राव गांगा द्वारा सोजत पर आक्रमण :- राव गांगा राठौड़ तो 1515 ई. में मारवाड़ राज्य के स्वामी बन गए और उनके बड़े भाई वीरम जी सोजत परगने के स्वामी बने। दोनों के बीच संघर्ष होना तय था।
सोजत परगने में बगड़ी का ठिकाना पचायण जी (राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र अखैराज के पुत्र) व उनके पुत्र जैता जी के अधिकार में था और ये दोनों ही इस समय राव गांगा की सेवा में जोधपुर गए हुए थे।
अब सोजत पर तो वीरम जी का राज था और बगड़ी भी इसी परगने का हिस्सा था। जैता जी के परिवार वाले बगड़ी में ही थे, इसलिए उनको वीरम जी से भी अच्छे संबंध बनाए रखने थे।
राव गांगा सोजत को बिगाड़ना चाहते थे, क्योंकि वहां वीरम जी उनके प्रतिद्वंद्वी बने बैठे थे। राव गांगा ने जैता जी से कहा कि आप अपने परिवार वालों को बिलाड़ा ले आओ और बगड़ी छोड़ दो।
इस समय बगड़ी का प्रबंध जैता जी के धायभाई रेड़ा के हाथों में था। जैता जी ने रेड़ा को पत्र लिखा कि परिवार को बिलाड़ा ले आओ। रेड़ा ने जैता जी से कहलवाया कि बगड़ी तो सोजत परगने का ठिकाना है और सोजत पर वीरम जी का राज है, जब वे कहेंगे तो छोड़ देंगे बगड़ी।
आज्ञा का पालन न होने पर राव गांगा ने सोजत पर सेना भेजी, लेकिन सोजत के प्रबंधक मुहता रायमल ने सेना सहित राव गांगा की सेना का सामना किया। आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ एक परगने के प्रबन्धक ने मारवाड़ नरेश राव गांगा की सेना को परास्त कर दिया।
इसके बाद सोजत वालों का हौंसला दुगुना हो गया। राव गांगा सोजत के किसी एक गांव पर कब्ज़ा कर लेते, तो सोजत वाले जोधपुर के 2 गांव कब्जे में ले लेते।
जोधपुर की ख्यात में राव गांगा की इस पराजय का वर्णन नहीं किया गया है, लेकिन मारवाड़ के लेखक मुहणौत नैणसी ने स्पष्ट रूप से इस पराजय का वर्णन किया है।
मुहता रायमल द्वारा रेड़ा को मारना :- राव गांगा से अपनी पराजय सहन न हुई और उन्होंने जैता जी को ताना मारते हुए कहा कि आप अभी तक अपने परिवार को बगड़ी छोड़ने के लिए राजी नहीं कर सके।
जैता जी ने यह ताना सुनकर तुरंत अपने धायभाई रेड़ा से कहलवाया कि बगड़ी छोड़ दो। रेड़ा ने विचार किया कि क्यों न वीरम जी के प्रबंधक मुहता रायमल को मार दिया जाए, ताकि कोई बखेड़ा ही न हो।
रेड़ा सोजत गए और मुहता रायमल से मिले। फिर मुहता रायमल रेड़ा को वीरम जी के यहां ले गए। वीरम जी की रानी में व्यक्ति की पहचान करने की विलक्षण प्रतिभा थी।
उन्होंने रेड़ा को देखते ही रायमल को एकांत में बुलाकर सचेत करते हुए कहा कि रेड़ा से सावधान रहना, इसकी दृष्टि से लगता है कि कुछ अहित करेगा। लेकिन रायमल को रेड़ा पर विश्वास था।
फिर दोनों वीरमजी से मिलने को चले, कि मार्ग में महल के ऊपर एक चील बैठी दिखाई दी। मुहता रायमल ने चील को उड़ाने के लिए नीचे झुककर पत्थर उठाया,
उसी वक्त रेड़ा ने तलवार से वार किया, पर वार बेकार गया और तलवार से रायमल की पीठ पर मामूली ज़ख्म आया। रायमल ने तुरंत सम्भलते हुए तलवार के एक ही वार से रेड़ा का काम तमाम किया। रेड़ा के सहयोगी भाग निकले।
राव गांगा द्वारा कूंपा जी को अपनी तरफ मिलाना :- राव गांगा ने जैता जी से कहा कि आप अपने चचेरे भाई कूंपा जी को जोधपुर आने के लिए कहिए। क्योंकि राव गांगा भलीभांति जानते थे कि कूंपा जी ऐसे सेनानायक थे जो कि बड़े से बड़े युद्धों का भी परिणाम बदलने की क्षमता रखते थे।
जैता जी ने पत्र में लिखा कि “भाई, वीरम जी के कोई पुत्र नहीं है इसलिए आज नहीं तो कल आपको जोधपुर आना ही पड़ेगा। राव गांगाजी आपको लाखों रुपए की जागीर दे रहे हैं। मेरे विचार से आपको यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए।”
जैता जी का पत्र पढ़कर कूंपा जी ने विचार किया कि बात तो यह सही है। कूंपा जी ने एक शर्त रखी कि राव गांगा जी एक वर्ष तक सोजत पर कोई आक्रमण नहीं करेंगे। राव गांगा ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
कूंपा जी ने जोधपुर जाने से पहले सोजत के प्रबंधक मुहता रायमल को भी कहलवा दिया। रायमल ने पत्र के जवाब में लिखा कि “आपको जाना है तो आप जाइये, पर मैं तो वीरम जी का साथ हरगिज़ नहीं छोडूंगा। वीरम जी का पलंग इस रायमल की छाती पर पैर रखने के बाद ही सोजत के किले से उतरेगा।”
(अर्थात जब तक रायमल जीवित है, तब तक सोजत के स्वामी राव वीरम का कुछ भी अहित नहीं होगा)। कूंपा जी अपने साथियों सहित जोधपुर के लिए रवाना हुए। कूंपा जी के जाने के बाद राव वीरम के पास सोजत में केवल 700 सैनिक शेष रह गए थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)