मेड़ता के राव जयमल राठौड़ से संबंधित ऐतिहासिक भ्रम

अकबर द्वारा मेड़ता पर आक्रमण के घटनाक्रम में राव जयमल मेड़तिया राठौड़ से संबंधित ऐतिहासिक भ्रम :- 1557 ई. में राव मालदेव ने राव जयमल मेड़तिया राठौड़ से मेड़ता छीन लिया था।

14 जनवरी, 1562 ई. को अकबर अजमेर दरगाह गया। वहां से उसने मिर्ज़ा शरीफुद्दीन, शाह वुदाग खां, अब्दुल मतलाब खां, मुहम्मद हुसैन शेख आदि सिपहसलारों को सेना सहित मेड़ता पर आक्रमण करने भेजा।

मारवाड़ की ख्यातों के अनुसार मेड़ता के राव जयमल राठौड़ ने अकबर के पास जाकर मेड़ता पर राज दिलाने हेतु मदद मांगी थी, जिस पर अकबर ने एक सेना राव जयमल के साथ भेज दी।

यह बात लगभग मारवाड़ की सभी ख्यातों में लिखी है। सभी ख्यातों में एक जैसी बात लिखी होने के कारण ओझा जी जैसे प्रख्यात इतिहासकार ने भी इसी बात को स्वीकार करते हुए लिखा कि

वीरवर राव जयमल राठौड़

“महाराणा उदयसिंह की अनुमति से राव जयमल ने अकबर से मुलाकात की और उससे मेड़ता पर आक्रमण करने के लिए सहायता मांगी।” मेवाड़ के ग्रंथ वीरविनोद में भी यही बात लिखी है।

इतनी जगह एक ही बात लिखी होने के बावजूद मुझे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि राव जयमल राठौड़ जैसे देशभक्त ने इतनी अनुचित कार्रवाई कैसे कर दी।

राव जयमल ने तो एक बार राव मालदेव को परास्त करने के बावजूद न तो उनका पीछा किया और यहां तक कि उनका नक्कारा तक उनके पास ये कहकर भिजवा दिया कि “नक्कारा सम्मान का प्रतीक होता है, राव मालदेव का अपमान मैं अपना अपमान समझता हूँ।”

दूसरी बात महाराणा उदयसिंह भला राव जयमल को जागीर देने के बाद क्यों अकबर के पास भेजेंगे। महाराणा उदयसिंह तो वैसे भी अकबर को अपना शत्रु मानते थे।

यदि राव जयमल को मेड़ता दिलाने का प्रयास किया जाता, तो महाराणा उदयसिंह स्वयं ऐसा कर सकते थे, लेकिन उन्हें अकबर के पास भेजना अविश्वसनीय है।

महाराणा उदयसिंह

फिर मैंने विचार किया कि इस घटना की सत्यता तब तक पता नहीं चल सकती, जब तक फ़ारसी तवारिखें न पढ़ी जाएं। क्योंकि अकबर के पास कब किसने सहायता मांगी, इन बातों का वर्णन उनमें विस्तार से होता है।

1562 ई. में अकबर अजमेर आया था। अकबर के इसी सफर में आमेर के राजा भारमल कछवाहा ने मुगल अधीनता स्वीकार की थी। लेकिन इस सफर में एक घटना और हुई।

अकबरनामा के अनुसार अकबर ने जब दौसा में पड़ाव डाल रखा था, तब वहां राजा भारमल कछवाहा के भाई रूपसी के पुत्र जयमल मिलने आए।

अकबरनामा में आगे यह भी लिखा है कि अकबर ने मिर्ज़ा शरीफुद्दीन के साथ जिन सिपहसलारों को भेजा, उनमें जयमल, लूणकरण व सूजा भी शामिल थे। इन तीनों को सेना में एक ही पक्ष में रखा गया था।

इस वक्त अबुल फ़ज़ल ने इन तीनों का पूरा नाम नहीं लिखा। संयोगवश मुझे एक और फ़ारसी तवारीख पढ़ने को मिली। इस तवारीख का नाम मआसिर-उल-उमरा है, जिसका लेखक शाहनवाज़ था।

राव मालदेव राठौड़

ब्रजरत्नदास ने इस तवारीख का अनुवाद हिंदी में किया था, लेकिन मुझे इसका अंग्रेजी अनुवाद मिला। उसमें भी यही लिखा था कि राजा भारमल के भतीजे जयमल ने अकबर से मुलाकात की।

अकबर ने कहा कि तुम्हारे पिता को भी यहां आकर अधीनता स्वीकार करनी पड़ेगी। फिर जयमल के पिता रूपसी कछवाहा वहां आए और अधीनता स्वीकार की।

इस तवारीख में एक और बात यह भी लिखी है कि जयमल कछवाहा मिर्ज़ा शरीफुद्दीन के पास रहे थे। इसी तवारीख में लूणकरण का पूरा नाम लिखा गया है, उन्हें लूणकरण कछवाहा लिखा गया है।

अकबर द्वारा भेजे गए सिपहसलारों में जयमल, लूणकरण व सूजा के नाम दिए हैं। सूजा अमरसर के शासक थे। अब यह बात युक्तिसंगत भी लगती है कि कछवाहों की सैनिक टुकड़ी को मेड़ता के युद्ध में एक पक्ष में रखा गया होगा।

इस घटना की पुष्टि का एक और बड़ा प्रमाण भी है। फ़ारसी तवारीखों के अनुसार मेड़ता की लड़ाई के बाद अकबर ने जयमल कछवाहा को मेड़ता का गवर्नर बनाया था।

अकबर

ये 2 वर्ष तक मेड़ता के गवर्नर रहे। फिर अकबर ने इनको गवर्नर पद से हटाकर राजा भारमल के भाई जगमाल कछवाहा को मेड़ता का गवर्नर बना दिया।

यदि जयमल राठौड़ अकबर से मदद मांगते और उनको शरीफुद्दीन के साथ मेड़ता लेने भेजा जाता, तो निश्चित रूप से गर्वनर भी जयमल राठौड़ को ही बनाया जाता, न कि जयमल कछवाहा को।

जयमल राठौड़ तो हरमाड़ा के युद्ध के तुरंत बाद से मेवाड़ चले गए थे और वहीं रहे। मेरे इस शोध की पुष्टि और भी दृढ़ हो गई जब साधना रस्तोगी की पुस्तक पढ़ने को मिली।

कुल मिलाकर सारांश यह है कि नामों में समानता होने के कारण जयमल कछवाहा को जयमल राठौड़ समझ लिया गया।

इस शोध का वर्णन मैंने यहां इसलिए किया है, क्योंकि राव जयमल राठौड़ न केवल राजपूताने, बल्कि हिंदुस्तान के इतिहास के सबसे श्रेष्ठ योद्धाओं में से एक हैं।

राव जयमल राठौड़

उनके बारे में जो भ्रांति पुस्तकों में गलत दर्ज हो गई, उसको शोध द्वारा प्रकाश में लाना आवश्यक था। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

5 Comments

  1. Kailash Singh Chundawat
    November 22, 2022 / 7:06 am

    एक बहुत बड़ी इतिहास की भ्रांति को तोड़ कर सच उजागर करने के लिए, समाज आपका हमेसा आभारी रहेगा हुकुम 🙏🙏

    • November 22, 2022 / 7:09 am

      उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद हुकम

  2. GOPAL SINGH MERTIYA
    November 22, 2022 / 2:12 pm

    बहुत ही अच्छी जानकारी हुकुम
    आदरणीय ठाकुर साहब ummed singh ji dholi ने भी इस तथ्य की और इतना ध्यान नहीं दिया
    एक बार फिर से धन्यवाद बन्ना

    • November 22, 2022 / 2:25 pm

      उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद सा

  3. Manish
    December 2, 2022 / 5:13 pm

    सर आपका राजस्थान के प्रति रुझान और उसमें व्याप्त गलतियों को सही करने का काम सराहनीय है।

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