1529 ई. – सेवकी गांव का भीषण युद्ध :- शेखा जी (राव सूजा के तीसरे पुत्र) पीपाड़ में रहा करते थे। गर्मियों के दिनों में जोधपुर आए, तब एक दिन राव गांगा व शेखा जी झरने में नहाने गए, जहां किसी बात पर दोनों में अनबन हो गई।
शेखा जी बिना भोजन किए ही पीपाड़ लौट गए। राव गांगा के बड़े भाई वीरम जी के मंत्री मुहता रायमल ने मौका समझकर शेखा जी को अपने पक्ष में करते हुए उन्हें सोजत ले आए।
सिरोही के महाराव अखैराज देवड़ा अपने बहनोई राव गांगा राठौड़ से मिलने जोधपुर आए। कुँवर मालदेव (राव गांगा के ज्येष्ठ पुत्र) व महाराव अखैराज शिकार के लिए निकले और पीपाड़ के निकट पहुंच गए।
पीपाड़ के स्वामी शेखाजी इन दोनों का आदर सत्कार करके अपने महल में ले आए। शेखाजी ने उनको अपना शस्त्रागार आदि दिखाया।
फिर लौटते समय महाराव अखैराज ने कुँवर मालदेव से कहा कि “मुझे सन्देह होता है कि शेखाजी के मन में खोट है, आप देखना चाहें तो इनका एक गांव ज़ब्त करके अनुभव कर लीजिए”।
कुँवर मालदेव ने यह बात अपने पिता राव गांगा को बताई, तो राव गांगा ने पीपाड़ के अंतर्गत आने वाला एक गांव ज़ब्त कर लिया, जिसके बाद शेखाजी ने बहुत क्रोध व्यक्त किया।
फिर राव गांगा को एहसास हुआ कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। राव गांगा ने शेखाजी के पास एक सन्धि प्रस्ताव भिजवाया और कहलवाया कि हमें अपनी-अपनी सीमाएं तय कर लेनी चाहिए।
शेखाजी भी इस बात को मान गए, लेकिन शेखाजी के पास इस समय ऊहड़ राठौड़ हरदास मौजूद थे जो राव गांगा के विरोधी थे। उन्होंने शेखाजी को इस सन्धि प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए कहा।
शेखाजी हरदास की बातों में आ गए और सन्धि से इनकार कर दिया। राव गांगा को इस बात की सूचना मिली, तो उन्होंने क्रोधित होकर पीपाड़ पर आक्रमण करने के लिए ससैन्य कूच किया।
राव गांगा द्वारा बीकानेर वालों से सहायता मांगने पर बीकानेर नरेश राव जैतसी राठौड़ भी अपनी सेना के साथ जोधपुर की सेना में शामिल हो गए।
राव गांगा ने मेड़ता के राव वीरमदेव राठौड़ के पास भी सन्देश पहुंचाया कि इस युद्ध में हमारा साथ दो, तब राव वीरमदेव ने ये कहते हुए मना कर दिया कि हम इस गृह कलह में नहीं पड़ना चाहते।
शेखाजी ने अपना पक्ष कमजोर समझकर किसी से मदद मांगने की सोची और नागौर के नवाब महमूद खां (उपाधि सरखेल खां) से फ़ौजी मदद मांगी। नवाब महमूद ने अपने सेनापति दौलत खां के नेतृत्व में सेना भेज दी। शेखाजी ने वेराही गांव में डेरा किया।
घांघाणी गांव में राव गांगा व राव जैतसी की सेनाओं के डेरे हुए। यहां से राव गांगा ने पुनः शेखाजी के पास सन्धि प्रस्ताव भेजा और कहलवाया कि जिस जगह हमारे डेरे लगे हैं वहां तक हमारी जमीन और उससे आगे की तुम्हारी।
लेकिन हरदास राठौड़ के बीच में पड़ने से यह सन्धि असफल रही और शेखाजी ने कहलवा दिया कि “सेवकी गांव में हमने ज़मीन साफ करवा दी है, युद्ध वहीं होगा।”
सेवकी गांव में दोनों सेनाओं में जमकर युद्ध होने लगा। एक ख्यात में वर्णन है कि युद्ध के दौरान राव गांगा अफीम का सेवन कर रहे थे, तब खींवाजी ने कहा कि ये कोई समय नहीं है इन सबका, तुरंत घोड़े पर सवार होइये।
ये सुनकर राव गांगा ने कहा कि मैं भी देख रहा था कि कोई सरदार मुझे कटुवचन कहने की हिम्मत करता है या नहीं। राव गांगा घोड़े पर सवार हुए और उनकी नजर एक हाथी पर पड़ी, जिसकी सूंड में तलवारें लगी हुई थीं।
इस हाथी का नाम दरियाजोश था। यह हाथी नागौर के मुसलमानों का था। वह लगातार कई सैनिकों को मारे जा रहा था। वह हाथी राव गांगा की तरफ दौड़ा, रावजी ने कई तीर चलाए पर हाथी ने अपने कदम नहीं रोके।
तब राव गांगा ने तीर चलाकर महावत को मार गिराया और फिर एक तीर सीधा हाथी के कुम्भस्थल पर मारा, जिसके बाद हाथी पीछे मुड़ा और अपनी ही सेना को कुचलते हुए मेड़ता की तरफ भाग निकला। इस हाथी को मेड़ता के राव वीरमदेव ने पकड़ लिया।
इस समय शेखाजी के पास केवल 700 घुड़सवार थे। दौलत खां अपने सिपाहियों सहित भाग निकला। ऊहड़ राठौड़ हरदास वीरगति को प्राप्त हुए। शेखाजी ज़ख्मी होकर गिर पड़े, युद्ध समाप्त हुआ।
राव गांगा व राव जैतसी, शेखाजी के पास आए और उनको पानी पिलाया। शेखाजी ने राव जैतसी से कहा कि “मैंने आपका तो कुछ नहीं बिगाड़ा था, आपको हम चाचा-भतीजे के झगड़े में नहीं पड़ना चाहिए था, जैसी मेरी दुर्गति हुई है, वैसी आपकी भी होगी।”
राव गांगा ने शेखाजी से कहा कि आपकी कोई इच्छा हो तो कहिए। शेखाजी ने कहा कि “सूराचंद के स्वामी चौहान राजपूत ने मेरे एक आश्रित राठौड़ को मार दिया था, जिसके बाद मैंने उसको मारने का प्रण लिया था, अगर तुम मेरा ये प्रण पूरा कर दो, तो बेहतर रहेगा।”
इतना कहकर शेखाजी ने अपने प्राण त्याग दिए। एक ख्यात में ऐसा लिखा है कि “शेखाजी इस लड़ाई में जख्मी हुए थे, तब उनके साथी उन्हें चित्तौड़ ले आए। चित्तौड़ पर बहादुरशाह गुजराती के आक्रमण के समय शेखाजी ने वीरगति पाई।”
हालांकि ये बात सही नहीं है। शेखाजी सेवकी गांव में ही वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस युद्ध में कुँवर मालदेव ने भी वीरता दिखाई। कुँवर मालदेव ने नागौर के मुसलमानों की सेना के जो हाथी इस लड़ाई में थे, उनमें से कइयों को जब्त कर लिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
नमस्कार महोदय क्या आप चिड़ारो के संबंध में जानकारी प्रस्तुत करने की कृपा करेंगे