मारवाड़ नरेश राव गांगा राठौड़ (भाग – 6)

1529 ई. – दरियाजोश हाथी को लेकर कुँवर मालदेव व राव वीरमदेव के बीच मनमुटाव :- दरियाजोश नामक हाथी, जो की सेवकी गांव के युद्ध से भागकर मेड़ता चला गया था। उसको मेड़ता के राव वीरमदेव ने अपने यहां रख लिया।

मेड़ता का दरवाजा इस वक्त छोटा था, जिससे हाथी अंदर नहीं जा सका। फिर राव वीरमदेव ने दरवाज़ा तुड़वाया और हाथी को अंदर ले गए। राव गांगा के पुत्र कुँवर मालदेव ने इस हाथी पर अपना अधिकार जताया और अपने पिता सहित मेड़ता गए।

राव वीरमदेव ने भोजन परोसवाया, लेकिन कुँवर मालदेव ज़िद पर अड़ गए कि पहले हाथी दो तो भोजन करें। राव वीरमदेव ने बहुत कहा कि आपको हाथी दे दिया जाएगा, पहले भोजन करें।

लेकिन कुँवर मालदेव नहीं माने और उठकर बोले कि “मेड़ता की भूमि पर एक दिन मूली अवश्य बोउंगा”। इस बात से राव वीरमदेव को बहुत बुरा लगा।

राव गांगा राठौड़

राव गांगा ने राव वीरमदेव को प्रसन्न करने के लिए घोड़ा सिरोपाव भेंट किया और कहा कि “जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक तो ठीक है, पर मेरे मरने के बाद मालदेव तुम्हारा अहित करेगा, इसलिए हाथी भिजवा देना।”

राव गांगा जोधपुर लौट गए। फिर राव वीरमदेव ने कुँवर मालदेव के लिए दरियाजोश हाथी व राव गांगा के लिए 2 घोड़े जोधपुर भिजवाने के लिए रवाना किए।

दरियाजोश हाथी ज़ख्मी तो पहले से ही था, रास्ते में पीपाड़ गांव में उस हाथी के घाव फूट गए और वह मर गया। राव वीरमदेव के आदमी केवल 2 घोड़े लेकर जोधपुर पहुंचे और सारी बात कह सुनाई।

राव गांगा तो समझ गए, पर कुँवर मालदेव नहीं माने। राव गांगा ने कुँवर मालदेव से कहा कि हाथी मरा तो हमारे ही राज्य में है, तो फिर अब कैसा मनमुटाव ? लेकिन फिर भी कुँवर के मन से यह बात नहीं गई।

राव गांगा राठौड़

1531 ई. – राव गांगा का सोजत पर आक्रमण :- राव गांगा ने अपने बड़े भाई वीरम जी के विरुद्ध सेना सहित कूच किया। कुँवर मालदेव भी रावजी के साथ थे।

धेनावस गांव में पहुंचकर रावजी ने सोजत के प्रबंधक मुहता रायमल के पास सन्देश भिजवाया कि “सचेत हो जाओ, हम आ रहे हैं”।

राव गांगा ने सोजत पर आक्रमण किया और नगर में प्रवेश किया, तब तक मुहता रायमल भी अपने साथियों सहित वहां आ गए। मुहता रायमल अपने 35 साथियों सहित वीरगति को प्राप्त हुए।

राव गांगा ने सोजत के किले में प्रवेश किया और वीरम जी को पालकी में बिठाकर कहा कि आप बाला गांव में चले जाइये, आज से वही आपकी जागीर है।

सोजत दुर्ग

महाराणा रतनसिंह द्वारा राव गांगा के विरुद्ध सेना भेजना :- मारवाड़ की एक ख्यात में वर्णन है कि जब राव गांगा ने अपने बड़े भाई वीरम जी को सोजत से निकाल दिया, तब वीरम जी ने अपने साले मेवाड़ के महाराणा रतनसिंह से सहायता मांगी।

महाराणा रतनसिंह ने एक सेना भेजी, जिसको राव गांगा में परास्त कर दिया। हालांकि महाराणा रतनसिंह द्वारा सेना भेजने का वर्णन मेवाड़ के इतिहास में नहीं मिलता है।

मारवाड़ की एक अन्य ख्यात में महाराणा रतनसिंह की जगह महाराणा सांगा द्वारा स्वयं सेना सहित वीरम जी की सहायता हेतु आने की बात लिखी है, जिससे मालूम पड़ता है कि इस घटना में कोई सत्यता नहीं है।

राव गांगा का देहांत :- मारवाड़ की एक ख्यात में वर्णन है कि राव गांगा अफीम का सेवन बहुत अधिक करने लग गए थे और एक दिन अफीम का सेवन करते-करते मेहरानगढ़ किले की खिड़की से गिर पड़े, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

कुछ लोग दौड़कर गए और राव गांगा को उठाने का प्रयास किया, इस समय कुँवर मालदेव ने देखा तो उन्हीं लोगों पर सन्देह किया जो उन्हें उठाने गए थे। कुँवर मालदेव ने आदेश दिया कि इन लोगों को कैद कर लिया जावे।

यह आदेश सुनकर योगी सोमनाथ/सुखनाथ व चारण चांपा भाग गए। जो वहीं खड़े रहे उनमें तिंवरी के स्वामी भाटी भाण व तिंवरी के पुरोहित मूलराज थे, ये दोनों ही कुँवर मालदेव के आदेश से मारे गए।

इससे संबंधित एक पुराना पद्य भी है कि “भाण पेलां परडियो, पड्यो मूले पर हाथ। गोखा गांगा गुडकियो, भाग गयो सुखनाथ।।”

मेहरानगढ़ दुर्ग

विश्वेश्वर नाथ रेउ लिखते हैं कि “21 मई, 1531 ई. को राव गांगा महल की एक खिड़की के पास बैठकर शीतल वायु का सेवन कर रहे थे, उस समय कुछ तो अफीम के सेवन के प्रभाव से व कुछ गर्मी में शीतल वायु के लगने से उन्हें झपकी आ गई और वे खिड़की से नीचे गिर पड़े। इससे उसी समय उनका देहांत हो गया।”

दयालदास री ख्यात में लिखा है कि “मालदेव ने पहले रसोइये को राव गांगा के भोजन में विष मिलाने के लिए कहा। पर रसोइया स्वामिभक्ति और मालदेव से भय की दुविधा में पड़ गया।

इसलिए वह स्वयं ही ज़हर खाकर मर गया। इसके पश्चात मालदेव ने प्रातःकाल बुर्ज़ की खिड़की पर बैठकर दातुन कर रहे गांगा को अभिवादन करके गढ़ से नीचे गिरा दिया।”

डॉक्टर ओझा, कविराजा श्यामलदास व मुंशी देवीप्रसाद ने लिखा है कि “कुँवर मालदेव ने अपने पिता राव गांगा को झरोखे से गिराकर मार दिया।” डॉक्टर ओझा के अनुसार राव गांगा का देहांत 9 मई, 1532 ई. को हुआ।

निष्कर्ष :- मारवाड़ की कई पुरानी ख्यातों, मेवाड़ व बीकानेर के इतिहास की पुस्तकों में कुँवर मालदेव द्वारा राव गांगा की हत्या करना लिखा है, लेकिन कुछ पुस्तकें इस बात का खंडन करती हैं और उनका कहना है कि उक्त घटना से संबंधित दोहे का अर्थ गलत निकाला गया है।

हालांकि कुँवर मालदेव द्वारा राव गांगा की हत्या करना असम्भव प्रतीत नहीं होता। क्योंकि मेवाड़ में भी महाराणा कुम्भा के ज्येष्ठ पुत्र ऊदा ने उनकी हत्या की थी।

मालदेव जी महत्वाकांक्षी भी थे और इस समय राव गांगा शासन प्रबंध में अकुशल व अफीम की लत में डूबे रहते थे। इतिहासकारों के बयानों में मतभेद के कारण पूर्ण रूप से कहना मुश्किल है कि वास्तव में क्या हुआ था।

राव गांगा राठौड़

राव गांगा का शासन :- राव गांगा का व्यक्तित्व सही था, लेकिन अफीम की बहुत ज्यादा लत थी। युद्धों में जाते समय भी राव गांगा अत्यधिक अफीम का सेवन करते थे।

राव गांगा का युद्धकौशल सही नहीं था और ना ही उनमें नेतृत्व की क्षमता थी। सोजत की छोटी सी सेना ने उनकी विशाल सेना को परास्त कर दिया था। राव गांगा का अधिकांश शासनकाल ही सोजत से संघर्ष में बीत गया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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