राव जोधा की मेड़ता विजय :- मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम ने अजमेर पर कुछ समय के लिए अधिकार किया था और वहां उसने अपना एक हाकिम नियुक्त कर रखा था। उस हाकिम ने मेड़ता को भी अपने कब्जे में ले रखा था।
राव जोधा ने अपने पुत्रों वरसिंह व दूदा को फ़ौज सहित भेजकर मेड़ता व उसके आसपास के 360 गांवों पर अधिकार कर लिया। 1462 ई. में मेड़ता के दक्षिण में राठौड़ों ने एक नई बस्ती बसाई।
मारवाड़ में सामन्त व्यवस्था की शुरुआत राव जोधा के दादाजी राव चूंडा राठौड़ ने की थी। राव जोधा ने सामन्त व्यवस्था को और भी अधिक सुदृढ किया।
उन्होंने अपने राज्य का उचित संचालन करने के लिए अपने पुत्र सातल को फलौदी, नींबा को सोजत, वरसिंह और दूदा को मेड़ता की जागीर दे दी।
राव जोधा की तीर्थ यात्रा :- 1462 ई. में राव जोधा ने प्रयाग, काशी व गया तीर्थों की यात्रा की। जोधपुर राज्य की ख्यात में लिखा है कि जब राव जोधा आगरा पहुंचे, तो कान्ह नाम के एक राजपूत ने उनको बहलोल लोदी से मिलवाया।
कान्ह का नाम कहीं-कहीं कर्ण भी लिख रखा है। कर्ण को बहलोल लोदी ने शम्साबाद (खोर) का सूबेदार नियुक्त कर रखा था। राव जोधा ने बहलोल लोदी से अनुरोध किया कि वे गया तीर्थ पर आने वाले यात्रियों से तीर्थ कर ना लेवें।
बहलोल लोदी ने यह कर हटा दिया, लेकिन एक शर्त रखी कि राव जोधा को ग्वालियर के पास 2 गढ़ी (छोटे किले) तोड़ने पड़ेंगे। राव जोधा ने गया से लौटते समय इन दोनों गढ़ियों को तोड़कर अपना वचन पूरा किया।
विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है कि राव जोधा जब आगरा से गया की तरफ जा रहे थे, तब उनकी मुलाकात जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह से हुई। राव जोधा ने हुसैनशाह से कहा कि गया तीर्थ पर हिंदुओं से कर ना लिया जावे।
तब हुसैनशाह ने शर्त रखी कि ग्वालियर के निकट जो हमारे शत्रु हैं, उन भोमियों को दंड दो। राव जोधा ने तीर्थयात्रा से लौटते समय भोमियों को दंडित करके अपना वचन निभाया।
उक्त दोनों घटनाएं एक जैसी लगती हैं, जिससे सन्देह होता है कि इनमें से कोई एक ही घटना सत्य होनी चाहिए। 1504 ई. में राव जोधा की पुत्री श्रृंगारदेवी, जो कि मेवाड़ के महाराणा रायमल को ब्याही गई थीं, उन्होंने घोसुंडी में एक बावड़ी बनवाकर वहां एक लेख खुदवाया।
उस लेख में वर्णन है कि उनके पिता राव जोधा ने गया यात्रा से लौटते समय बादशाह के शत्रुओं को दंडित करते हुए गढ़ियों को तोड़ा। इन लड़ाइयों में राव जोधा की तलवार से कई पठान मारे गए। राव जोधा ने गया तीर्थ को करमुक्त किया व काशी में स्वर्ण का दान किया।
सींधल राठौड़ों का उत्पात :- 1462 ई. में राव जोधा तो तीर्थ यात्रा पर गए हुए थे, इसी का लाभ उठाकर भाद्राजूण के सींधल आपमल ने राव जोधा के पुत्र शिवराज को सिवाना का राज दिलाने का वादा करके शिवराज की सहायता से सिवाना के राजा बिजा को मार डाला।
आपमल ने दगा करते हुए शिवराज को सिवाना का राज देने से मना कर दिया और स्वयं सिवाना के राजा बन गए। बिजा के पुत्र देवीदास ने सिवाना पर आक्रमण करके आपमल को परास्त किया और सिवाना पर अधिकार कर लिया।
राव जोधा तीर्थ यात्रा से लौटे, तब उन्हें सम्पूर्ण घटना की जानकारी मिली। राव जोधा आपमल पर बड़े क्रोधित हुए। इसी बीच देवीदास ने भाद्राजूण पर आक्रमण करके आपमल को मारकर अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध ले लिया।
1464 ई. में बीसलपुर के स्वामी जैसा सींधल पाली गए और वहां जाकर मवेशियों को घेरकर ले आए। उस समय राव जोधा के पुत्र नींबा राठौड़ सोजत के प्रबंधक थे। सोजत के कोट का निर्माण नींबा ने ही करवाया था। सोजत पाली में ही स्थित है।
नींबा ने सेना सहित जैसा सींधल का पीछा किया और वटोवड़ा के निकट उनको घेर लिया। इस लड़ाई में जैसा मारे गए और घावों के चलते 5 माह बाद नींबा की भी मृत्यु हो गई। फिर राव जोधा ने अपने पुत्र सूजा को फलौदी से बुलाया और सोजत का प्रबंधक नियुक्त किया।
मोहिलों का उत्पात :- छापर-द्रोणपुर के स्वामी अजीतसिंह मोहिल, राव जोधा की पुत्री राजबाई के पति थे। 1464 ई. में अजीतसिंह को उनके मंत्रियों ने मारवाड़ में उत्पात करने के लिए उकसाया।
राव जोधा ने संबंधी होने के नाते कुछ दिन तक अजीतसिंह की कार्रवाइयों को नजरअंदाज किया, परन्तु उत्पात बढ़ता देखकर उन्होंने अजीतसिंह के विरुद्ध सेना भेजी।
गगराणा के निकट लड़ाई हुई, जिसमें अजीतसिंह मारे गए। उनके बाद उनके भतीजे बछराज छापर-द्रोणपुर के स्वामी हुए। ख्यातों में यह घटना कुछ अलग ढंग से लिखी हुई है।
घटना के अनुसार राव जोधा मोहिलों का राज छीनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अजीतसिंह को मारने का विचार किया। लेकिन इस बात का पता राव जोधा की भटियाणी रानी को चल गया, तो उन्होंने यह बात दामाद अजीतसिंह के मंत्रियों तक पहुंचा दी।
मंत्रियों ने सोचा कि यदि हम अजीतसिंह से भागने के लिए कहेंगे, तो वे मना कर देंगे। इसलिए मंत्रियों ने झूठ बोल दिया कि यादवों ने राणा बछराज सांगावत पर हमला कर दिया है। अजीतसिंह ने यह सुना तो फौरन बछराज की मदद खातिर रवाना हुए।
यह बात राव जोधा को पता चल गई, तो जोधा समझ गए कि अजीतसिंह को मेरे षड्यंत्र का पता लग चुका है। मामला बिगड़ता देखकर अजीतसिंह के मंत्रियों ने उनको सही बात बता दी, इस पर अजीतसिंह अपने मंत्रियों पर बड़े क्रोधित हुए।
द्रोणपुर से 3 कोस दूर गणोड़ा गांव में लड़ाई हुई, जिसमें अजीतसिंह 85 राजपूतों समेत वीरगति को प्राप्त हुए। उसी दिन से राठौड़ों व मोहिलों में वैमनस्य का सूत्रपात हुआ।
1465 ई. में बछराज ने अपने काका अजीतसिंह की मृत्यु का बदला लेने के लिए मारवाड़ में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। राव जोधा ने सेना सहित चढ़ाई की। फिर से राठौड़ों व मोहिलों में लड़ाई हुई, जिसमें बछराज अपने 165 साथियों समेत वीरगति को प्राप्त हुए।
राव जोधा विजयी रहे, पर बछराज के पुत्र मेघा ने किसी तरह अपनी जान बचाने में सफलता पाई। मेघा ने यह लड़ाई जारी रखी और राव जोधा के इलाकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया।
राव जोधा भी इस संघर्ष को समाप्त करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मेघा से सन्धि कर ली। सन्धि के तहत छापर-द्रोणपुर का राज्य मेघा को सौंप दिया गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)