राव जोधा व राव बीका की भेंट :- बीकानेर के स्वामी राव बीका ने मोहिलों व लोदियों की मिली जुली सेना को परास्त करके अपने बाहुबल का परिचय दिया। राठौड़ों के शिविर लगे हुए थे, तब राव जोधा व उनके पुत्र राव बीका के बीच बातचीत शुरू हुई।
राव जोधा ने कहा कि “बीका, तू सपूत है, आज तुझसे एक वचन मांग रहा हूँ।” राव बीका ने कहा कि “आप पिता हैं, आपकी आज्ञा का पालन अवश्य होगा।”
राव जोधा ने कहा कि “तूने अपने बाहुबल से एक नए राज्य की स्थापना कर ली है, इसलिए भविष्य में कभी जोधपुर राज्य के लिए दावा मत करना।”
राव बीका ने राव जोधा की बात मान ली और उन्होंने कहा कि “मेरी भी यह प्रार्थना है कि तख्त, छत्र आदि राज्यचिह्न, आपकी ढाल व तलवार मुझे चाहिए, क्योंकि मैं बड़ा हूँ।” राव जोधा ने कहा कि “मैं जोधपुर पहुंचकर ये सब तुम्हारे पास भिजवा दूंगा।”
वत्सराज का बीकानेर प्रस्थान :- मेवाड़ में मेहता अगरचन्द का घराना प्रसिद्ध है, जिन्होंने मेवाड़ राज्य की बड़ी सेवा की। इस घराने के पूर्वजों ने कई वर्षों तक मारवाड़ राज्य की भी सेवा की थी।
राव रणमल राठौड़ व राव जोधा राठौड़ के समय वत्सराज ने मारवाड़ राज्य की सेवा की थी। इसके बाद जब राव बीका ने नए नगर की स्थापना हेतु जांगल प्रदेश (बीकानेर) की तरफ प्रस्थान किया, तब वत्सराज भी उनके साथ चले गए।
लाडनूं पर राव जोधा का अधिकार :- दयालदास री ख्यात के अनुसार एक बार राव जोधा ने अपने पुत्र बीदा से लाडनूं मांगा था, पर बीदा ने देने से मना कर दिया। फिर जब बीदा को राव बीका ने द्रोणपुर का राज दिलाया, तब राव बीका ने लाडनूं का क्षेत्र अपने पिता राव जोधा को भेंट किया।
जालोर व सिरोही के शासकों से लड़ाई :- 1478 ई. में जालोर के शासक उस्मान खां व सिरोही के शासक रावल लाखा देवड़ा ने मारवाड़ के इलाकों में उत्पात मचाना शुरू किया। राव जोधा ने अपने चचेरे भाई वरजांग को सेना सहित उन दोनों शासकों के विरुद्ध भेजा, जिसके बाद उक्त दोनों शासकों ने राव जोधा से सन्धि कर ली।
सांभर की रक्षा :- मेवाड़ के शासक उदयकर्ण ने 1468 ई. में सांभर का क्षेत्र राव जोधा को दे दिया था। सांभर झील राजपूताने की सबसे अधिक खारी झील होने के कारण यहां नमक निकलता था, जिससे राज्य को अच्छी आय होती थी।
1486 ई. में आमेर नरेश चन्द्रसेन कछवाहा ने सांभर पर चढ़ाई की। राव जोधा को इसकी सूचना मिली, तो उन्होंने फौरन एक सेना भेजी।
जिससे राजा चन्द्रसेन सांभर पर अधिकार करने में असफल रहे। 5 दिनों तक राठौड़ों व कछवाहों में लड़ाई जारी रही, जिसके बाद कछवाहे परास्त हो गए।
जैतारण पर चढ़ाई :- जैतारण के स्वामी सींधल मेघा के पिता नरसिंह ने राव सत्ता के पुत्र आसकरण को मारा था। 1487 ई. की बात है, एक दिन राव जोधा ने इसका बदला लेने की चर्चा की, तो उनके पुत्र दूदा उठ खड़े हुए और बोले कि
“यदि आज्ञा हो, तो मैं मेघा को मारकर बदला लूँ।” राव जोधा ये सुनकर प्रसन्न हुए और एक सैनिक टुकड़ी दूदा को देकर कहा कि “तुम सपूत हो, पर होशियार रहना, मेघा बड़ा वीर है।”
दूदा सेना सहित रवाना हुए और जैतारण पहुंचे। एक दूत ने मेघा को खबर दी कि जोधपुर से सेना आ गई है। मेघा ने ऊंचे स्वर में कहा कि “घोड़े घोड़ियां उधर न जाने पावे, वरना शत्रु के हाथ लग जाएंगे।”
ये बात दूदा को सुनाई दी, तो दूदा ने अपने साथियों से पूछा कि ये ऊंचा स्वर किसका है ? जवाब मिला कि ये मेघा की आवाज़ है।
दूदा मेघा के पास पहुंचे और बोले कि “मैं घोड़े घोड़ियां चुराने नहीं आया हूँ, आसकरण की मौत का बदला लेने आया हूँ”।
मेघा ने कहा कि “मेरे अधिकतर साथी तो मेरे बेटे की बारात में गए हैं, मैं अपने थोड़े बहुत साथियों के साथ तुमसे लड़ने को तैयार हूँ”। दूदा ने कहा कि “दूसरों को व्यर्थ में क्यों मारा जावे, आप और मैं द्वंद्व युद्ध कर लेते हैं।”
मेघा राजी हो गए। दोनों में भीषण लड़ाई हुई, जिसमें मेघा वीरगति को प्राप्त हुए। मेघा के साथियों ने इस वैर को ज्यादा न बढाते हुए उनके शव को लेकर वहां से चले गए। दूदा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके जोधपुर जाकर अपने पिता को प्रणाम किया, तब राव जोधा बड़े प्रसन्न हुए।
शिव की रक्षा :- शिव बाड़मेर में स्थित है। जैसलमेर के रावल देवीदास भाटी ने शिव पर अधिकार कर लिया। राव जोधा ने अपने चचेरे भाई वरजांग को भेजकर पुनः शिव का क्षेत्र जैसलमेर वालों से छीन लिया।
मारवाड़ की ख्यातों के अनुसार इस समय वरजांग ने जैसलमेर पर आक्रमण करने का इरादा किया। यह सुनकर जैसलमेर वालों ने राव जोधा को जुर्माने स्वरूप कुछ धन देकर संधि कर ली।
जोधवास की स्थापना :- ख्यातों में लिखे वर्णन के अनुसार एक बार एक चमार जाति के व्यक्ति ने हकलाते व तुतलाते हुए राव जोधा की प्रशंसा की। राव जोधा ने प्रसन्न होकर उसे कुछ भूमि दी, जिसके बाद उस चमार ने वहां जोधवास नामक गाँव की स्थापना की।
राव जोधा द्वारा दान में दिए गए गांव :- कँवलिया, लूंडावास, मथानिया, बेवटा, खाराबेरा, बासणी, मोडी बड़ी, तोलेयासर, तिवरी, मांडियाई खुर्द, बासणी सेपां, जोधपुर परगने का थोब, बिलाड़ा परगने का खोडेचा,
सोजत परगने का बासणी नरसिंघ, नागौर परगने का साटीका कला, जोधावास, फलौदी परगने का कोलू-पुरोहितों का, जैतारण परगने का खगड़ी, सोजत परगने का रेपडावास,
पाली परगने का साकड़ावास, जालोर परगने का धोलेरिया, बिलाड़ा परगने का जटियावास कला, शेरगढ़ परगने का चांचलवा, जोधपुर परगने का बड़लिया।
राव जोधा का देहांत :- 6 अप्रैल, 1489 ई. (विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार 16 अप्रैल, 1488 ई.) को जोधपुर में राव जोधा राठौड़ का देहांत हो गया। राव जोधा का देहांत लगभग 74 वर्ष की आयु में हुआ।
15 वर्षों तक उन्होंने राज्य प्राप्ति के प्रयास किए और फिर अपना राज्याभिषेक करवाकर 35 वर्षों तक मारवाड़ पर शासन किया। राव जोधा ने जैसा भाटी के पुत्र जोधा भाटी को बालरवा की जागीर दी।
राव जोधा के देहांत के समय गोड़वाड़ का कुछ भाग, मंडोर, जोधपुर, सोजत, पाली, फलौदी, पोकरण, मेड़ता, महेवा, भाद्राजूण, जैतारण, शिव, सिवाना, सांभर, अजमेर व नागौर के क्षेत्र मारवाड़ राज्य में शामिल हो चुके थे।
बीकानेर व छापर-द्रोणपुर पर राव जोधा के पुत्रों का शासन था। इस तरह राठौड़ों ने एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया।
राठौड़ों के इस राज्य की पश्चिमी सीमा जैसलमेर राज्य को, पूर्वी सीमा आमेर राज्य को, दक्षिणी सीमा मेवाड़ राज्य को व उत्तरी सीमा हिसार राज्य को छू रही थी। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राव जोधा के राज्य का विस्तार 80 हज़ार मील की लंबाई-चौड़ाई तक हो गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)