गुहिलवंशी राजपूतों की रियासत “बड़वानी” का इतिहास

गुहिलवंशी सिसोदिया राजपूतों की रियासत – बड़वानी :- 14वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर कब्ज़ा करने के समय वहां के कई राजपूतों ने मेवाड़ छोड़कर अन्यत्र बसेरा किया था।

यहां से निकले हुए कुछ राजपूतों ने नर्मदा नदी के निकटवर्ती जिस प्रदेश पर अधिकार कर लिया, वो वर्तमान में मध्यप्रदेश में स्थित है। बड़वानी राज्य का क्षेत्रफल 1178 वर्गमील था।

1921 ई. की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 1,20,150 थी। इस समयकाल में इस राज्य की वार्षिक आय लगभग 11 लाख रुपए थी। यहां के राजाओं की उपाधि ‘राणा’ रही व अंग्रेजों के शासनकाल में यहां के राजाओं को 11 तोपों की सलामी का अधिकार प्राप्त था।

यहां इस राज्य की संक्षिप्त वंशावली बताने का प्रयास किया गया है, लेकिन इस राज्य का शुरुआती इतिहास अंधकार में है। इसलिए कुछ पीढ़ी छोड़कर उनका इतिहास यहां लिखा जा रहा है।

धुंधुक नामक एक शासक हुए, जिनके 29वें वंशधर मालसिंह हुए। मालसिंह के 3 पुत्र हुए :- वीरमसिंह, भीमसिंह व अर्जुन। वीरमसिंह अपने पिता के देहांत के बाद गद्दी पर बैठे।

बड़वानी राज्य में स्थित सागर विलास महल

उनके पुत्र कनकसिंह ने अपने बाहुबल से अलीराजपुर राज्य और रतनमाल की बहुत सी भूमि पर अधिकार कर लिया। कनकसिंह ने आवासगढ़ का राज्य अपने काका भीमसिंह को दे दिया।

कनकसिंह स्वयं रतनमाल में रहने लगे। भीमसिंह के बाद क्रमशः अर्जुनसिंह, बाघसिंह व प्रसन्नसिंह शासक बने। प्रसन्नसिंह ने अपनी जीवित अवस्था में राज्य की बागडोर अपने पुत्र भीमसिंह द्वितीय को सौंप दी।

भीमसिंह के बाद क्रमशः बछराजसिंह, प्रसन्नसिंह द्वितीय व लीमजी शासक हुए। राणा लीमजी सिसोदिया इस गद्दी के 45वें शासक थे। इनका राज्याभिषेक 1617 ई. में हुआ। ये बड़े ही विद्यानुरागी थे।

इनके सान्निध्य में गोविंद पंडित ने आवासगढ़ के राजाओं का इतिहास लिखकर उस ग्रंथ को ‘कल्पग्रंथ’ नाम दिया। 1640 ई. में किसी ने लीमजी को ज़हर दे दिया। राणा लीमजी के 5 पुत्र हुए :- चंद्रसिंह, लक्ष्मणसिंह, हम्मीरसिंह, भावसिंह व मदनसिंह।

राणा चंद्रसिंह गद्दी पर बैठे। राणा चंद्रसिंह ने अपनी राजधानी आवासगढ़ की जगह सिद्धनगर स्थानांतरित कर दी। यही स्थान बाद में बड़वानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राणा चंद्रसिंह के बाद उनके पुत्र सूरसिंह गद्दी पर बैठे।

सूरसिंह के बाद उनके भाई जोधसिंह गद्दी पर बैठे। राणा जोधसिंह के बाद उनके पुत्र राणा परबतसिंह गद्दी पर बैठे। 1700 ई. में राणा परबतसिंह को उनके काका मोहनसिंह नेे राजगद्दी से हटाने के प्रयास किए, पर असफल हुए।

1708 ई. में मोहनसिंह से फिर से यही प्रयास किया। इस बार उन्होंने परबतसिंह को गद्दी से हटा दिया और स्वयं गद्दी पर बैठे। राणा मोहनसिंह के समय इंदौर के होल्कर ने सिद्धनगर के कई परगने छीन लिए।

राणा मोहनसिंह सिसोदिया के 3 पुत्र हुए :- माधवसिंह, अनूपसिंह व पहाड़सिंह। मोहनसिंह ने अपने दूसरे पुत्र अनूपसिंह को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए अपने जीते-जी ही उनको राजगद्दी पर बिठा दिया।

माधवसिंह ने अपने पिता को ज़हर देने का प्रयास किया और अपने भाई अनूपसिंह को कैद कर लिया। लेकिन सबसे छोटे भाई पहाड़सिंह ने बहादुरी दिखाते हुए अनूपसिंह को कैद से छुड़वा लिया और पुनः अनूपसिंह को राज्य की गद्दी पर बिठा दिया।

1760 ई. में राणा अनूपसिंह के देहांत के बाद पुनः उत्तराधिकार संघर्ष हुआ। इस झगड़े को पेशवा ने बीच में पड़कर मिटा दिया। राणा अनूपसिंह के बाद उनके पुत्र राणा उम्मेदसिंह गद्दी पर बैठे।

राणा रणजीत सिंह सिसोदिया

राणा उम्मेदसिंह के देहांत के बाद पुनः उत्तराधिकार संघर्ष हुआ, तब अहिल्याबाई होल्कर ने अपने अधिकारी भेजे और तय हुआ कि राणा उम्मेदसिंह के पुत्र राणा मोहनसिंह द्वितीय को गद्दी पर बिठाया जावे।

45 वर्ष राज करने के बाद 1839 ई. में उनका देहांत हुआ। राणा मोहनसिंह द्वितीय के 2 पुत्र थे :- जसवंत सिंह व इंद्रजीत सिंह। राणा जसवंतसिंह गद्दी पर बैठे, लेकिन 15 वर्षों तक शासन की बागडोर राजमाता के हाथों में रही।

1880 ई. में राणा जसवंतसिंह के देहांत के बाद उनके छोटे भाई इंद्रजीत सिंह को गद्दी पर बिठाया गया, पर पुनः 6 वर्षों के लिए बड़वानी राज्य की बागडोर राजमाता के हाथों में रही।

1894 ई. में राणा इन्द्रजीत सिंह के देहांत के बाद उनके पुत्र राणा रणजीत सिंह गद्दी पर बैठे। उन्होंने इंदौर के कॉलेज व फिर अजमेर के मेयो कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें KCIE का खिताब मिला।

राणा रणजीत सिंह ने पहला विवाह पालीताना में व दूसरा विवाह ईडर के राठौड़ वंश में किया। राणा रणजीत सिंह ने अपनी योग्यता से बड़ी प्रसिद्धि पाई। 3 मई, 1930 ई. को उनका देहांत हो गया।

राणा रणजीत सिंह के बाद उनके पुत्र राणा देवीसिंह सिसोदिया बड़वानी की गद्दी पर बैठे। आजादी व एकीकरण के समय बड़वानी के शासक ये ही थे। इनका देहांत 2007 ई. में हुआ।

राणा रणजीत सिंह सिसोदिया

राणा रणजीतसिंह के ज्येष्ठ पुत्र अनिरुद्ध सिंह का देहांत उनके पिता की जीवित अवस्था में ही हो गया था, इसलिए अनिरुद्ध सिंह के छोटे भाई मानवेन्द्र सिंह बड़वानी की गद्दी पर बैठे। इस राज्य की गद्दी पर बैठने वाले वे 58वें राणा हैं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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