मेड़ता का युद्ध :- बांकीदास री ख्यात में मेड़ता का यह युद्ध 1553 ई. में होना लिखा है, लेकिन कहीं-कहीं यह युद्ध 1555 ई. में होना लिखा है।
मारवाड़ के राव मालदेव ने मेड़ता के राव जयमल राठौड़ को कहलवाया कि “तुम मेड़ता को जागीरदारों में बांट दो।” ज़ाहिर सी बात है कि राव जयमल राठौड़ ऐसी बात क्यों स्वीकार करेंगे, तो उन्होंने मना कर दिया।
नतीजतन, राव मालदेव ने मेड़ता वालों को पराजित करने के लिए दशहरा पूजन के बाद सेना सहित मेड़ता की तरफ कूच किया। राव मालदेव की सेना का पड़ाव गंगारड़ा नामक स्थान पर हुआ।
इस समय मेड़ता के राव जयमल राठौड़ की तरफ से अखैराज भादा, चांदराज जोधावत आदि कुछ राजपूत गंगारड़ा गए और वहां से राव मालदेव के प्रधान से कहा कि “यदि रावजी हमें मेड़ता दे दें, तो हम सदा रावजी की सेवा में रहेंगे।”
राव मालदेव ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहलवाया कि मेड़ता के बदले कोई दूसरी जागीर चाहिए हो तो ले लो। इससे मेड़ता वाले नाराज़ हो गए।
अखैराज जी ने राव मालदेव से कहा कि “मेड़ता दे कौन और ले कौन, जिसने आपको जोधपुर दिया है, उसी ने हमको मेड़ता दिया है।”
इतना कहकर राव जयमल के सरदार पुनः मेड़ता चले गए। यहां राव मालदेव ने बहुत बड़ी भूल कर दी। मेड़ता के राठौड़ अपनी बहादुरी और युद्धकौशल के लिए विख्यात थे,
यदि राव मालदेव अपनी ज़िद को महत्व न देते, तो मेड़ता के राजपूत निश्चित रूप से राव मालदेव के राज्य का विस्तार करते। दयालदास री ख्यात के अनुसार राव जयमल राठौड़ द्वारा बीकानेर नरेश से सहायता मांगी गई।
बीकानेर नरेश राव कल्याणमल राठौड़ तो उसी दिन से राव मालदेव के विरोधी बन गए थे, जब उनके पिता राव जैतसी ने राव मालदेव द्वारा बीकानेर पर आक्रमण के समय वीरगति पाई।
राव कल्याणमल ने महाजन के स्वामी ठाकुर अर्जुनसिंह, जैतपुर के स्वामी किशनसिंह, पूगल के भाटी हरा के पुत्र वैरसी, बछावत सागा, श्रृगसर के स्वामी श्रृग आदि को सेना सहित मेड़ता वालों की सहायता हेतु भेजा।
एक दिन गंगारड़ा के तालाब पर राव मालदेव की सेना के घोड़े पानी पी रहे थे, तब राव जयमल के सैनिकों ने उन घोड़ों को पकड़ लिया और मेड़ता ले आए।
इस घटना से क्रोधित होकर राव मालदेव की सैनिक टुकड़ियों व राव जयमल की सैनिक टुकड़ियों के बीच क्रमशः दूदासर के द्वार, मेड़ता शहर व कुंडल नामक स्थान पर लड़ाइयां हुईं।
राव जयमल के आगे युद्धभूमि में कोई ठहर नहीं पा रहा था। राव मालदेव की सेना में भी एक से बढ़कर एक वीर थे, लेकिन राव जयमल के आगे सब फीके पड़ते जा रहे थे।
राव जयमल के साथी अखैराज ने राव मालदेव के सरदार राठौड़ पृथ्वीराज जैतावत को मार दिया। इसके बाद राव मालदेव की सेना के पैर उखड़ गए और पीछे की तरफ लौटने लगे।
राव जयमल के सरदारों ने उनसे कहा कि यह अच्छा समय है, राव मालदेव की सेना का पीछा करना चाहिए। लेकिन राव जयमल ने ऐसा करने से मना कर दिया।
फिर भी बीकानेर की सेना ने राव मालदेव की सेना का पीछा करना जारी रखा। बीकानेर के सरदार श्रृग ने राव मालदेव के सरदार नगा भारमलोत को मार दिया।
एक कोस आगे बढ़ने पर बीकानेर की सेना ने फिर राव मालदेव की सेना को घेर लिया। इस वक्त राव मालदेव के सरदार चांदा वीरमदेवोत ने बड़ी बहादुरी दिखाई।
बीकानेर वालों ने लौटकर राव जयमल को राव मालदेव की सेना के भागने की बधाई दी। राव जयमल ने कहा कि “रावजी की सेना के भागने की बधाई क्यों देते हो, बधाई देनी है तो मेड़ता के बच जाने की बधाई दो।”
इस लड़ाई में राव मालदेव का एक नक्कारा मेड़ता वालों के हाथ लगा। राव जयमल ने कहा कि “नक्कारा सम्मान का प्रतीक होता है, इसे राव मालदेव के पास लौटा दिया जाए।”
मुहणौत नैणसी ने लिखा है कि भाभी जाति के जूला नामक एक व्यक्ति को वह नक्कारा देकर राव मालदेव के पास जाने के लिए कहा गया। इस वक्त राव मालदेव मार्ग में ही थे।
उस व्यक्ति की बड़ी इच्छा हुई कि एक बार यह नक्कारा बजा लिया जावे, तो जब उसने नक्कारा बजाया, तो राव मालदेव को लगा कि मेड़ता की सेना आ रही है।
राव मालदेव ने अपने सरदार चांदा वीरमदेवोत से कहा कि जोधपुर पहुंचने की जल्दी करो। यह घटना निश्चित रूप से राव जयमल के शौर्य का प्रतीक थी। राव मालदेव ने अपनी गलत नीतियों से एक और महत्वपूर्ण सरदार से बैर मोल ले लिया।
मेड़ता के इस युद्ध में राव मालदेव की तरफ से वीरगति पाने वाले योद्धा :- राठौड़ पृथ्वीराज जैतावत, राठौड़ नगा भारमलोत, राठौड़ जगमाल उदैकरणोत खींवसर, धना भारमलोत, सीहड़ पीथो जसवत, राठौड़ सूजा जैतसिंहोत, पंचोली रतना अभारो, पंचो अमो जामावत।
शिवदान सिंह (सुमेलगिरी में वीरगति पाने वाले रामसिंह के पुत्र) मेड़ता की इस लड़ाई में राव मालदेव की तरफ से लड़ते हुए ज़ख्मी हुए। 3 वर्ष बाद इनके पुत्र को राव मालदेव ने रामासडी सहित 4 गांव जागीर में दिए।
राव मालदेव की सेना की एक टुकड़ी अभी भी वहीं कुछ दूरी पर पड़ाव डाले हुए थी। इसी समय मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह बारात लेकर बीकानेर विवाह करने जा रहे थे, तो मेड़ता में पड़ाव डाला।
महाराणा उदयसिंह ने देखा कि मारवाड़ के राजपूत आपस में ही लड़ रहे हैं, तो उन्होंने लड़ाई रुकवाकर सभी को अपने खेमे में बुलवाया। महाराणा ने कुँवर चंद्रसेन व देवीदास जैतावत को समझा-बुझाकर फिर से जोधपुर भेज दिया।
महाराणा ने विचार किया कि कहीं मेरे जाने के बाद फिर से लड़ाई न होने लगे, इसलिए वे जयमल राठौड़ को अपने साथ बारात में शामिल करके बीकानेर ले गए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)