1544 ई. – गिरिसुमेल के युद्ध में राव मालदेव की तरफ से वीरगति पाने वाले योद्धा :- बगड़ी के राठौड़ जैता पंचायणोत, आसोप वालों के पूर्वज राठौड़ कूंपा मेहराजोत, रायपुर वालों के पूर्वज राठौड़ खींवकरण उदावत,
खींवसर वालों के पूर्वज पंचायण करमसीहोत, सोनगरा अखैराज रणधीरोत (वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के नानाजी), राठौड़ जोगा अखैराजोत, कान अखैराजोत, राठौड़ रायमल अखैराजोत,
सोनगरा भोजराज अखैराजोत, मानीदास सूरा अखैराजोत, चौहान गोपा अखैराजोत, राठौड़ भदा पंचायणोत, राठौड़ भोजराज पंचायणोत, भाटी पंचायण जोधावत, भाटी कल्याण (केल्हण) आपमल हमीरोत,
भाटी मेरा अचलावत, भाटी सूरा पातावत, भाटी नींबा पातावत, भाटी हमीर लक्खावत, भाटी सूरा परवतोत, भाटी माधा राघोत, भाटी गांगा वरजांगोत, भाटी पृथ्वीराज, राठौड़ भारमल बालावत, राठौड़ भवानीदास,
राठौड़ नींबा आनंदोत, राठौड़ कल्ला सुरजणोत, राठौड़ सुजानसिंह गांगावत, सुरताण गांगावत, राठौड़ हामा सिंहावत, राठौड़ पत्ता कान्हावत, राठौड़ उदयसिंह जैतावत, राव जैतसी उदावत, राठौड़ वैरसी राणावत,
राठौड़ वीदा भारमलोत, हमीर सीहावत, रणमल, जयमल राठौड़, जयमल वीदावत, महेश देदावत, राठौड़ हरपाल जोधावत, जैतसी राधावत, हमीर लाखावत, हरदास खंगारोत, नीवो पतावत, सांखला डूंगरसी माधावत,
सांखला धनराज, जैमल वीदावत डूंगरोत, ऊहड़ वीरा लक्खावत, ऊहड़ सुरजन नरहरदासोत, देवड़ा अखैराज वनावत, सोढ़ा नाथा देदावत, माधोदास राधोदासोत, चारण भाना खेतावत दधिवाड़िया, मांगलिया हेमा,
ईंदा किशना, खींची चाहड़, पहियार जगो रूपावत, सयद खीवो मोकलावत, झाला रूपसी बलकरणोत, धरमदास, राठौड़ रामसिंह भदावत, कछवाहा रूपसी/नेतसी, राजपुरोहित प्रतापसिंह मूलराजोत, पठान अलीदाद खां।
माला जोधावत रामा के भाई इस युद्ध में ज़ख्मी हो गए, उन्हें मेहरानगढ़ दुर्ग में लाकर उपचार किया गया। खेजड़ला री ख्यात के अनुसार सुमेलगिरी के युद्ध में राव मालदेव की तरफ से चारण झूंठा आसिया ने भी भाग लिया था।
सुमेलगिरी में वीरगति पाने वाले भाटी पृथ्वीराज के पुत्र भाटी रायसिंह को राव मालदेव ने सोजत परगने में स्थित रूदिया गांव जागीर में दिया।
सुमेलगिरी में वीरगति पाने वाले राठौड़ रामसिंह भदावत के पुत्र सुल्तानसिंह को राव मालदेव ने 3 वर्ष बाद बिलाड़ा परगने में स्थित खारी गांव जागीर में दिया। इस युद्ध में सावंतसिंह व किशनसिंह ने भी भाग लिया, जिनको बाद में राव मालदेव ने गांव जागीर में दिया।
इन जागीरों से इतना स्पष्ट है कि राव मालदेव को भी इस युद्ध के बाद अपनी गलती पर पछतावा हुआ होगा और उन्होंने इन महान वीरों के बलिदानों का सम्मान किया।
सुमेलगिरी युद्ध में सोनगरा अखैराज जी के बलिदान का वर्णन :- महाराणा प्रताप के नाना सोनगरा अखैराज रणधीरोत ने गिरिसुमेल के युद्ध में वीरगति पाई थी। मेवाड़ के ग्रंथ वीरविनोद में लिखा गया है कि
“ये सोनगरा अखैराज महाराणा प्रताप के नाना नहीं, बल्कि कोई और थे।” वीरविनोद की यह बात असत्य है। वीरविनोद में ऐसा इसलिए लिखा गया है, क्योंकि
कविराजा श्यामलदास से पहले किसी लेखक ने महाराणा प्रताप के राजतिलक (1572 ई.) के समय उनके नानाजी सोनगरा अखैराज के विद्यमान होने की बात लिख दी।
जबकि वास्तव में महाराणा प्रताप के राजतिलक के समय उनके मामा मानसिंह जी सोनगरा विद्यमान थे, न कि नानाजी। सोनगरा अखैराज जी द्वारा गिरिसुमेल में वीरगति पाना शत प्रतिशत सत्य है।
अखैराज जी के पुत्र सोनगरा भोजराज ने भी इसी युद्ध में वीरगति पाई। भोजराज जी के पुत्र जसवंत सोनगरा बीकानेर चले गए।
सुमेलगिरी युद्ध की रणभूमि में कई वीरों की छतरियां मौजूद हैं, जो आज भी उन अमर बलिदानों का स्मरण कराती हैं।
सुमेलगिरी के युद्ध के परिणाम :- सुमेलगिरी युद्ध के कई बुरे परिणाम निकले। सांभर, अजमेर व नागौर प्रदेश, जो कि राव मालदेव ने जीते थे, वे उनके हाथ से निकल गए।
राव मालदेव के प्रति उनके सरदारों में असंतोष की भावना पनपी। मारवाड़ के इतिहास के सबसे बड़े इस युद्ध को आसानी से जीता जा सकता था, लेकिन मालदेव जी की अदूरदर्शिता ने यह सुनहरा अवसर गंवा दिया।
इस युद्ध में राव मालदेव की तरफ से हज़ारों बहादुर राजपूतों ने वीरगति पाई, जिससे मारवाड़ की सैन्य शक्ति बुरी तरह प्रभावित हुई। राव मालदेव का राज्य भी सिमट कर रह गया।
ठीक अगले ही वर्ष शेरशाह की मृत्यु ने राव मालदेव के मन में आस जगाई, लेकिन फिर भी राव मालदेव उस स्थिति में दोबारा कभी नहीं पहुंच सके, जिस स्थिति में सुमेलगिरी युद्ध से पहले थे।
बहरहाल, सुमेलगिरी युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने जोधपुर पर कब्ज़ा करने का इरादा किया। अगले भाग में शेरशाह द्वारा मेहरानगढ़ पर आक्रमण करने का उल्लेख किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)