अकबर द्वारा महाराणा प्रताप को अधीनता स्वीकार करवाने के लिए 4 सन्धि प्रस्ताव भेजे गए थे, जिनमें से पहले सन्धि प्रस्ताव के रूप में अकबर के दूत जलाल खां कोरची को सितम्बर, 1572 ई. में मेवाड़ भेजा गया।
महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के मात्र 6 माह बाद अकबर ने अपने तुरन्त बुद्धि तथा वाक् चतुर दरबारी जलाल खां कोरची को भेजा।
दो माह (नवम्बर तक) जलाल खां कोरची ने महाराणा प्रताप को समझाने की बहुत कोशिश की व तरह-तरह के प्रलोभन दिए।
महाराणा प्रताप के एक हाथी रामप्रसाद की मांग भी की गई, पर महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया और रामप्रसाद हाथी को देने से भी इनकार किया।
दूसरे सन्धि प्रस्ताव के रूप में जून, 1573 ई. में अकबर ने आमेर के कुंवर मानसिंह कछवाहा को भेजा। आमेर के कुंवर मानसिंह ने मुगल फौज समेत डूंगरपुर पर हमला कर रावल आसकरण को पहाड़ियों में खदेड़ दिया।
रावल आसकरण के 2 पुत्र बाबा और दुर्गा वीरगति को प्राप्त हुए। इस समय डूंगरपुर ने मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की।
कुँवर मानसिंह डूंगरपुर के रावल आसकरण को पराजित करने के बाद जरुरत से ज्यादा फौज को अजमेर भेजकर खुद अपने कुछ साथियों के साथ महाराणा प्रताप को समझाने उदयपुर पहुंचे।
रावत कृष्णदास चुण्डावत ने महाराणा प्रताप को कुँवर मानसिंह से न मिलने की सलाह दी, पर महाराणा प्रताप ने कुँवर मानसिंह से मिलना तय किया। उदयपुर पहुंचकर कुँवर मानसिंह की मुलाकात महाराणा प्रताप से हुई।
कुँवर मानसिंह ने महाराणा प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार करने की सलाह दी, जिसे महाराणा ने अस्वीकार किया।
महाराणा प्रताप ने कुँवर मानसिंह के लिए उदयसागर झील के सामने वाले टीले पर भोजन का प्रबन्ध करवाया। महाराणा प्रताप ने बीमारी (अजीर्ण/गिरानी) का बहाना बनाकर स्वयं ना जाकर अपने 14 वर्षीय पुत्र कुंवर अमरसिंह को कुँवर मानसिंह के साथ भोजन करने भेजा।
महाराणा ने सरदारगढ़ के भीमसिंह डोडिया को भी कुंवर अमरसिंह के साथ भेजा। कुँवर मानसिंह ने इसे अपना अपमान समझा और भीमसिंह डोडिया की मार्फत (जरिए) महाराणा प्रताप को कहलवाया कि
“गिरानी की दवा मैं खूब जानता हूँ, अब तक तो हमने आपकी भलाई चाही थी, पर आगे को होशियार रहना चाहिए”
महाराणा प्रताप ने भी डोडिया भीम की मार्फत मानसिंह से कहलवाया कि “जो आप अपनी ताकत से आवेंगे, तो मालपुरे तक पेशवाई की जावेगी और जो अकबर के जोर से आवेंगे, तो जहां मिलेंगे वहां खातिर करेंगे” (पेशवाई व खातिर से महाराणा का अर्थ युद्ध से है)
इसके बाद कुँवर मानसिंह बिना भोजन किए ही उठ गए और ये कहते हुए जाने लगे कि “अगली बार भोजन करने अवश्य आउंगा” (भोजन से अर्थ युद्ध से है)।
तभी भीमसिंह डोडिया व कुँवर मानसिंह में और तकरार हो गई। भीमसिंह डोडिया ने कुँवर मानसिंह से कहा कि “जिस हाथी पर चढ़कर तुम आओगे, उसी पर भाला न मारा तो मेरा नाम भी भीमसिंह नहीं”
कुँवर मानसिंह गुस्से में फतेहपुर सीकरी निकल गए और अकबर की माँ हमीदा बानो बेगम से सारा हाल कह सुनाया।
इसके बाद कुँवर मानसिंह अकबर के पास पहुंचे और यही बात कही, तो अकबर ने कुँवर मानसिंह को तसल्ली दी, पर अकबर इस बात से मन-ही-मन बहुत खुश हुआ।
अबुल फजल लिखता है “मानसिंह राणा को समझाने के लिए डूंगरपुर से उदयपुर गया। उदयपुर राणा का वतन था। वह मानसिंह की खातिरदारी करने उसे अपने घर ले गया।
राणा ने अदब के साथ खिलअत पहनी, पर जब मानसिंह ने उसे शाही दरबार में जाने को कहा, तो वह नालियाकती से उजर करने लगा कि बादशाही हुजूर में मेरे जाने का मौका अभी नहीं है”
(अबुल फजल ने पूरी बात नहीं लिखी। या तो कुँवर मानसिंह ने ये बात पूरी नहीं बतायी होगी या फिर अबुल फजल ने बादशाही बड़प्पन दिखाने के लिए ये बात छुपायी होगी।
महाराणा प्रताप बादशाही खिलअत से सख्त नफरत करते थे, इसलिए ये बात गलत साबित होती है। यदि महाराणा ने खिलअत पहनी होती, तो अकबर को शेष 2 सन्धि प्रस्ताव भेजने की जरुरत न पडती)
(इस घटना का लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। इस घटना के मामले में मेवाड़, मुगल व आमेर तीनों के ही इतिहास में पक्षपात देखने को मिलता है।
यह घटना अलग-अलग इतिहासकारों द्वारा उदयसागर की पाल, उदयपुर, गोगुन्दा आदि अलग-अलग स्थानों पर घटित होने का दावा किया जाता है।
परंतु निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो इस संधि प्रस्ताव का परिणाम शून्य रहा, क्योंकि महाराणा प्रताप ने मुगल अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इस विषय में अवश्य संशय है कि महाराणा प्रताप व राजा मानसिंह के बीच बहस हुई या नहीं। आशा है कि इस विषय में भविष्य में कोई बेहतर शोध की कड़ी मिले)
* अगले भाग में प्रसिद्ध क्रांतिकारी केसरीसिंह जी बारहठ द्वारा काल्पनिक रूप से लिखित महाराणा प्रताप व राजा मानसिंह के बीच हुए संवाद का वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
Jaldi se maldev ka itihas ko upload Karo