मारवाड़ नरेश राव जोधा राठौड़ (भाग – 7)

राव जोधा का राज्याभिषेक :- मेवाड़ से सन्धि के बाद राव जोधा पूरी तरह से आश्वस्त हो गए और 1458 ई. में मंडोर जाकर अपना राज्याभिषेक करवाया। इस अवसर पर राव जोधा ने अपने सभी सहयोगियों को पुरस्कार आदि देकर उनका उत्साहवर्धन किया।

मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण व जोधपुर की स्थापना :- राठौड़ों ने कई वर्षों से मंडोर दुर्ग को अपने राज्य का केंद्र बना रखा था। मंडोर में कुछ सदी पहले तक जल व हरियाली पर्याप्त थी, लेकिन समय के साथ-साथ जल की कमी होती गई और बारिश भी काफी कम होने लगी।

मंडोर का दुर्ग भी लगातार होने वाले आक्रमणों से जर्जर हो चुका था। दुर्ग की कमजोरी के कारण इसे जीतने में शत्रु को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी।

राव जोधा की पिछली कुछ पीढ़ियों के शासनकाल के दौरान जब भी मंडोर पर आक्रमण हुआ, तब यह किला आसानी से शत्रु के हाथ में चला गया। इन कारणों से राव जोधा को नई राजधानी बनाने का विचार आया।

राव जोधा राठौड़

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राव जोधा के बड़े भाई अखैराज ने स्वयं जोधा का राजतिलक किया था, परन्तु यह सम्भव था कि राव जोधा के देहांत के बाद अखैराज या उनके वंशज मंडोर पर अपना अधिकार जताने लगे। इसलिए राव जोधा ने राजधानी बदलने का विचार किया।

बहरहाल, कारण जो भी हो, राव जोधा ने एक दूरदर्शी कार्य की शुरुआत करने का संकल्प लिया। सर्वप्रथम राव जोधा ने मसूरिया पहाड़ी पर नए दुर्ग को बनाने का विचार किया, क्योंकि इस पहाड़ी से दूर तक शत्रुओं को देखा जा सकता था।

मसूरिया पहाड़ी को थोथलिया भाखर भी कहा जाता था। इस पहाड़ी पर जलस्रोत नहीं था। यह भी मालूम पड़ा कि यहां बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ की आत्मा के रहने की मान्यता थी।

राव जोधा को इस पहाड़ी पर एक साधु मिले, जिन्होंने राव जोधा से कहा कि यह पहाड़ी तुम्हारे नए दुर्ग के लिए सुरक्षित नहीं है, इसलिए तुम पचेटिया पहाड़ी पर दुर्ग बनाओ। पचेटिया पहाड़ी पर एक झरना भी बहता था, इसलिए राव जोधा ने यह स्थान चुना।

राव जोधा अपने साथियों समेत पचेटिया पहाड़ी पर पहुंचे। पचेटिया पहाड़ी पर चिडियानाथ नामक एक योगी रहते थे। उनके रहने के कारण इस पहाड़ी को चिडियानाथ की टूंक भी कहा जाता था। यह पर्वत एक पक्षी के आकार का था, इसलिए इसे विहंग कूट भी कहते थे।

मेहरानगढ़ दुर्ग

राव जोधा ने इस पहाड़ी पर दुर्ग का निर्माण करवाना शुरू किया, तो योगी का आश्रम भी दुर्ग की परिधि में आ गया। यह निर्माण कार्य राव जोधा के पुत्र कुँवर करमसी व कुँवर रायपाल की देखरेख में हो रहा था।

योगी ने उनसे कहा कि मेरे आश्रम की भूमि छोड़कर अपना दुर्ग बनाओ, लेकिन कुँवर ने यह बात न मानकर योगी का आश्रम भी दुर्ग के अंदर ही ले लिया।

इससे नाराज होकर योगी ने सुलगती हुई धूणी अपनी झोली में डाली और दुर्ग से अग्निकोण की दिशा में 9 कोस दूर स्थित पालासनी गांव में चले गए। मान्यता है कि योगी ने श्राप दिया कि इस किले में अकाल पड़ेंगे और लोग अन्न-जल को तरसेंगे।

राव जोधा को इस बात का पता चला, तो उन्होंने योगी के लिए दुर्ग के नीचे एक मठ बनवाया। फिर राव जोधा ने पड़िहार मेघा को भेजकर योगी से कहलवाया कि वे इस मठ में आ जाएं। योगी ने कहा कि मैं कुछ दिन बाद आऊंगा।

कुछ दिन बाद योगी मठ में आ गए। योगी ने इस मठ के निकट एक शिवालय का निर्माण करवाया। वर्तमान में यह मठ वाला स्थान सरदार मार्केट के निकट स्थित है।

योगी द्वारा बनवाया गया शिवालय कई वर्षों बाद जर्जर हो गया, तब 1914 ई. में जोधपुर महाराजा द्वारा इस शिवालय का जीर्णोद्धार करवाया गया।

पचेटिया पहाड़ी पर जिस झरने के निकट योगी चिडियानाथ रहते थे, वहां राव जोधा ने एक कुंड व एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया। यह स्थान झरनेश्वर महादेव के नाम से जाना गया। बाद में यह झरना सूख गया।

राव जोधा ने योगी की बात मानकर प्रतिदिन एक रोट बनवाकर किसी साधु-सन्यासी को देने की प्रथा प्रचलित की। हालांकि कुछ समय बाद योगी यह मठ छोड़कर पुनः पालासनी गांव में चले गए।

मेहरानगढ़ दुर्ग

जीवित व्यक्ति को गढ़ की नींव में गाढ़ना :- एक तांत्रिक ने सलाह दी कि यदि इस दुर्ग की नींव में किसी जीवित व्यक्ति को गाढ़ा जाए, तो यह दुर्ग सदैव राव जोधा के वंशजों के अधिकार में ही रहेगा।

पुराने लोग बड़े काम करने से पहले इस तरह की बातों पर यकीन कर लेते थे। मुहूर्त के अनुसार सोमवार के दिन व्यक्ति को जीवित गाढ़ा जाना था, गुरुवार के दिन नींव का काम व शनिवार के दिन गढ़ के दरवाजे का फलसा बनाया जाना तय हुआ।

राव जोधा ने राज्य में यह बात फैला दी कि जो भी व्यक्ति अपनी इच्छा से जीवित इस दुर्ग की नींव में गढ़ेगा, उसके परिवार को राजकीय संरक्षण और धन संपदा दी जाएगी। राजिया (राजाराम) नामक एक भाम्बी इस काम के लिए तैयार हो गया।

उसे जीवित इस दुर्ग की नींव में गाढ़ा गया। विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार राजिया के साथ-साथ उसके पुत्र को भी गाढ़ा गया था। राजिया के परिवार को राव जोधा ने भूमि प्रदान की, जो बाद में राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हुई।

जिस जगह राजिया को गाढ़ा गया, उसके ऊपर खजाना और नक्कारखाने के भवन बनवाए गए। एक ख्यात में राजिया की जगह रतना नाम लिखा है व दूसरे व्यक्ति का नाम कलिया लिखा है।

12 मई, 1459 ई. (ज्येष्ठ सुदी 11 विक्रम संवत 1515) को शनिवार के दिन राव जोधा ने चिडियानाथ की टूंक पहाड़ी पर दुर्ग बनवाना शुरू किया था, जिस संबंध में यह दोहा है :- पन्दरा सौ पन्दरोतरे, जेठ मास जोधाण। सुद ग्यारस वार शनि, मंडियौ गढ़ मेहराण।।

राजिया (राजाराम)

कुछ जातिगत द्वैष रखने वाले लोग यह आरोप लगाते हैं कि राजिया को जबरन गढ़ की नींव में गाढ़ा गया था। पर वास्तव में यह बलि स्वैच्छिक थी, यदि ऐसा न होता तो इतिहास के पन्नों पर राजिया का नाम तक नहीं मिलता।

कुछ लोग राजिया के माता-पिता को भी नींव में गाढ़े जाने का वर्णन करते हैं, लेकिन ऐसा कोई भी वर्णन समकालीन ख्यातों में नहीं मिलता है। मेहरानगढ़ दुर्ग के निर्माण व जोधपुर की स्थापना से संबंधित शेष वर्णन अगले भाग में लिखा जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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