शेरशाह सूरी की मृत्यु :- कालिंजर अभियान के दौरान अफगान बादशाह शेरशाह सूरी ने कुछ तोप के गोले मंगवाए और उन गोलों में पलीता लगाकर किले में फेंकने का हुक्म दिया।
इसी दौरान जब एक गोले में पलीता लगाकर फेंका गया, तो वो गोला दीवार से टकराया और शेष बचे गोलों के बीच में गिर पड़ा। इससे पास ही खड़ा शेरशाह सूरी बुरी तरह जख्मी हो गया और 22 मई, 1545 ई. को उसकी मृत्यु हो गई।
शेरशाह के बाद उसका बेटा आदिल खां 25 मई, 1545 ई. को इस्लामशाह सूरी के नाम से तख्त पर बैठा। शेरशाह सूरी की मृत्यु राव मालदेव के लिए वरदान साबित हुई।
शेरशाह सूरी के बाद उसके वंशजों में उस जैसी काबिलियत नहीं थी, जिस कारण अफगानों की सल्तनत शेरशाह के मरते ही कमजोर पड़ गई।
इस्लामशाह सूरी के शासनकाल के शुरुआती दिनों में ही शेख अलाई नाम का एक फकीर 6-7 हज़ार सवारों सहित मक्का की यात्रा पर निकला और जोधपुर में पड़ाव डाला। जोधपुर में अफगान सेनापति खवास खां मौजूद था।
खवास खां भी शेख अलाई के साथ मक्का के लिए निकल पड़ा। राव मालदेव के लिए तो यह सोने पर सुहागा हो गया। सुमेलगिरी युद्ध के बाद राव मालदेव की सेना भी बिखर गई थी।
कई सामन्तों ने भी उनकी कमजोर स्थिति देखकर साथ छोड़ दिया था। लेकिन शेरशाह सूरी की मृत्यु ने राव मालदेव को सम्भलने का अवसर दिया और उन्होंने फिर से सामन्तों व सेना को एकत्र करना शुरू कर दिया।
1546 ई. – राव मालदेव की भांगेसर विजय :- राव मालदेव ने जालोर और परबतसर के परगनों से सेना एकत्र की और भाद्राजूण के पास पाती नामक गाँव में डेरा किया। फिर उन्होंने भांगेसर पर आक्रमण करने की योजना बनाई।
भांगेसर में अफगानों की एक सैनिक चौकी थी, जहां 5 हज़ार अफगान सैनिक थे। राव मालदेव ने भांगेसर पर आक्रमण करके अफगानों को मार-भगाकर वहां अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
इस चौकी से राव मालदेव को अच्छा खासा खज़ाना हाथ लगा। राव मालदेव ने भांगेसर के निकट स्थित कई स्थानों पर अधिकार कर लिया।
भांगेसर के युद्ध में राव मालदेव की तरफ से अनेक वीर वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में राव ऊहड़ जोगा वरसिंगोत अपने 400 सिपाहियों सहित वीरगति को प्राप्त हुए।
रावल हापा महवेचा वरसिंगोत घायल होकर गिर पड़े, उन्होंने अपने 800 सिपाहियों सहित इस युद्ध में भाग लिया था, जिनमें से 100 ने वीरगति पाई।
भाटी वीसो वणवीरोत व मेहा जगहथोत भी वीरगति को प्राप्त हुए। अभीउड़ भीवड के देवराजोत के 120 सिपाहियों ने इस युद्ध में वीरगति पाई। राठौड़ ऊभो वरसिंगोत ने भी वीरगति पाई।
भांगेसर के इस युद्ध में घायल होने वाले वीर :- हापा वरसिंगोत, जैसा भेरुदासोत चांपावत, भाटी किसनो रामावत, तेजसी वणवीरोत।
भांगेसर विजय के बाद राव मालदेव ने जोधपुर से भी अफगानों को परास्त करके अपना अधिकार स्थापित कर लिया। जोधपुर पर अधिकार जमाने में राव मालदेव की तरफ से जोशी उमेदमल ने बड़ी बहादुरी दिखाई थी।
जोधपुर का अफगान हाकिम जोशी उमेदमल के हाथों से ही मारा गया। इस प्रकार भांगेसर व जोधपुर विजय के बाद राव मालदेव ने फलौदी को भी जीतने का प्रयास किया।
1546-1547 ई. – राव मालदेव की फलौदी विजय :- फलौदी के राव को वहां के प्रधानमंत्री जगहथ देपावत ने जहर देकर मार दिया था, जिसके बाद डूंगरसिंह फलौदी के शासक बने।
1546-1547 ई. में राव मालदेव ने जोधपुर में ही डूंगरसिंह को धोखे से बन्दी बना लिया और फिर फलौदी पर आक्रमण किया। फलौदी में प्रधानमंत्री जगहथ ने कुछ देर मुकाबला किया,
लेकिन फिर परास्त हुआ और फलौदी पर राव मालदेव का अधिकार हो गया। विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है कि राव मालदेव ने हम्मीर से फलौदी छीना, लेकिन वास्तविकता में उस समय फलौदी पर डूंगरसिंह का अधिकार था।
राणास गांव जागीर में देना :- 1547 ई. में राव मालदेव ने ठाकुर दिदेसिंह को राणास गांव जागीर में दिया।
राव मालदेव द्वारा जैतारण में दिए गए गांव :- बीकरलाई गांव मूला कूंपावत को, पालीयावास गांव पुरोहित किसनू को 1534 ई. में,
खेनावड़ी गांव चारण बारठ साजन बेटा शिवराज को 1538 ई. में, मोरेई गांव राजगुरु रायसल को 1543 ई. में, चीकरडाई गांव मूलराज राजसिंहोत को 1542 ई. में दिया।
राव मालदेव द्वारा पाली में दिए गए गांव :- अकोली गांव राजगुरु खंगार चांपावत को 1532 ई. में, सोखडावास गांव चारण खडिया रतना को 1541 ई. में दिया।
राव मालदेव द्वारा सांचौर में दिए गए गांव :- तीनरोल गांव जेठा सूरजमलोत को, छरणवस गांव चारण वनसुर भादा को 1534 ई. में, अंगड़ाऊ गांव चारण रोड़िया को 1542 ई. में दिया।
राव मालदेव द्वारा सिवाना में दिए गए गांव :- कालिया वासनी गांव साधू पालीवाल को, रींछोली गांव हेमा चौखावत रोहड़िया को, वास वारेट गांव देवीदान गुणावत को, बड़ोवास गांव जसा गोइंदोत, नरा रो बास गांव मावल वीरसिंह, नाल रो गुडी गांव जैतमालोत वीरमदे को दिया।
राव मालदेव द्वारा मेड़ता में दिए गए गांव :- मोहलवास गांव चारण खिडिया सूरा अचलावत को, जोदड़ा खुरद गांव चारण बीठूअम्बा को 1538 ई. में दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)