकी दानशीलता का पता चलता है। राव मालदेव बहुत ज़िद्दी थे व ज़िद पर आने के बाद किसी काम को करने में ज्यादा सोचते नहीं थे।

वे अपने अधीनस्थ सामन्तों पर अधिक विश्वास नहीं करते थे और वही बात स्वीकार करते जो उन्हें उस समय ठीक लगती। सुमेलगिरी की पराजय का सबसे बड़ा कारण यही था।

समकालीन मुगल व अफगान लेखकों ने राव मालदेव को उस ज़माने का सबसे प्रतापी हिन्दू शासक लिखा है, क्योंकि राव मालदेव एक विशाल साम्राज्य के स्वामी थे,

जिनके ध्वज तले लड़ने वाले बहादुरों की संख्या बड़ी से बड़ी सल्तनत को जड़ से उखाड़ फेंकने की क्षमता रखती थी। यदि राव मालदेव अपने कुछ अवगुणों से पार पा लेते, तो वे अंत तक अपराजित रहते।

मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित तलवार

निसंदेह राव मालदेव के शासनकाल में मारवाड़ ने अपनी उन्नति के चर्मोत्कर्ष को छुआ था। राव मालदेव ने किलों की सुरक्षा व जलप्रबन्ध पर विशेष ध्यान दिया।

वीरविनोद में राव मालदेव का व्यक्तित्व कुछ इस तरह लिखा है कि “राव मालदेव तेज मिज़ाज, बेरहम, मतलबी व घमंडी थे। लेकिन बड़े बहादुर और बलन्द हिम्मत होने के सबब पहिले सब ऐब रद्द हो गए।

(अर्थात गुणों के चलते अवगुण दब गए) वे अपने नुकसान का बदला लेने को मुस्तैद रहते थे और दूसरे की तारीफ पसंद नहीं करते थे।

मारवाड़ का खुदमुख्तार पहिला राजा राव मालदेव को ही समझना चाहिए, क्योंकि उनसे पहले के राजा छोटे इलाके के मालिक रहे। राव मालदेव ब्राह्मण, चारण की बहुत ख़ातिरी करते थे।”

राव मालदेव के राज्याभिषेक के समय मारवाड़ की स्थिति :- राव मालदेव का जोधपुर व सोजत पर पूर्ण रूप से अधिकार था, लेकिन वे परगने जो राव जोधा ने अपने भाइयों व पुत्रों में बांट दिए थे, उन पर राव मालदेव का सीधा अधिकार नहीं था।

मेहरानगढ़ दुर्ग से जोधपुर शहर का दृश्य

‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ के अनुसार जोधपुर परगने के अंतर्गत जोधपुर नगर, पीपाड़, बिलाड़ा, खैरवा, पाली, गूँदोज, रोहट, भाद्राजूण, दुनाड़ा, कोढसा, बहैलवा, केतु, वैघु, ओसियां, खींवसर, लवेरा, आसोप, महेवा आदि आते थे।

लेकिन वास्तव में भाद्राजूण, दुधवड, बगड़ी, दुनाड़ा, आसोप, खींवसर आदि पर राव मालदेव का सीधा अधिकार नहीं था। जैतारण वाले अवश्य सीधे जोधपुर राज्य की सेवा में थे।

मेड़ता वाले भी जोधपुर दरबार में हाजरी देते थे। ऐसे कई गांव इस समय राव मालदेव के राज्य में शामिल थे, जिनसे राव मालदेव को कोई आय नहीं होती थी, क्योंकि ये गांव राव मालदेव के पूर्वजों ने दान में दिए थे।

इस समय राव मालदेव के पास ना तो अधिक सैन्य शक्ति थी, ना अधिक सामन्त थे और ना ही विस्तृत प्रदेश। राव गांगा के राज्याभिषेक के समय सामन्त भी कम पड़ गए थे, क्योंकि कुछ ने राव गांगा के बड़े भाई वीरम जी का पक्ष लिया था।

मेहरानगढ़ दुर्ग

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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