मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ (भाग – 7)

1542 ई. – हुमायूं का मारवाड़ से रवाना होना :- मुगल बादशाह हुमायूं मारवाड़ में आया, लेकिन राव मालदेव की तरफ से उसे कोई सहायता नहीं मिली। इन्हीं दिनों हुमायूं के आदमियों ने फलोदी के निकट एक गाय मार दी।

इस बात का पता राव मालदेव को लगा तो उन्हें हुमायूं से कहलवाया कि “हमारे मुल्क से चले जाओ, वरना मारे जाओगे”।

फिर हुमायूं ने वहां से लौटने का फैसला किया और आसपास से 2 ऊंट सवारों को पकड़ लिया, ताकि वे हुमायूं के साथ में रहकर रास्ता बता सके। हुमायूंनामा में इन्हें गुप्तचर लिखा गया है।

इन दोनों ऊंट सवारों ने मौका देखकर हुमायूं के सैनिकों में से 1-2 के हथियार छीन लिए और कुछ मुगलों को मार गिराया और स्वयं भी बहादुरी से लड़ते हुए मारे गए। इस लड़ाई में हुमायूं का घोड़ा भी मारा गया।

हुमायूं

हुमायूं ने तरदी बेग से कुछ घोड़े व ऊंट मांगे, लेकिन उसने देने से मना कर दिया। फिर हुमायूं पोकरण की तरफ रवाना हुआ। हुमायूं ने अपनी सेना को 3 टुकड़ियों में बांट रखा था।

सबसे आगे सुरक्षा हेतु एक सैनिक टुकड़ी थी। हुमायूं स्वयं एक सैनिक टुकड़ी सहित बीच में था। वह सातलमेर पहुंचा। यहां राव मालदेव के राठौड़ सैनिकों की एक छावनी थी।

हुमायूं के आगे जो सैनिक टुकड़ी चल रही थी, वह रास्ता भटक गई, इसलिए राव मालदेव के सैनिकों से स्वयं हुमायूं की सैनिक टुकड़ी को लड़ना पड़ा। हालांकि इसमें हुमायूं की जीत हुई और वह सेना सहित आगे बढ़ा।

यहीं से हुमायूं के कुछ साथियों ख्वाजा कबीर, ख्वाजा ऊबीर व मेहतर रमजान के राव मालदेव के पास जाने का वर्णन भी मिलता है।

हुमायूं का ये सफर बड़ा मुश्किल से कटा, उसे एक जगह स्थानीय निवासियों के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा। मरुस्थल के रास्ते में हुमायूं के कुछ सैनिक पानी न होने के कारण मर भी गए। जैसे तैसे 22 अगस्त, 1542 ई. को हुमायूं अमरकोट पहुंचा।

राव मालदेव राठौड़

अकबर के दरबारी लेखक निजामुद्दीन ने लिखा है कि “शेरशाह सूरी के कहने पर राव मालदेव ने हुमायूं को कैद करने की कोशिश की थी। हुमायूं ने अतका खां को राव मालदेव के पास भेजा,

लेकिन अतका खां को राव मालदेव ने अपने यहीं रोक लिया, ताकि वह मालदेव के वास्तविक उद्देश्यों को हुमायूं को न बता दे। लेकिन अतका खां किसी तरह वहां से निकला और हुमायूं को खबर कर दी।”

हुमायूं की बहन गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूंनामा में इस घटना से संबंधित जो वर्णन मिलता है, वह इस तरह है :- “जब बादशाह हुमायूं फलौदी पहुंचे, तब जोधपुर के राजा मालदेव ने एक कवच और अशर्फियों से लदा हुआ

एक ऊंट बादशाह हुमायूं के पास भेजा और कहलवाया कि मैं आपको बीकानेर देने को तैयार हूं। इन्हीं दिनों मुल्ला सुर्ख (पुस्तकालयाध्यक्ष) राव मालदेव के यहां गया और वहीं नौकरी करने लगा। उसने एक ख़त बादशाह हुमायूं

को लिखा। इस ख़त में लिखा था कि जहां ठहरे हो वहीं से कूच कर लो, क्योंकि मालदेव की इच्छा आपको कैद करने की है। उसकी बात का भरोसा मत करना, क्योंकि शेरशाह सूरी का एक दूत राजा मालदेव के पास आया था। उस दूत ने राजा मालदेव से कहा कि

गुलबदन बेगम

अगर हुमायूं को पकड़ लो तो तुम्हें नागौर, अलवर जो कहोगे वो देंगे। फिर अतका खां ने भी बादशाह से यही बात कही। बादशाह हुमायूं वहां से लौटने लगे, तभी 2 जासूस वहां लाए गए। उनसे सवाल-जवाब हो रहे थे कि तभी

उनमें से एक ने अपने हाथों को छुड़ाकर महमूद गुर्दबाज़ की कमर से तलवार खींचकर उसी को ज़ख्मी कर दिया। फिर अब्दुलबाकी ग्वालिअरी को मार दिया। दूसरा जासूस भी अपने को छुड़ाकर एक सिपाही से छुरा छीनकर

हमला करने लगा। इन दोनों ने कई सिपाहियों को ज़ख्मी कर दिया और यहां तक कि बादशाह हुमायूं के घोड़े को भी मार डाला। बादशाह हुमायूं वहां से लौटने लगे कि आगे जाकर राजा मालदेव की सेना आ गई। बादशाह ने

ईसन तैमूर सुल्तान, मुनीम खां और दूसरे आदमियों से कहा कि तुम धीरे-धीरे आओ और मालदेव की सेना पर नज़र रखो, ताकि हम कुछ कोस आगे जा सकें। वे लोग ठहर गए पर रास्ता भटक गए। सुबह एक तालाब किनारे बादशाह रुके,

तो राजा मालदेव के सैनिक वहां आ गए। बादशाह ने शेख अली बेग, रोशन कोका, नदीम कोका, मीरवली के भाई मीर पायन्द मुहम्मद और दूसरों को फ़ातिहा पढ़वाकर भेजा और कहा कि काफिरों से लड़ाई लड़ो। बादशाह को लगा कि

राव मालदेव राठौड़

जिन आदमियों को वे मालदेव की फौज पर नज़र रखने के लिए छोड़ आए थे, वे मारे गए या पकड़े गए। बादशाह ने जो फौज भेजी थी, उसमें से शेख अली बेग ने राजपूतों के सरदार को तीर से मार गिराया। राजपूतों को हराने के बाद

इन लोगों ने बेहबूद नाम के एक चौबदार को बादशाह हुमायूं के पास भेजा और तसल्ली दिलवाई कि काफिरों पर फ़तह पा ली है, आप धीरे-धीरे जावें।

फिर वे सवार भी लौट आए जो पहले रास्ता भटक गए थे। फिर बादशाह हुमायूं बड़ी मुश्किल से अमरकोट पहुंचे, जहां के राणा ने बड़ी खातिरदारी की।”

घटना का निष्कर्ष :- गुलबदन बेगम ने काफी विस्तार से ये घटना लिखी है और प्रतीत होता है कि इसमें काफी सत्यता भी है, लेकिन फिर भी कुछ संदेहास्पद बातें अवश्य हैं।

जैसे अतगा खां को राव मालदेव ने रोक लिया होता, तो मेहरानगढ़ की कड़ी सुरक्षा से उसका बच निकलना असम्भव था, इसलिए जाहिर है कि वह राव मालदेव की इच्छा से ही वहां से जा सका।

मेहरानगढ़ दुर्ग

दूसरी बात हुमायूं बड़ी कमजोर स्थिति में मारवाड़ आया था। गुलबदन बेगम के वर्णन से ही स्पष्ट है कि मात्र 2 ऊंट सवारों ने ही हुमायूं के खेमे में कोहराम मचा दिया था।

ऐसी स्थिति में राव मालदेव यदि हुमायूं को पकड़ना चाहते, तो ये काम वे बड़ी आसानी से कर सकते थे। राव मालदेव के पास 50 से 80 हज़ार सैनिक थे, भला उनकी मर्जी के बगैर हुमायूं कैसे बच निकलता।

राव मालदेव की सेना और हुमायूं की सेना के बीच जिस लड़ाई का ज़िक्र गुलबदन बेगम ने किया है, वह लड़ाई निश्चित रूप से हुई थी। लेकिन ये सेना राव मालदेव ने नहीं भेजी थी, ये सैनिक टुकड़ी वही थी, जो गाय मरने की खबर पाकर वहां पहुंची और हुमायूं के सैनिकों से लड़ी।

राव मालदेव ने पहली बार जब हुमायूं के पास संदेश भेजा था, तब उनका उद्देश्य था कि वे और हुमायूं मिलकर शेरशाह सूरी की बढ़ती हुई शक्ति को रोक दे।

लेकिन हुमायूं ने उस समय उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। जब हुमायूं कुछ महीने बाद मारवाड़ आया, तब उसके पास सेना की कमी थी।

राव मालदेव ने विचार किया कि हुमायूं बहुत कमजोर हो चुका है और अब ये शेरशाह का सामना करने जैसी स्थिति में नहीं है, इसलिए हुमायूं की सहायता करने का सीधा अर्थ शेरशाह के आक्रमण को दावत देना होगा।

मारवाड़ में भटकता हुमायूं

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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