मेवाड़ में सरदारों की तृतीय श्रेणी में चावड़ा राजपूतों के 2 ठिकाने शामिल हैं, जिनके नाम आर्ज्या व कलड़वास हैं। इनके अतिरिक्त मेवाड़ के सामन्तों की प्रथम व द्वितीय श्रेणी में चावड़ा राजपूतों का कोई भी ठिकाना शामिल नहीं है।
आर्ज्या ठिकाने का इतिहास :- आर्ज्या का ठिकाना राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की सुवाणा तहसील में स्थित है। आर्ज्या की जागीर पर चावड़ा राजपूतों का अधिकार होने से पहले यह जागीर पुरावतों के पास रही थी।
इस जागीर पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के 11वें पुत्र पूरणमल जी के पौत्र मोहकमसिंह का अधिकार था। मोहकमसिंह के पौत्र रणसिंह हुए व रणसिंह के पुत्र प्रतापसिंह हुए।
प्रतापसिंह को मारकर उनके छोटे भाई पद्मसिंह ने आर्ज्या की जागीर हथिया ली। 1808 ई. में महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में पानसल के शक्तावतों ने बालेराव की मदद से आर्ज्या का ठिकाना पुरावतों से छीन लिया।
महाराणा भीमसिंह ने आर्ज्या का ठिकाना शक्तावतों से छीनकर प्रतापसिंह पुरावत के ज्येष्ठ पुत्र उम्मेदसिंह के पुत्र खुमाणसिंह पुरावत को सौंप दिया। खुमाणसिंह के पुत्र चन्दनसिंह पुरावत हुए।
महीकांठा (गुजरात) में स्थित बरसोड़े के स्वामी जगतसिंह चावड़ा थे, जो कि मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह के ससुर थे। जगतसिंह के 2 पुत्र कुबेरसिंह व जालिमसिंह उदयपुर आ गए।
1834 ई. में महाराणा जवानसिंह ने अपने मामा कुबेरसिंह को आर्ज्या व जालिमसिंह को कलड़वास की जागीर दी। कुबरेसिंह चावड़ा व जालिमसिंह उदयपुर में रहते थे। उन्होंने आर्ज्या में बेचर नामक एक व्यक्ति को मुख़्तार बना रखा था।
फिर चन्दनसिंह पुरावत ने बगावत करके बेचर को परास्त करके आर्ज्या पर पुनः अधिकार कर लिया। 10 नवम्बर, 1852 ई. को महाराणा स्वरूपसिंह ने आर्ज्या पर सेना भेजी।
लड़ाई में चन्दनसिंह पुरावत वीरगति को प्राप्त हुए और उनके साथियों को कैद कर लिया गया। फिर आर्ज्या पर चावड़ा राजपूतों का पुनः अधिकार हो गया। कुबेरसिंह चावड़ा के पुत्र फतहसिंह हुए। फतहसिंह के 3 पुत्र हुए :- प्रतापसिंह, नाथसिंह, बख्तावर सिंह।
गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन के चित्तौड़गढ़ आगमन पर 23 नवम्बर, 1881 ई. को चित्तौड़ दुर्ग में महाराणा सज्जनसिंह द्वारा भव्य दरबार का आयोजन किया गया था। इस दरबार में आर्ज्या के प्रतापसिंह चावड़ा भी उपस्थित थे।
प्रतापसिंह चावड़ा के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उनका उत्तराधिकारी उनके छोटे भाई नाथसिंह के पुत्र जोरावरसिंह को बनाया गया। जोरावरसिंह के भी कोई पुत्र नहीं हुआ, तो बख्तावर सिंह के पुत्र अमरसिंह चावड़ा को गोद लिया गया।
अमरसिंह का भी नि:संतान अवस्था में देहांत हो गया, जिसके बाद कलड़वास से नाहरसिंह चावड़ा को आर्ज्या ठिकाने का उत्तराधिकारी बनाया गया।
कलड़वास ठिकाने का इतिहास :- बरसोड़ा के स्वामी जगतसिंह के पुत्र जालिमसिंह चावड़ा को कलड़वास की जागीर दी गई।
महाराणा स्वरूपसिंह का एक विवाह रानी फूल कंवर से हुआ, जो कि कलड़वास के जालिमसिंह चावड़ा की पुत्री थीं। यह विवाह 29 नवम्बर, 1841 ई. को हुआ। इसलिए जालिमसिंह पर महाराणा की विशेष कृपा थी। जालिमसिंह के उत्तराधिकारी कोलसिंह हुए।
1878 ई. में कोलसिंह चावड़ा की पुत्री बख्तावर कंवर से मेवाड़ के महाराणा फतहसिंह जी का विवाह हुआ, इसी विवाह से 22 फरवरी, 1884 ई. को मेवाड़ के अगले महाराणा भूपालसिंह का जन्म हुआ।
कोलसिंह के उत्तराधिकारी अभयसिंह हुए। अभयसिंह चावड़ा के 2 पुत्र हुए :- हिम्मतसिंह व लक्ष्मणसिंह। हिम्मतसिंह का नि:संतान अवस्था में देहांत हो गया, जिसके बाद लक्ष्मणसिंह को कलड़वास ठिकाने का उत्तराधिकारी बनाया गया।
खास संबंधी होने के कारण महाराणा भूपालसिंह ने लक्ष्मणसिंह को कोदूकोटा गांव भी जागीर में दे दिया। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
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