1541-1542 ई. – राव मालदेव की बीकानेर विजय :- मारवाड़ नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीका राठौड़ ने 15वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बीकानेर राज्य की स्थापना की थी। राव बीका के पुत्र राव लूणकरण हुए।
इस समय बीकानेर पर राव लूणकरण के पुत्र राव जैतसी राठौड़ का शासन था। इस समयकाल से पहले मारवाड़ व बीकानेर राज्यों में कोई युद्ध नहीं हुआ था।
राव बीका ने एक बार अवश्य मेहरानगढ़ दुर्ग की घेराबंदी की थी, लेकिन बिना किसी लड़ाई के युद्ध टाल दिया गया था। राव बीका ने मारवाड़ नरेश की सहायता भी की थी।
उनके बाद राव जैतसी ने भी एक लड़ाई में राव गांगा का साथ दिया था। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो बीकानेर इस समयकाल तक मारवाड़ का सहयोगी ही रहा था।
लेकिन राव मालदेव काफी महत्वाकांक्षी शासक थे और वे चाहते थे कि राठौड़ों की बीकानेर रियासत को भी अपने राज्य में शामिल कर ली जावे। राव मालदेव की सोच यही थी कि शेखावाटी के कुछ प्रदेश तो पहले ही उनके अधिकार क्षेत्र में आ गए थे।
ऐसे में यदि बीकानेर राज्य पर भी अधिकार हो जाए, तो राजपूताने का एक बड़ा हिस्सा उनके अधीन हो जाएगा। बीकानेर पर आक्रमण करने की बात मन में ठानकर 9 दिसम्बर, 1541 ई. को राव मालदेव ने बीकानेर पर आक्रमण करने का मुहूर्त निकलवाया।
राव जैतसी को खबर मिली कि राव मालदेव बीकानेर पर चढ़ाई करने वाले हैं, तो उन्होंने अपने मंत्री नगराज के साथ विचार विमर्श किया। नगराज ने राव जैतसी से कहा कि राव मालदेव काफी शक्तिशाली हैं और
हम उनका सामना बिना किसी गठबंधन के नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार की चर्चा के बाद राव जैतसी ने मंत्री नगराज को अन्य साथियों सहित अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के पास भेजा।
राव जैतसी ने अपने पुत्र कुँवर कल्याणमल, कुँवर भीम आदि को राजपरिवार व 200 सैनिकों सहित सिरसा नामक नगर में भेज दिया, ताकि वे सुरक्षित रह सकें।
राव जैतसी ने बीकानेर नगर व किले का उत्तरदायित्व सांखला महेशदास व भोजराज रूपावत को सौंप दिया व स्वयं सेना सहित राव मालदेव की सेना का सामना करने के लिए रवाना हुए।
राव मालदेव 20 हज़ार सैनिकों सहित बीकानेर की तरफ रवाना हुए। सेनापति राव कूंपा राठौड़ ने सेना को युद्ध के अनुसार व्यवस्थित करना शुरू किया। दोनों सेनाओं ने पही व सूवा गांवों में डेरे लगाए।
ख्यातों में लिखित घटना के अनुसार राव जैतसी ने पठानों से 2 हज़ार घोड़े खरीदे थे, लेकिन उनकी रकम नहीं चुका सके। पठान वह रकम लेने के लिए रणभूमि में आ गए,
तब राव जैतसी यह मामला सुलझाने के लिए सेना को रणभूमि में ही छोड़कर कुछ साथियों सहित बीकानेर चले गए। जब लौटे तब तक उनके बहुत से सैनिक स्वामी की अनुपस्थिति में इधर-उधर हो गए थे,
अधिकतर सामन्त भी अपनी-अपनी सेना सहित लौट गए थे। फिर राव जैतसी ने बचे-खुचे सैनिकों के साथ ही राव मालदेव से युद्ध लड़ने का फैसला किया। ख्यातों में इस समय राव जैतसी के साथ महज 150 योद्धा होने की बात लिखी है।
राव जैतसी ने साहेबा (सोहबा) नामक गाँव में राव मालदेव की सेना का सामना किया। भीषण युद्ध हुआ, जो कि 3 दिनों तक चलता रहा। इस युद्ध में बीकानेर के मंत्री भीमराज व बीकानेर नरेश राव जैतसी राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुए।
इस युद्ध में राव जैतसी की तलवार से राव मालदेव के 17 सैनिकों ने वीरगति पाई। दोनों तरफ से कुल कितने सैनिक काम आए, यह संख्या ज्ञात नहीं हो सकी है।
जोधपुर की ख्यात के अनुसार यह युद्ध 6 मार्च, 1542 ई. को हुआ, लेकिन यह तिथि गलत है, क्योंकि राव जैतसी की छतरी पर खुदे हुए लेख के अनुसार वे फाल्गुन, विक्रम संवत 1598 (1541 ई.) को वीरगति को प्राप्त हुए।
फिर राव मालदेव की सेना ने बीकानेर दुर्ग पर आक्रमण किया। 3 दिनों तक घेराबंदी रही और फिर चौथे दिन किलेदार भोजराज ने गढ़ के द्वार खोल दिए और दोनों तरफ से भारी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में बीकानेर की तरफ से 1500 बहादुरों ने वीरगति पाई।
जनवरी, 1542 ई. में राव मालदेव ने बीकानेर की प्रबंध व्यवस्था की। इसी दौरान बीकानेर के गढ़ पर भी राव कूंपा ने अधिकार कर लिया।
राव मालदेव ने डीडवाना का क्षेत्र वीर राव कूंपा राठौड़ को जागीर में दे दिया। जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार राव मालदेव ने राव कूंपा को फतहपुर व झुंझुनूं भी जागीर में दे दिए।
राव मालदेव जोधपुर लौट आए और 2 माह बाद मार्च, 1542 ई. में एक बार फिर बीकानेर गए और वहां प्रबंध व्यवस्था की। राव मालदेव ने बीकानेर में थाने भी कायम कर दिए, जहां अच्छी-खासी फ़ौज रखी, ताकि राव जैतसी के कुटुंब वाले पुनः बीकानेर पर अधिकार न कर सके।
राव मालदेव ने मेड़ता वालों से तो पहले ही दुश्मनी मोल ले रखी थी। ऊपर से बीकानेर रियासत के विरुद्ध लड़े गए इस युद्ध ने बीकानेर राव जैतसी के पुत्र कल्याणमल को सदा के लिए मारवाड़ विरोधी बना दिया।
इस प्रकार राव मालदेव अपने राज्य का विस्तार अवश्य कर रहे थे, परन्तु उनके विरोधियों की संख्या भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही थी, जो बस उचित अवसर की प्रतीक्षा में थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)