राव मालदेव के राज्याभिषेक के समय निकटवर्ती राज्य और वहां के शासक :- इस समय फलौदी में हमीर, पोकरण में जैतमाल, मेड़ता में राव वीरमदेव, रीयां में सहसा, सिरोही में राव अखैराज देवड़ा,
बीकानेर में राव जैतसी राठौड़, मेवाड़ में महाराणा विक्रमादित्य, सिवाना में डूंगरसिंह, बिलाड़ा में सीरवी, भाद्राजूण में वीरा सींधल, नागौर में मुहम्मद खां (महमूद खां),
जैसलमेर में महारावल लूणकरण भाटी, आमेर में राजा पूरणमल कछवाहा, बूंदी में रावराजा सुल्तान सिंह हाड़ा, अजमेर में जगमाल, फतहपुर, झुंझुनूं व डीडवाना में कायमखनियों का राज था।
राव मालदेव के समय बादशाहों का राज :- इस समय गुजरात व मालवा पर बहादुरशाह, सिंध में हुसैनशाह का शासन था। मुगल तख्त पर बादशाह हुमायूं बैठा था और उस तख्त पर निगाह गाढ़े हुए अफगान शेरशाह सूरी।
1533 ई. – राव मालदेव की फलौदी विजय :- फलौदी के शासक हमीर थे। 1533 ई. में राव मालदेव ने फलौदी पर विजय प्राप्त की। हमीर के बाद यहां रामसिंह गद्दी पर बैठे, जिन्होंने राव मालदेव की सेवा में उपस्थित रहना स्वीकार किया।
1536 ई. – राव मालदेव की नागौर विजय :- नागौर पर मुहम्मद दौलत खां का राज था। राव मालदेव के पास इस समय ऐसे सेनापति थे, जिनकी प्रशंसा करने के लिए हर व्यक्ति के शब्द कम पड़ जाएं और वे थे वीर कूंपा राठौड़।
ये राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र अखैराज के पुत्र मेहराज के पुत्र थे। 10 जनवरी, 1536 ई. को राव मालदेव ने कूंपा राठौड़ को ससैन्य नागौर भेजा।
कूंपा राठौड़ के युद्धकौशल के आगे नागौर वाले नहीं टिक सके और दौलत खां रणभूमि में मृत्यु को प्राप्त हुआ। मारवाड़ की तरफ से इस युद्ध में पृथ्वीराज ने वीरगति पाई।
राव मालदेव ने वीरम मांगलियोत को नागौर का हाकिम नियुक्त किया और रडौद गांव में अचला पंचायणोत को सेना सहित थाने पर तैनात किया।
1535 ई. से 1537 ई. के मध्य किसी समय रीयां में वीरमदेव के विरुद्ध सहसा की सहायता हेतु राव मालदेव ने नागौर से एक सेना भेजी।
फिर नागौर के मुसलमानों ने अवसर का लाभ उठाते हुए राव मालदेव के बचे-खुचे सैनिकों को परास्त करके राठौड़ों के थानों पर कब्ज़ा कर लिया। नागौर के भावंडा गांव में राव मालदेव ने एक थाना कायम कर रखा था।
नागौर के मुसलमानों ने भावंडा पर हमला किया, इस लड़ाई में अचलसिंह पंचायणोत ने वीरगति पाई। अचलसिंह बड़े ही बहादुर योद्धा थे। एक बार तो वे नागौर शहर के द्वार जोधपुर ले आए थे।
अचला (अचलसिंह) का बदला लेने के लिए वीर जैता व कूंपा ने राठौड़ सेना का नेतृत्व करते हुए नागौर पर आक्रमण किया और वहां शत्रुओं के थानों और गांवों को लूटने लगे।
तब रजलाणी (हीराबाड़ी) गांव के निवासियों ने लूट से बचने के लिए 15 हज़ार रुपए जैता जी को दे दिए। जैता जी ने इस रकम से एक बावड़ी का निर्माण करवाया।
इस बावड़ी के निकट एक शिलालेख खुदवाया गया, जिससे पता चलता है कि बावड़ी का निर्माण कार्य 1537 ई. में शुरू होकर 1540 ई. में समाप्त हुआ। 171 पुरुष व 221 स्त्रियों ने मिलकर इस बावड़ी का निर्माण किया।
इस युद्ध के बाद सन्धि हुई, जिसके तहत नागौर के खान ने निम्नलिखित गांव राव मालदेव के सुपुर्द कर दिए :- हरसोलाव, सोहणो, मोटर गेहूं, चखड़ो, जायल,
खजवाणो, संखवाय, सीहू, छिकणवास, छिगावस, अम्बावसी, चीनड़ी, घरणवास, वाधु, मोउड़ा, पीलवणो, गाहावासणी, बेरावसम टेका, प्रवड़ी वोडवो।
राव मालदेव की बिलाड़ा विजय :- 1536 ई. में राव मालदेव ने बिलाड़ा के सीरवी दीवान (आई माता के महंत) गोविंददास से नज़राना मांगा, लेकिन गोविंददास ने नज़राना नहीं दिया।
फिर राव मालदेव ने बिलाड़ा पर आक्रमण किया। गोविंददास को कैद कर सख्ती की गई, जिसके बाद 121 सीरवी (आई माता पंथ के अनुयायी) जलकर मर गए।
1536 ई. – रीयां का युद्ध :- रीयां के स्वामी सहसा (तेजसिंहोत वरसिंहोत) ने राव मालदेव के पास आकर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। राव मालदेव ने उनको 5 गांवों सहित रीयां की जागीर लिखित में दे दी।
मेड़ता के राव वीरमदेव राठौड़ ने रीयां पर आक्रमण कर दिया। इस समय राव मालदेव नागौर में थे। इस समय नागौर के रड़ौद (रिड़) नामक गाँव में राव मालदेव ने एक थाना कायम कर रखा था।
इस थाने पर 10 हजार घुड़सवार थे, जिनका नेतृत्व वीर जैता व कूंपा राठौड़, अखैराज सोनगरा, बीदा भारमलोत, भादा पंचायणोत आदि योद्धा कर रहे थे। राव मालदेव ने इस थाने के नेतृत्वकर्ताओं को आदेश दिया कि रीयां के स्वामी सहसा की मदद खातिर जाओ।
सहसा 500 सिपाहियों सहित रीयां गांव के बाहर केसरिया करने के लिए तैयार बैठे थे। इस समय राव मालदेव की सेना वहां आ पहुंची। भीषण युद्ध हुआ।
नतीजतन वीरमदेव की सेना को काफी हानि पहुंची और उन्हें पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध में वीरमदेव की तरफ से 500 योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए।
वीरमदेव खुद भी ज़ख्मी होकर अजमेर लौट गए। विजय प्राप्त करके मालदेव जी की सेना पुनः नागौर चली गई। इस युद्ध के बाद राव मालदेव का मेड़ता पर पूरी तरह से अधिकार हो गया।
राव मालदेव द्वारा मेड़ता वालों के विरुद्ध की कार्रवाई भविष्य में काफी महंगी पड़ी। राव मालदेव यदि राव वीरमदेव से सामंजस्य बैठा कर चलते, तो मारवाड़ राज्य के लिए बड़ा अच्छा होता।
परन्तु राव गांगा के शासनकाल में ही मालदेव जी व वीरम जी के बीच मनमुटाव होना शुरू हो गया था। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)