मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ (भाग – 14)

राव मालदेव के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर रामसिंह का मेवाड़ प्रस्थान :- 1547 ई. में राव मालदेव बाला रोग से ग्रस्त हो गए। बाला रोग को स्नायु रोग व नारू रोग के नाम से भी जाना जाता है। राव मालदेव को पैर में नारू रोग हुआ था।

उनका खाट से नीचे उतरना भी मुश्किल हो गया। परिस्थिति देखकर उनके ज्येष्ठ पुत्र कुँवर रामसिंह ने उनको कैद करके राजगद्दी पाने की योजना बनाई।

रामसिंह ने पृथ्वीराज जैतावत को भी अपनी तरफ मिलाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। रामसिंह के इस षड्यंत्र की बात पृथ्वीराज जैतावत ने राव मालदेव के प्रधान जैसा भैरूदासोत से कह दी।

जैसा भैरूदासोत ने यह बात राव मालदेव को बता दी। राव मालदेव पृथ्वीराज जैतावत पर बड़े प्रसन्न हुए और उनसे कहा कि तुम इस गढ़ के द्वार पर खड़े रहो, रामसिंह को अंदर मत आने देना।

मेहरानगढ़ दुर्ग

राव मालदेव ने उसी समय अपनी रानी लाछलदे कछवाही को भी तलहटी में भिजवा दिया। रानी लाछलदे कुँवर रामसिंह की माता थीं। रामसिंह आए, तो उन्हें किले के द्वार पर ही रोक दिया गया।

राव मालदेव ने रामसिंह से कहलवाया कि तुम अपने साथियों समेत गूंदोच चले जाओ। राव मालदेव की रानी उमादे, जो कि राव मालदेव से रूठी हुई थीं, उन्होंने रामसिंह को गोद लिया था,

इसलिए इस समय वे भी रामसिंह के साथ गूंदोच चली गईं। कुछ दिन गूंदोच में रहने के बाद रामसिंह मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के पास चले गए। महाराणा उदयसिंह ने उनको कई गांवों सहित केलवा की जागीर दे दी।

उपर्युक्त वर्णन ख्यातों में लिखा हुआ मिलता है, लेकिन डॉक्टर ओझा का कहना है कि राव मालदेव अपनी रानी स्वरूपदे झाली पर अधिक मोहित थे, इसलिए उन्होंने उनके पुत्र कुँवर चन्द्रसेन को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

ओझा जी के अनुसार ख्यातों में जान बूझकर रामसिंह पर मालदेव को कैद करवाने की योजना बनाने का आरोप लगाया गया ताकि राव मालदेव के निर्णय को सही ठहराया जा सके।

राव मालदेव राठौड़

हालांकि मेरा मानना है कि ओझा जी द्वारा बताया गया कारण संभावना पर आधारित है, इसलिए पूर्ण रूप से विश्वसनीय नहीं है। रामसिंह द्वारा अवश्य ऐसा कुछ किया गया, जिससे राव मालदेव नाराज़ हुए।

1550 ई. – सातलमेर का युद्ध :- पोकरण-सातलमेर के ठाकुर जैतमाल गोइन्ददासोत के प्रधानमंत्री ने वहां के महाजनों को कष्ट दिया, तो महाजनों ने इसकी शिकायत राव मालदेव से की।

राव मालदेव ने ठाकुर जैतमाल के विरुद्ध फौजी चढ़ाई करते हुए फलौदी में पड़ाव डाला। ठाकुर जैतमाल का विवाह जैसलमेर में हुआ था, इसलिए उनकी मदद खातिर जैसलमेर की फौज ने पोकरण में पड़ाव डाला।

राव मालदेव की सेना ने सातलमेर के किले को घेर लिया और 5 दिन तक गढ़ वालों से लड़ाई जारी रही। राव मालदेव की सेना द्वारा तोप चलाई गई, जिसका गोला सातलमेर के किले में सीधा बावड़ी में जाकर गिरा, जिससे बावड़ी का पानी सूख गया।

पानी समाप्त होने के कारण ठाकुर जैतमाल ने बाहर आकर किला राव मालदेव को सौंप दिया और स्वयं जैसलमेर चले गए। राव मालदेव ने सातलमेर को गिरवाकर पोकरण का कोट बनवाया और वहां एक थाना कायम किया।

पोकरण दुर्ग

डॉक्टर ओझा के अनुसार उस समय पोकरण पर जैतमाल गोइन्ददासोत के पुत्र नरा के पौत्र कान्हा का अधिकार था, लेकिन ओझा जी की यह जानकारी गलत है, क्योंकि इस समय वहां जैतमाल का ही अधिकार था।

1550 ई. – राव मालदेव की कोटड़ा विजय :- बाड़मेर में स्थित कोटड़ा के स्वामी रावत भीम ने 400 घुड़सवार समेत प्रस्थान किया और राव मालदेव के शिविर से ऊंट चुरा लिए।

इस बात से क्रोधित होकर पृथ्वीराज जैतावत ने रावत भीम पर आक्रमण किया और बहुत से भाटी राजपूतों को मारकर पोकरण में मौजूद जैसलमेर की सेना के शिविर को लूट लिया।

पोकरण की लड़ाई में कल्ला (जयमल रूपसीहोत भाटी के पुत्र), वैणीदास (कल्ला के पुत्र), रामदास, दलपत, गोकुल व जैसा करमसोत वीरगति को प्राप्त हुए।

जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार पूंगल के ठाकुर जैसा भाटी ने फलौदी पर आक्रमण किया। इस लड़ाई में भाटी किसना नींबावत, भाटी आम्बा मालावत, भाटी घना आसावत आदि ने वीरगति पाई।

कोटड़ा का किला

मुहणौत नैणसी के अनुसार फलौदी में राव मालदेव की सेना व भाटी राजपूतों के बीच हुई लड़ाई में पंचायण जोधावत के पुत्र केशोदास वीरगति को प्राप्त हुए। फलौदी पर राव मालदेव का अधिकार हो गया।

राव मालदेव के सेनापति पृथ्वीराज जैतावत, रतनसी खींवावत, राठौड़ सिंघण जतसियोत आदि ने कोटड़ा पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की। रावत भीम कोटड़ा से निकलकर जैसलमेर चले गए।

डॉक्टर ओझा के अनुसार रावत भीम पर आक्रमण करने के लिए राव मालदेव ने जैसा भैरवदासोत को सेना सहित भेजा था, जिन्होंने रावत भीम को परास्त करके बाड़मेर व कोटड़ा पर अधिकार कर लिया।

इस प्रकार राव मालदेव ने लगातार अपने पड़ोसी राज्यों पर अधिकार करने के प्रयास जारी रखे और मारवाड़ को अधिक शक्तिशाली बनाने के प्रयास किए।

मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित ढालें आदि

अगले भाग में जैसलमेर व जालोर के युद्धों का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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