1552 ई. – राव मालदेव द्वारा जैसलमेर पर आक्रमण :- राव मालदेव द्वारा सातलमेर पर आक्रमण करते वक्त सातलमेर के ठाकुर जैतमाल की मदद जैसलमेर वालों ने की थी।
इस बात से नाराज़ होकर राव मालदेव ने 4 अगस्त, 1552 ई. को कुँवर रायमल (राव मालदेव के पुत्र), पृथ्वीराज जैतावत राठौड़, कूंपा उदयसिंहोत, पंचोली नेतसी व अन्य सरदारों को सेना सहित जैसलमेर की तरफ भेजा।
12 अक्टूबर को मारवाड़ की सेना ने जैसलमेर में जैतसमंद तालाब किनारे डेरा डाला। मारवाड़ की ख्यातों के अनुसार जैसलमेर के रावल ने एक लाख रुपए राव मालदेव के सेनापति को दिए और
400 घुड़सवारों सहित राव मालदेव की सेवा में उपस्थित रहने की बात स्वीकार की। फिर राव मालदेव की सेना ने जैसलमेर शहर को लूटकर वहीं दिवाली मनाई।
मुहणौत नैणसी के अनुसार इस लड़ाई में राव मालदेव की तरफ से नींबावत मूला वीरगति को प्राप्त हुए। राव मालदेव की सेना द्वारा जैसलमेर पर आक्रमण करने की घटना का वर्णन जैसलमेर की ख्यातों में नहीं है।
अन्य ऐतिहासिक ख्यातों में भी इस घटना का उल्लेख नहीं है। इसलिए केवल मारवाड़ की ख्यात में वर्णन होने से स्पष्ट नहीं है कि इस घटना में कितनी सच्चाई है।
राठौड़ों व पठानों के बीच हुए जालोर के युद्ध :- जालोर का राज्य बालेचा राजपूतों ने पठानों से छीन लिया। 1552 ई. में पठानों ने मलिक खां के नेतृत्व में जालोर पर चढ़ाई करके राज्य पुनः हासिल करने की कोशिश की।
लासडा की रणभूमि में बालेचों और पठानों में युद्ध हुआ, जिसमें कई बालेचा वीरगति को प्राप्त हुए। बालेचों के कामदार गंगादास जीवित बचे और वे जालोर में किले में चले गए।
मलिक खां ने सांचोर पर अधिकार कर लिया और उसके बाद जालोर के किले के नज़दीक पहुंचकर गंगादास से किले की चाबियां सौंपने को कहलवाया।
गंगादास ने एक हफ्ते का समय मांगा और इसी बीच सींधल राठौड़ों को राव मालदेव के पास भेजकर कहलवाया कि यदि आप मुझे सही सलामत पट्टन (गुजरात) पहुँचा देवें, तो मैं किले की चाबियां आपको सौंप दूंगा।
राव मालदेव ने सही मौका समझकर यह प्रस्ताव स्वीकार किया। राव मालदेव ने राघो पन्नावत, लूणा गंगावत, तिलोकसी आदि को सेना सहित जालोर की तरफ भेजा।
जालोर से 6 कोस दूर हमराली नामक स्थान पर राव मालदेव द्वारा भेजी गई सेना से गंगादास की मुलाकात हुई। राठौड़ों ने गंगादास को सुरक्षित गुजरात पहुंचवा दिया।
फिर सींधल राठौड़ों ने इस सेना को गुप्त मार्ग बताया, जिससे जालोर के किले पर राव मालदेव का अधिकार हो गया। कुछ ही समय बाद मलिक खां ने जालोर पर आक्रमण कर दिया।
राठौड़ों ने बहादुरी दिखाई, लेकिन अंत में उन्हें किला छोड़ना पड़ा। 1553 ई. में जालोर पर मलिक खां का कब्ज़ा हो गया। राव मालदेव से यह पराजय सहन न हुई और उन्होंने स्वयं सेना सहित जालोर की तरफ कूच किया।
पठानों ने मलिक खां को सलाह दी कि हमें किला छोड़ देना चाहिए वरना सब मारे जाएंगे। मलिक खां जालोर का किला खाली करके सांचोर चला गया। जालोर पर राव मालदेव का अधिकार हो गया।
मलिक खां अपने ससुराल शामली में गया और वहां फौज एकत्र करने लगा। 2 वर्ष बाद उसने जालोर शहर के बाहर पड़ाव डाला। 7 दिनों तक दोनों तरफ से लड़ाई जारी रही।
8वें दिन मलिक खां की फौज ने जालोर शहर का भवनकोट नामक द्वार तोड़ दिया और पठान जालोर नगर में दाखिल हो गए।
राठौड़ों ने किले में रहकर कई दिनों तक सामना किया, लेकिन रसद की कमी होने पर किला छोड़ दिया, जिससे मलिक खां का फिर से जालोर पर कब्ज़ा हो गया।
एक फ़ारसी तवारीख के अनुसार किले के ही चांपा व माना नाम के गद्दारों ने मलिक खां से सुलह कर ली, जिससे उन्होंने किले के भेद बता दिए और मलिक खां का जालोर पर अधिकार हो गया।
1553 ई. – नागौर की स्थिति :- सुमेलगिरी के युद्ध के बाद से ही नागौर का इलाका राव मालदेव के हाथ से निकल गया था।
1553 ई. के एक लेख के अनुसार इस्लामशाह सूरी (शेरशाह सूरी के बेटे) ने नागौर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया।
1554 ई. – इस्लामशाह की मृत्यु :- इस वर्ष इस्लामशाह सूरी की मृत्यु हो गई। फिर इस्लामशाह के साले मुबारिज खां ने अपने भाणजे फिरोज़ खां की हत्या करके तख्त हासिल किया और आदिलशाह के नाम से बादशाह बना।
इस समयकाल तक अजमेर पर भी अफगानों का ही कब्ज़ा बना हुआ था। अगले भाग में राव मालदेव राठौड़ व मेड़ता के राव जयमल राठौड़ के बीच हुए युद्ध का रोचक वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)