24 जनवरी, 1557 ई. – “हरमाड़े का युद्ध” :- मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह व हाजी खां के बीच बिगाड़ हो गया, जिसके बाद दोनों में युद्ध की बात ठहरी।
इस बार हाजी खां ने मारवाड़ नरेश राव मालदेव से सहायता मांगी। मालदेव जी की शत्रुता महाराणा उदयसिंह से पहले से ही थी, इसलिए उन्होंने हाजी खां को सहायता देने का वचन दे दिया।
महाराणा उदयसिंह फ़ौज लेकर अजमेर की तरफ़ रवाना हुए। हाजी खान भी 5000 पठानों समेत हरमाड़ा पहुंचा।मारवाड़ के राव मालदेव राठौड़ ने 1500 राठौड़ सैनिकों को हाजी खां की मदद के लिए नीचे लिखे सर्दारों समेत भेजा :-
राठौड़ देवीदास जैतावत, जगमाल वीरमदेवोत, रावल मेघराज हापावत, जैतमल जैसावत, पृथ्वीराज कूपावत, महेश घड़सिंहोत, लक्ष्मण भदावत सिंहोत, जैतसिंह, सूरजमल, कुंवर डूंगरसिंह, सींधल देदा, रणधीर।
महाराणा उदयसिंह की मेवाड़ी फौज में शामिल योद्धा :- मेड़ता के राव जयमल राठौड़, रामपुरा के राव दुर्गा सिसोदिया, बूंदी के राव सुर्जन हाडा, बांसवाड़ा के राव प्रतापसिंह,
डूंगरपुर के रावल आसकरण, राव रामचन्द्र, राव नारायणदास, सूजा बालेचा, तेजसिंह डूंगरसिंहोत, चुण्डावत छीतर, डोडिया भीम।
(डॉक्टर साधना रस्तोगी ने मारवाड़ की ख्यातों का सहारा लेते हुए अपनी पुस्तक में इस युद्ध में महाराणा उदयसिंह की सेना में ईडर के राय नारायणदास राठौड़ व देवलिया के रावत तेजसिंह के भी शामिल होने की बात लिखी है,
जो कि गलत है, क्योंकि इस समय ईडर पर राय नारायणदास व देवलिया पर रावत तेजसिंह का शासन ही नहीं था।)
महाराणा उदयसिंह फ़ौज समेत हरमाड़ा पहुंचे, तो मेवाड़ के सामंतों ने महाराणा को सलाह दी कि मारवाड़ और हाजी खां की इस मिली-जुली फ़ौज को हराना आसान नहीं है, पर महाराणा नहीं माने।
हाजी खां ने अपने 4000 पठान सैनिक तो महाराणा की फ़ौज से लड़ने भेज दिए और खुद 1000 पठानों के साथ एक पहाड़ी के निकट छिपा रहा।
महाराणा उदयसिंह इस समय हरावल (सेना की अग्रिम पंक्ति) से ठीक पीछे एक हाथी पर सवार थे। हाजी खां की नज़र महाराणा पर पड़ी, तो उसने 1000 सैनिकों के साथ धावा बोल दिया।
रामपुरा के राव दुर्गा सिसोदिया का घोड़ा मारा गया। राव दुर्गा ने हाथी पर बैठकर युद्ध लड़ना शुरु किया। हाजी खां ने राव दुर्गा के हाथी पर तलवार से वार किया।
मारवाड़ की तरफ से राठौड़ देवीदास जैतावत ने बड़ी वीरता दिखाई। ये सुमेलगिरी में वीरगति पाने वाले जैताजी के पुत्र थे।
मेवाड़ की तरफ से तेजसिंह डूंगरसिंहोत व सूजा बालेचा दोनों ही मारवाड़ के राठौड़ देवीदास जैतावत के हाथ की बरछी लगने से वीरगति को प्राप्त हुए।
तेजसिंह डूंगरसिंहोत व सूजा बालेचा, ये दोनों ही मारवाड़ के सरदार थे, लेकिन राव मालदेव से बगावत करके मेवाड़ आए थे।
मेवाड़ की तरफ से चुण्डावत छीतर व डोडिया भीम भी वीरगति को प्राप्त हुए। (ये डोडिया भीम हल्दीघाटी में लड़ने वाले नहीं, बल्कि कोई दूसरे हैं।)
हाजी खां ने महाराणा के हाथी पर कई तीर चलाए, जिनमें से एक तीर महाराणा उदयसिंह के ललाट पर जा लगा। महाराणा को युद्धभूमि से दूर ले जाया गया।
मेवाड़ी फौज पराजित हुई। मारवाड़ की तरफ से कुंवर डूंगरसिंह, सींधल देदा, रणधीर इस लड़ाई में काम आए। सम्भव है कि ये डूंगरसिंह राव मालदेव के ही पुत्र हों।
हरमाड़ा की इस लड़ाई में मेवाड़ के लगभग 300 व मारवाड़ के 100 सैनिक काम आए। हाजी खां के 900 पठान मारे गए, लेकिन इस युद्ध में मेवाड़ की पराजय का प्रमुख कारण महाराणा उदयसिंह का ज़ख्मी होना था।
तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है कि “मालदेव हिंदुस्तान के बड़े ज़मीदारों में से एक था। एक वही था, जो मेवाड़ के राणा की बराबरी कर सकता था, बल्कि एक लड़ाई (हरमाड़ा युद्ध) में तो उसने राणा (महाराणा उदयसिंह) पर भी फ़तह पाई थी।”
इस युद्ध में वीरता दिखाने के कारण राव मालदेव ने देवीदास जैतावत को बगड़ी का पट्टा व सूरजमल (पृथ्वीराज जैतावत के पुत्र) को 12 गांवों सहित पिचियाक का पट्टा जागीर में दिया।
महेशदास ने हरमाड़ा की लड़ाई में वीरता दिखाई थी। राव मालदेव ने इनको एक हाथी लवाज़मे सहित, तलवार, पालकी, निसान, छड़ी, मोहर व 7 गांव दिए।
राव मालदेव द्वारा दिए गए अन्य गांव :- फलौदी में बावड़ी गांव आसा पुरोहित को 1539 ई. में, बिलाड़ा में बड़ा खुरद गांव पुरोहित खींवा देवा आसावत को,
परबतसर में बावाल गांव ज्ञानदास रूपदास को दिया। ईशरदास के जैसलमेर से वापिस आने पर राव मालदेव ने उनको 24 गांवों सहित हरसोर की जागीर दी।
सूरतसिंह व रामसिंह ने डीडवाना, फतहपुर व झुंझुनूं की लड़ाइयों में बहादुरी दिखाई। राव मालदेव ने 1556 ई. में इनको कीटवासी, मीठड़ी, हीरावती, नंदवाण, जैकरीया आदि कुल 12 गांव दिए।
राजसिंह शेखावत को जागीर देना :- 1556 ई. में राव मालदेव ने राजसिंह शेखावत को फिरवासी, मीठड़ी, हीरावाड़ी, नंदवाणा, जैकरिया आदि गांव जागीर में दिए। डीडवाना की लड़ाई में राजसिंह शेखावत ने वीरता दिखाई थी।
राव मालदेव के समय रेख के उदाहरण :- राव मालदेव ने किलाणसिंह को सोजत के बदले कोसाणा गांव दिया। हालदास जागीरदार के पुत्र बाकसी को सांचौर के बदले कुंडल और दूसरे पुत्र लूणा को सिवाना के बदले घदर्णो गांव दिया।
महेशदास के पुत्र रामदास को 1560 ई. में जोधपुर का बाबरली गांव, हाथी, पालकी, नगाड़ा, निसान, छड़ी, मोर छल आदि दिए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)