अजमेर के हाकिम मल्लू खां व मारवाड़ नरेश राव सातल के बीच कोसाना गांव के निकट हुआ युद्ध :- अजमेर के हाकिम मल्लू खां ने राठौड़ों से बदला लेने का विचार किया। मल्लू खां ने सूबेदार सिरिया खां, मीर घडूला आदि के साथ फ़ौज समेत राठौड़ों के विरुद्ध चढ़ाई की।
1491 ई. में उसने सबसे पहले मेड़ता पर हमला किया, वहां तैनात वरसिंह व दूदा राठौड़ ने जोधपुर की तरफ प्रस्थान किया। मल्लू खां ने मेड़ता को लूटकर जोधपुर की तरफ कूच किया।
मल्लू खां ने मार्ग में पीपाड़ को लूट लिया और फिर कोसाना पहुँचा। ख्यातों में वर्णन मिलता है कि लगभग 140 सुहागिन स्त्रियां पीपाड़ में गौरी (गणगौर) पूजा कर रही थीं। सूबेदार मीर घडूला उन्हें पकड़कर कोसाना की तरफ रवाना हुआ।
राव सातल को इस घटना की जानकारी मिली, तो उनके क्रोध की कोई सीमा न रही। रात्रि का समय था। राव सातल ने वरसिंह, दूदा, सूजा, वरजांग, भारमल राठौड़ आदि के साथ फ़ौज समेत रवाना होकर मुसलमानी सेना से कुछ दूर पड़ाव डाला।
राव सातल ने वहां से वरजांग को गुप्तचर के रूप में मुसलमानों की सेना का निरीक्षण करने भेजा। वरजांग ने वहां जाकर पता लगाया कि शत्रु सेना में सैनिक तो ज्यादा हैं, पर रात के वक्त अचानक हमला किया जाए, तो बात बन सकती है।
राव सातल ने अपनी सेना को 3 भागों में बांटा। एक भाग का नेतृत्व स्वयं राव सातल ने, एक का नेतृत्व दूदा जी ने व एक का नेतृत्व वरजांग ने किया। राठौड़ों ने अर्द्धरात्रि में कोसाना के निकट मुसलमानों पर आक्रमण कर दिया।
दूदा राठौड़ ने बहादुरी दिखाते हुए सूबेदार सिरिया खां पर आक्रमण किया। सिरिया खां हाथी पर सवार था। दूदा जी का आक्रमण देखते हुए सिरिया खां हाथी से उतरा और भाग निकला। दूदा जी ने उसका हाथी छीन लिया।
राव सातल राठौड़ बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे। उन्हें कई घाव लग चुके थे, परन्तु तलवार का जोर कम नहीं हुआ। राव सातल ने सूबेदार मीर घडूला को मौत के घाट उतार दिया और तीजणियों (गौरी पूजा करने वाली स्त्रियों) को क़ैदमुक्त किया।
मीर घडूला के शरीर पर इतने ज्यादा घाव लग चुके थे कि उसके शरीर का कोई भी हिस्सा घावों से अछूता न रहा। राठौड़ों की वीरता देखकर मल्लू खां जान बचाकर अजमेर की तरफ भाग निकला।
इस लड़ाई में राव सातल के काका वरजांग राठौड़ ने मुसलमानी सेना के साथ आई कुछ स्त्रियों को कैद कर लिया। राव सातल की इच्छानुसार उन स्त्रियों के सिर मुंडवाकर छोड़ दिया गया।
इस घटना के 14 वर्ष बाद मेवाड़ के महाराणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज ने अजमेर पर चढ़ाई करके मल्लू खां को मार दिया।
घुड़ला मेला :- मारवाड़ में चैत्र बदी 8 को घुड़ला मेला भरता है। इस दिन स्त्रियां कुम्हार के यहां जाकर छेद वाले मटके लाती हैं और उनमें दीपक प्रज्वलन करती हैं।
चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक विशेष घड़ा जोधपुर महाराजा के सामने लाया जाता और महाराजा उसे अपनी तलवार से खंडित करते। इसी दिन मटकी तोड़ दी जाती है या फिर पानी में डुबो दी जाती है।
मटकी के छेद सूबेदार मीर घडूला के शरीर पर लगे घावों की तरफ संकेत करते हैं व दीपक मीर घडूला की जीवात्मा की तरफ संकेत करता है। घुड़ला के इस त्योहार के दिन ‘घडूलो घुमेला जी घुमेला’ गीत भी गाया जाता है।
राव सातल का देहांत :- 13 मार्च, 1491 ई. को अजमेर के हाकिम मल्लू खां व राव सातल के बीच जो युद्ध हुआ, जिसमें राव सातल बुरी तरह जख्मी हो गए और उसी रात उनका देहांत हो गया।
उस दिन चैत्र शुक्ल तृतीया की तिथि थी। पहले मारवाड़ में इस दिन गौरी व ईश्वर (ईसर) दोनों की पूजा की जाती थी, परन्तु राव सातल का देहांत होने के बाद इस दिन केवल गौरी की पूजा ही की जाने लगी।
ऐसी मान्यता है कि यदि इसी त्योहार के दिन जोधपुर राजपरिवार में पुत्र का जन्म हो, तो गौरी के साथ ईसर की पूजा भी फिर से शुरू की जावे।
बांकीदास री ख्यात के अनुसार राव सातल ने मात्र 3 वर्ष तक राज किया। कोसाणा तालाब के निकट ही राव सातल का दाह संस्कार किया गया व यहीं उनकी छतरी का निर्माण करवाया गया।
राव सातल व मल्लू खां के बीच हुए इस युद्ध में राव सातल की तरफ से 7 प्रमुख सरदार वीरगति को प्राप्त हुए, जिनके नाम इस तरह हैं :- (1) पाली परगने में स्थित चोटीला गांव के स्वामी चांपावत रतनसिंह हमीरोत
(2) जालोर परगने में स्थित आकेवा गांव के ठाकुर धवेचा हरभम (3) खींची जवानसिंह सारंगोत (4) खींची भानीदास सारंगोत (5) खींची वाघसिंह सारंगोत (6) खींची जसवंत मेलावत (7) खींची भैरूदास मेलावत।
राव सातल की तरफ से इस युद्ध में 16 प्रमुख सरदार घायल हो गए थे। उनके नाम इस तरह हैं :- (1) नागौर परगने के मांडली गांव के ठाकुर पातावत पर्वत हमीरोत (2) फलौदी परगने के भेड़ गांव के ठाकुर रूपा राठौड़, जो कि राव रणमल के पुत्र व राव सातल के काका थे।
(3) सोजत परगने के खोखरा गांव के स्वामी राठौड़ पंचायण, जो कि राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र अखैराज के पुत्र थे। (4) जोधपुर परगने के भीचरलाई गांव के ठाकुर गंगादास महेचा राठौड़ (5) पचपदरा परगने के कोरणा गांव के ठाकुर ऊहड़ खरहत देवीदासोत
(6) जोधपुर परगने के पाल गांव के ठाकुर जैतमाल राजसिंह करणसिंहोत, जिनके वंशज सोभावत राठौड़ कहलाए। (7) राठौड़ भारमल जोधावत (8) राठौड़ वरजांग, जो कि राव रणमल के भाई भीम के पुत्र थे।
(9) परबतसर परगने के खूंदियावास गांव के ठाकुर राठौड़ पूनावत मघसिंह (10) शेरगढ़ परगने के गांव खिरजां के स्वामी गोगादे वीसो खेतसिंहोत (11) जोधपुर परगने के गांव बीलारवा के ठाकुर भाटी जोधसिंह जैसावत
(12) पचपदरा परगने के गांव कासाणा के स्वामी करणोत लूणकरण (13) जालोर परगने के गांव मोड़ी के स्वामी करणोत माणकराव (14) सेतरावा गांव के स्वामी राठौड़ रणजीतसिंह लूणकरणोत
(15) शेरगढ़ परगने के गांव दासाणिया के स्वामी चांपावत देईदास (16) जसवंतपुरा परगने के गांव पुनासा के स्वामी चांपावत भैरूदास।
राव सातल के बाद उनके छोटे भाई राव सूजा मारवाड़ की राजगद्दी पर बिराजे। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)