1540 ई. – राव मालदेव द्वारा जालोर के सिकन्दर खां को कैद करना :- इस समय जालोर पर सिकन्दर खां का कब्ज़ा था। बालेचा राजपूतों ने सिकन्दर खां को जालोर से खदेड़ दिया, जिसके बाद वह राव मालदेव की शरण में गया।
राव मालदेव ने सिकन्दर खां को दुनाड़ा की जागीर दे दी। लेकिन सिकन्दर खां का इरादा खराब था, इसका पता राव मालदेव को चल गया। राव मालदेव सिकन्दर खां को मरवाने ही वाले थे कि वह मौका देखकर साथियों समेत भाग निकला।
राव मालदेव की सेना ने सिकन्दर खां का पीछा किया और उसको कैद करके दुनाड़ा ले आए। इस वक्त सिकन्दर खां के साथी पठान वहां से बच निकले और उन्होंने मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की शरण ली। 1548 ई. में सिकन्दर खां की मृत्यु हो गई।
1540 ई. – राव मालदेव की सांचौर व डीडवाना विजय :- राव मालदेव ने सांचौर पर भी विजय प्राप्त कर ली और इन्हीं दिनों डीडवाना पर भी अधिकार कर लिया। डीडवाना, फतहपुर व झुंझुनूं की लड़ाइयों में राव मालदेव की तरफ से सूरतसिंह व रामसिंह ने बहादुरी दिखाई।
मेवाड़ के कुछ परगनों पर राव मालदेव का अधिकार :- 1534 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण से चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जौहर हुआ व हज़ारों सैनिकों के वीरगति पाने से मेवाड़ को भारी क्षति पहुँची।
फिर दासीपुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी और चित्तौड़ की राजगद्दी हथिया ली। 1539-1540 ई. के दौरान बनवीर के अयोग्य शासन का लाभ उठाते हुए राव मालदेव ने मेवाड़ के 6 प्रदेशों पर अधिकार करके यहां अपने अधिकारी नियुक्त कर दिए।
राव मालदेव ने मेवाड़ के बदनोर, कोशीथल व वीसलपुर प्रदेश को राठौड़ जैतसी उदावत को सौंप दिया। राव मालदेव ने मेवाड़ के मदारिया को राठौड़ कूंपा, नाडौल को राणा पंचायण व जहाजपुर प्रदेश को घड़सी भारमलोत के सुपुर्द कर दिया।
1540 ई. – महाराणा उदयसिंह की चित्तौड़ विजय में राव मालदेव का योगदान :- महाराणा उदयसिंह का विवाह जालोर के अखैराज रणधीरोत सोनगरा चौहान की पुत्री जयवंता बाई जी से हुआ था।
इस विवाह के बाद महाराणा उदयसिंह ने बनवीर को चित्तौड़ से खदेड़ने के लिए पड़ोसी राज्यों व सामन्तों से सहयोग मांगा। राव मालदेव ने राठौड़ कूंपा, अखैराज सोनगरा, कान्ह पंचायणोत, राजसी भैरवदासोत आदि को ससैन्य मेवाड़ भेजा।
महाराणा उदयसिंह व बनवीर की सेनाओं के बीच 2 युद्ध हुए, पहला युद्ध मावली में हुआ व दूसरा युद्ध चित्तौड़गढ़ में हुआ। दोनों ही युद्धों में बनवीर की सेना परास्त हुई और
1540 ई. में चित्तौड़गढ़ पर महाराणा उदयसिंह का अधिकार हो गया। राव मालदेव के सहयोग से प्रसन्न होकर महाराणा उदयसिंह ने 4 लाख फिरोजी सिक्के और बसंत राय नामक एक हाथी राव मालदेव को भेंट किया।
फिरोज़ी सिक्के व हाथी देने की घटना जोधपुर की ख्यात में लिखी है। इस ख्यात में इस लड़ाई में जैता जी का जाना भी लिखा है व घटना 1533 ई. की लिखी है, जबकि उस समय मेवाड़ के महाराणा विक्रमादित्य थे।
डॉक्टर ओझा ने हाथी व सिक्के देने की बात को काल्पनिक करार दिया है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राव मालदेव ने मेवाड़ के जिन परगनों पर अधिकार किया, वह बनवीर के शासनकाल में नहीं, बल्कि महाराणा उदयसिंह के शासनकाल में किया।
इन इतिहासकारों के अनुसार राव मालदेव एक तरफ तो बनवीर के विरुद्ध महाराणा उदयसिंह को सहायता उपलब्ध करवा रहे थे व दूसरी तरफ कूटनीति से मेवाड़ के ही परगनों पर अधिकार कर रहे थे।
राव मालदेव द्वारा जोधपुर में दिए गए गांव :- राव मालदेव ने ढंढारिया गांव मूला कंपावत को, विघई कुवौ गांव भारमल किसनावत को, कलरीयां रीवासणी गांव राइसल राजावत को,
लोदड़ी खुरद गांव टोहा खेतावत पालीवाल को, महिलाबाई खुरद गांव बांझण आवौ खींवावत सोपाउ को, नैहरवौ बड़ौ गांव थाठा गुदवय को, घुवलै रीयों गांव रायमल खेतावत को, जैसलवस गांव व्यास अंबाल श्रीमाली को,
मदादवै री वासणी गांव श्रीमाली को, खेड़ी गांव बीठू मेहा दुसलोत को 1532 ई. में, मीच गांव जगन्नाथ रामनाथ को 1532 ई. में, भींडारी गांव श्रीमाली जोशी नरपत शंकरोत को 1539 ई. में,
चौपासनी गांव चारण रतनु मेघराज को 1540 ई. में, लारोडी गांव खेतावत पालीवाल को 1532 ई. में, झूंठा रो वामणी गांव आसिया झूंठा बीकावत को, बीढा वसणी गांव जोसी नरपत सांकरोत श्रीमाली को,
रलावस गांव जगहट रला गोयंदोत को 1532 ई. में, वींगवी गांव सेवड़ भारतमल को 1531 ई. में, खेड़ापा गांव 1543 ई. में मूलराज को, वासणी गांव सेवड़ भाटी को 1532 ई. में बड़ा खुरद गांव खींवा देवाकरा रा आचारज सीवड़ को दान में दिया।
1543 ई. में सूरजमल रो वास गांव श्रीमाली पीतांबरदास को कथा कहने पर दान में दिया। नगा भारमलोत राव मालदेव की सेवा में थे। नगा भारमलोत के निवेदन पर राव मालदेव की अनुमति से लाखणदुमा गांव चारण आसिया दला सोबावत को दिया गया।
राव मालदेव द्वारा सोजत में दिए गए गांव :- कानोवस व मालुरीयो गांव कूंपा रंजावत को 1532 ई. में, चाहड़वस व घुहड़ीयास वासनी गांव मूला कूंपावत को,
मालपुरियो बड़ो गांव सेवड़ मूलराज को 1542 ई. में, अटपड़ो गांव सेवड़ धूडे को, भाटियां री वासनी गांव बेरिसाल को, रूपावास गांव राजा चौखावत को 1531 ई. में दिया गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)