रानी उमादे भटियाणी :- ये जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री थीं व मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की रानी धीरबाई भटियाणी की बहन थीं। रानी उमादे इतिहास में ‘रूठी रानी’ के नाम से बहुत प्रसिद्ध हुईं।
राव मालदेव व रानी उमादे का विवाह 30 मार्च, 1536 ई. को हुआ। इस विवाह का हाल कुछ इस तरह है कि राव मालदेव बारात लेकर जैसलमेर पहुंचे।
कहते हैं कि रानी उमादे को ये बात पता चली कि उनके पिता रावल लूणकरण राव मालदेव को मरवाना चाहते हैं। रानी उमादे ने अपना धर्म निभाते हुए ये बात राजपुरोहित राघवदेव के ज़रिए रावजी को बता दी।
रावजी बड़े क्रोधित हुए। कुछ ख्यातों में लिखा है कि रानी उमादे विवाह की पहली रात से ही रूठ गई थीं, जबकि ये असत्य प्रतीत होता है। वास्तविकता में वे विवाह के कुछ वर्ष बाद रूठी थीं।
जब राव मालदेव ने नागौर विजय किया था, तब चारण आशानन्द अपने परिवार सहित जोधपुर आए। उन्होंने राव मालदेव से कहा कि
“नागौर के खां ने हमें घुघरीयाली गांव दिया था, पर अब नागौर पर आपका अधिकार हो गया है, तो हम बड़ी उम्मीद के साथ आपके पास आए हैं।”
राव मालदेव ने घुघरीयाली गांव उनसे ले लिया और उसके बदले कोई और गांव देना चाहा, लेकिन यह बात आशानन्द को मंजूर नहीं थी।
आशानन्द ने अपने 5 पुत्रों आसा, राघव, चागा, जल, मेहा व एक पुत्री दीपू के साथ राव मालदेव के महल आगे धरना दे दिया। फिर रानी उमादे ने उन सभी को सम्मान सहित उठाया, पट्टा बांधा, सेवा की और कपड़े आदि भेंट करके उन्हें प्रसन्न किया।
रानी उमादे को किसी बात से राव मालदेव पर बड़ा क्रोध आया और वे वहां से चली गईं। राव मालदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने रानी उमादे को मनाने के लिए अपने भतीजे ईश्वरदास व आसा बारहठ को भेजा।
काफी मनाने के बाद जब रानी उमादे साथ चलने को तैयार हो गईं, तब मार्ग में कोई बात निकली, जिसके बाद आसा बारहठ ने एक दोहा कहा :- “मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान। दो दो गयंद न बंधही, हेको खम्भु ठाण।।”
अर्थात मान रखना है तो पति को त्याग दो और पति रखना है तो मान को त्याग दो, लेकिन दो हाथियों का एक ही स्थान पर बाँधा जाना असंभव है।
यह सुनकर रानी उमादे ने प्रण लिया कि आजीवन रावजी का चेहरा नहीं देखूंगी। तब रानी उमादे ने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया और ये रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
कुछ समय बाद रूठी रानी कोसाना चली गईं। रानी उमादे ने कुँवर रामसिंह को अपना दत्तक पुत्र मान लिया था। जब राव मालदेव ने कुँवर रामसिंह को देशनिकाला दिया, तब वे रानी उमादे के साथ पहले तो गूंदोज व फिर केलवा चली गईं।
आसा बारठ ने रूठी रानी उमादे पर अनेक कवित रचे। राव मालदेव के देहांत का समाचार सुनने के बाद 10 नवम्बर, 1562 ई. को रानी उमादे केलवा में सती हो गईं।
रानी उमादे भटियाणी द्वारा सती होने के संबंध में एक कवित्त है, जिसका आशय यह है कि “सोलह श्रृंगार सजाकर शरीर में सत्यव्रत को धारण किए हुए जिसके मुख में मानो बारह सूर्य उगे हैं,
ऐसी रानी भटियाणी उमादे ने गंगाजल से स्नान किया। वस्त्र पहनकर घोड़े पर सवार हो शिरोभूषण चोटी और बालों को खोल प्रदक्षिणा देती हुई इसकी गति से चलकर
रानी स्वर्ग को पहुंची और स्वामी मालदेव का मन प्रसन्न हुआ। इस प्रकार रानी उमादे ने राव मालदेव से रूठना दूर किया।”
रानी उमादे के इतिहास को कई पुस्तकों में अलग-अलग तरीके से लिखा गया है। रानी उमादे का जो वर्णन विश्वेश्वर नाथ रेउ ने किया है, वह मुझे अविश्वसनीय लगा इसलिए उसे यहां नहीं लिखा गया है।
इतिहास की अन्य रूठी रानियों से संबंधित तथ्य :-रानी उमादे के अलावा भी राजपूताने के इतिहास में अन्य रूठी रानियों के महल आदि बने हुए हैं। एक रूठी रानी का महल गुजरात के ईडर में है।
12वीं सदी में रानी सुहावा देवी रूठकर मेवाड़ के मेनाल में स्थित महल में रहने लगीं। उन्होंने सुहावेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण भी करवाया। इन्हें भी रूठी रानी ही कहा जाता है।
एक अन्य रूठी रानी का महल ईडर में भी है। मेवाड़ की जयसमंद झील किनारे स्थित एक महल महाराणा जयसिंह ने बनवाया, जो बाद में लोगों ने रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध कर दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
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