शेरशाह सूरी द्वारा अजमेर पर हमला :- अफगान बादशाह शेरशाह सूरी ने 80 हज़ार की सेना सहित मारवाड़ की तरफ कूच किया और सबसे पहले अजमेर दुर्ग जीतने का विचार किया।
अजमेर का दुर्ग राव मालदेव ने महेश घड़सीहोत को सौंप रखा था। शेरशाह सूरी की सेना ने अजमेर के किले पर आक्रमण किया, इस समय अजमेर के किलेदार भाटी सांकर सूरावत थे।
राजपूतों की संख्या बेहद कम होने से मामूली लड़ाई हुई और किलेदार घायल हो गए। किलेदार के साथी उनको घायलावस्था में ही किसी तरह बचाकर जोधपुर ले आए और अजमेर पर शेरशाह का कब्ज़ा हो गया।
शेरशाह ने अजमेर में एक सैनिक टुकड़ी सहित सेनापति जलाल खां सुरवानी को तैनात किया। शेरशाह ने राव मालदेव से सीधे न उलझकर पहले अजमेर का किला जीतना उचित समझा,
ताकि राव मालदेव की शक्ति कम की जा सके। इसके अलावा अजमेर मुसलमानों का तीर्थ स्थान भी है, इसलिए अजमेर विजय के बाद शेरशाह की सेना अधिक उत्साह से लड़ती।
राव मालदेव द्वारा शेरशाह के विरुद्ध फौजी चढ़ाई :- राव मालदेव सेना सहित अजमेर के निकट पहुंच गए। शेरशाह सूरी ने सेना सहित आगे बढ़ने के लिए कूच किया, तो राव मालदेव ने अपनी सेना सहित पीछे की तरफ प्रस्थान किया।
इसी तरह शेरशाह आगे बढ़ता जाता और राव मालदेव पीछे हटते जाते। आख़िरकार शेरशाह सूरी ने तो सुमेल गांव में व राव मालदेव ने गिरी (घूघराघाटी) गांव में जाकर पड़ाव डाल दिए।
राव मालदेव की सेना 3 मील तक फैली हुई थी। गिरी गांव में पानी भी उचित मात्रा में था। एक तरफ पहाड़ी व दूसरी तरफ जंगल था। राव मालदेव की इच्छा थी कि अपनी सेना को यहां से और भी पीछे ले जाई जाए।
लेकिन राव मालदेव के सामन्त राव कूंपा जी, राव जैता जी आदि ने कहा कि “अब तक जितनी भूमि से आप पीछे लौटे हैं, वह आपकी जीती हुई थी, पर अब आने वाली सारी धरती हमारे बाप-दादों ने जीती थी, इसलिए हम यहां से पीछे नहीं हटेंगे।”
इसका आशय ये है कि अजमेर से लेकर गिरी गांव तक की भूमि राव मालदेव ने जीती थी, लेकिन जैतारण की भूमि राव ऊदा ने सींधलों से ली थी। एक महीने तक दोनों सेनाएं अपनी-अपनी जगह पड़ाव डालकर बैठी रही।
दोनों पक्षों के बीच मल्लयुद्ध की घटना की वास्तविकता :- मारवाड़ की ख्यातों के अनुसार शेरशाह सूरी ने राव मालदेव की सेना से भयभीत होकर उनके पास मल्लयुद्ध का प्रस्ताव भेजा।
राव मालदेव ने यह प्रस्ताव स्वीकार करके मारवाड़ की तरफ से मल्लयुद्ध के लिए बीदा भारमलोत को भेजना तय किया। यह बात जब शेरशाह सूरी के खेमे तक पहुंची,
तो मेड़ता के राव वीरमदेव ने शेरशाह से कहा कि बीदा को पराजित करना नामुमकिन है, इसलिए मल्लयुद्ध का विचार त्याग दीजिए।
यह घटना नैणसी आदि की ख्यातों में लिखी तो है, पर मुझे इसमें सत्यता नहीं दिखाई देती। इसी तरह के मल्लयुद्ध का वर्णन नैणसी ने मेवाड़-मारवाड़ के बीच भी किया था, वह भी असत्य था।
जिस तरह से राव मालदेव की सेना पीछे हटती जा रही थी व शेरशाह सूरी लगातार आगे बढ़ता जा रहा था, उससे भी यह प्रतीत नहीं होता कि लड़ाई से पहले शेरशाह भयभीत था।
शेरशाह सूरी द्वारा षड्यंत्र करना :- शेरशाह सूरी ने राव मालदेव की शक्ति कमजोर करने के लिए एक चाल चली। उसने कुछ पत्र लिखवाकर एक रेशमी थैले में भरकर राव मालदेव के खेमे के समीप डलवा दिए।
राव मालदेव ने जब ये पत्र पढ़े, तो अचंभित रह गए। ये पत्र कुछ इस तरह लिखे गए थे, ताकि लगे कि पत्र राव मालदेव के सरदारों द्वारा शेरशाह सूरी को लिखे गए हैं। जिनमें लिखा था कि
“राव मालदेव के अधीनस्थ होने के कारण हम उसके साथ यहां आ तो गए हैं, पर अब भी मन में वैरभाव ही है। यदि आप (शेरशाह) हमारा अधिकार हमें पुनः दिला दें, तो हम आपकी सेवा करने और आपकी अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।”
मारवाड़ की ख्यात के अनुसार ये पत्र मेड़ता के राव वीरमदेव ने मारवाड़ी भाषा में लिखवाए थे। मुहणौत नैणसी री ख्यात व मुंशी देवीप्रसाद ने लिखा है कि
शेरशाह ने सिक्कों से भरे थैले राव मालदेव के सरदारों के पास भिजवाए थे, लेकिन यह बात सही नहीं लगती। वास्तव में पत्र वाली बात ही सही है।
क्योंकि पत्र वाली घटना की पुष्टि मारवाड़ी ख्यातों व फ़ारसी तवारीखों दोनों से होती है। राव मालदेव ने पत्र पढ़ते ही अपने सरदारों पर शंका करनी शुरू कर दी।
राव मालदेव का सन्देह कम नहीं हुआ, तो महान सेनानायक राव कूंपा राठौड़ ने राव मालदेव से कहा कि
“सच्चे राजपूतों में ऐसा विश्वासघात पहले कभी नहीं सुना गया। मैं राजपूतों की प्रतिष्ठा पर लगाए गए इस कलंक को अपने रक्त से धोऊंगा या फिर शेरशाह को अपने थोड़े से सैनिकों की सहायता से पराजित करूंगा।”
लेकिन राव मालदेव पर राव कूंपा की बात का कोई असर न हुआ और वे पत्र वाली घटना के चौथे दिन 30 हज़ार सैनिकों के साथ युद्धभूमि छोड़कर रवाना हो गए।
इस समय कुछ सामन्त भी उनके साथ निकल गए, जिन पर राव मालदेव को अधिक विश्वास था। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)