मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ (भाग – 3)

1536 ई. – राव मालदेव द्वारा मेड़ता पर सेना भेजना :- रीयां के युद्ध के बाद राव मालदेव ने मेड़ता के राव वीरमदेव के विरुद्ध एक सेना भेजी।

उस समय राव वीरमदेव मेड़ता में नहीं थे, लेकिन सही मौके पर मेड़ता पहुंच गए। राव वीरमदेव ने राव मालदेव की भेजी हुई सेना को परास्त कर दिया। (ये घटना सिर्फ एक ही ख्यात में लिखी मिली है, जिससे इस पर कुछ सन्देह है)

इस समय तक राव वीरमदेव का अधिकार चाकसू पर भी हो चुका था। साथ ही बोली, वणाहटो, वरवाड़ो आदि प्रदेशों पर भी उनका अधिकार हो गया।

1537 ई. – राव मालदेव द्वारा अजमेर छीनने का प्रयास :- गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने मालवा पर अधिकार करने के बाद अजमेर पर भी कब्ज़ा कर लिया और वहां शमशेर मुल्क को सेना सहित नियुक्त कर दिया।

राव मालदेव राठौड़

1537 ई. में बहादुरशाह की मृत्यु हुई, जिसके बाद उसके कई सिपाही भी अजमेर छोड़कर चले गए, जिससे अजमेर की सुरक्षा मजबूत नहीं रही। मौके का फायदा उठाकर मेड़ता के राव वीरमदेव ने अजमेर पर अधिकार कर लिया।

इस बात का पता चलने पर राव मालदेव ने अपने प्रधान को अजमेर भेजा और राव वीरमदेव से कहलवाया कि “मेड़ता तुम्हारा है, पर राजा हम हैं और आप हमारे भाई-बंधु सेवक हो, इसलिए अजमेर हमें सौंप दो, क्योंकि गढ़ रखना आपके बस की बात नहीं है।”

1537 ई. – राव मालदेव की मेड़ता विजय :- राव मालदेव ने मेड़ता पर एक सेना भेज दी। राव वीरमदेव ने मेड़ता आकर राव मालदेव की सेना का सामना करना चाहा, लेकिन अपने साथियों द्वारा समझाने पर मेड़ता छोड़कर अजमेर चले गए।

इस प्रकार मेड़ता पर राव मालदेव का अधिकार हो गया। 1538 ई. की एक प्रशस्ति के अनुसार इस समय मेड़ता पर राव मालदेव का ही अधिकार था। राव मालदेव ने अजमेर के निकटवर्ती गांव व मेड़ता का अन्य भू-भाग अपने सरदारों में बांट दिया।

1538 ई. – राव मालदेव की सिवाना विजय :- सिवाना पर राठौड़ डूंगरसिंह जैतमालोत का अधिकार था। 20 जून, 1538 ई. को राव मालदेव ने सिवाना पर आक्रमण किया।

सिवाना दुर्ग

डूंगरसिंह ने सिवाना दुर्ग में ही रहना उचित समझा और किले के भीतर से ही आक्रमण जारी रखा। राव मालदेव ने कई महीनों तक सिवाना दुर्ग की घेराबंदी कर रखी थी,

जिससे किलवालों को रसद आदि की समस्या का सामना करना पड़ा। जब किले में रहना सम्भव न रहा, तब डूंगरसिंह ने बाहर निकलकर सिवाना दुर्ग राव मालदेव के सुपुर्द कर दिया।

राव मालदेव ने किले की चाबियां मांगलिया देवा भादावत को सौंपकर उनको सिवाना का किलेदार बनाया। राव मालदेव ने सिवाना के निकटवर्ती गांव कुंडल को पातल से लेकर सिवाना में मिला दिया।

1538 ई. – टोंक पर राव मालदेव का अधिकार :- राव मालदेव ने टोंक पर अधिकार करके समीप स्थित साखोण नामक गाँव में रावल खेतसी को व बाहतखड़ में भाटी तेजसी भणभीरोत को नियुक्त किया। राव मालदेव ने पुरसलेमाबाद क्षेत्र को ऊमा पंडित को सौंप दिया।

राव मालदेव द्वारा राव वीरमदेव के पीछे सेना भेजना :- 1538 ई. में राव मालदेव की सेना ने मेड़ता के राव वीरमदेव को अजमेर छोड़ने पर विवश कर दिया। राव वीरमदेव नारायणा चले गए और एक वर्ष तक वहीं रायमल कछवाहा के यहां रहे।

राव मालदेव राठौड़

जब राव मालदेव ने सांभर पर अधिकार कर लिया, तब राव वीरमदेव को नारायणा से प्रस्थान करना पड़ा। राव वीरमदेव चाकसू, लालसोट होते हुए बाबल पहुंचे।

उन्होंने अपने परिवार को बाबल में ही सुरक्षित छोड़ दिया और वे स्वयं अपने साथियों सहित मोजाबाद चले गए। इस समय मोजाबाद पर रामचन्द कछवाहा का राज था।

1539 ई. में राव मालदेव ने एक सेना मोजाबाद पर भेजी, तब राव वीरमदेव ने भी मरना ठान लिया और लड़ने को तैयार हुए। लेकिन उनके साथियों ने उनसे कहा कि “यदि मरना ही है, तो अपनी भूमि पर जाकर मरो, दूसरों की भूमि पर क्यों मरते हो”

यह बात सुनकर राव वीरमदेव ने वहां से भी प्रस्थान किया। 1540 ई. में वे मालवा चले गए। मालवा में इस समय सुल्तान कादिरशाह का राज था। सुल्तान ने राव वीरवदेव को रणथंभौर के हाकिम से मिलने को कहा।

इस समय तक राव वीरमदेव अफगान बादशाह शेरशाह सूरी से मिलना तय कर चुके थे। उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं रहा था, क्योंकि राव मालदेव बार-बार मेड़ता पर आक्रमण करने को आतुर थे।

मेहरानगढ़ दुर्ग व जोधपुर शहर

1539 ई. – राव मालदेव की भाद्राजूण विजय :- भाद्राजूण के स्वामी वीरा सींधल थे। राव मालदेव ने भाद्राजूण पर आक्रमण किया, जिसमें वीरा सींधल ने वीरगति पाई। राव मालदेव ने भाद्राजूण को विजय करके अपने पुत्र रतनसिंह को सौंप दिया।

विश्वेश्वर नाथ रेउ ने इस घटना का वर्ष 1531 ई. बता रखा है, लेकिन यह असत्य प्रतीत होता है, क्योंकि यह क्षेत्र राव मालदेव ने अपने पुत्र रतनसिंह को दिया था। 1531 ई. तक तो रतनसिंह पैदा ही नहीं हुए थे।

राव मालदेव की रायपुर विजय :- राव मालदेव ने रायपुर पर सेना भेजी, जहां रायपुर के स्वामी सींधल लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में राव मालदेव की तरफ से रायसिंह चांपावत ने बड़ी वीरता दिखाई।

मेहरानगढ़ दुर्ग में मौजूद ढाल आदि

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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