मारवाड़ नरेश राव जोधा राठौड़ (भाग – 5)

राव जोधा राठौड़ का राजतिलक :- राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र अखैराज थे, जिनको बगड़ी की जागीर दी गई थी। बाद में बगड़ी पर सिसोदिया राजपूतों ने अधिकार कर लिया था। राव जोधा राव रणमल के दूसरे पुत्र थे।

मारवाड़ का राज्य प्राप्त करने के लिए राव जोधा ने बहुत संघर्ष किया था। यह बात समूचे मारवाड़ की प्रजा जानती थी। अखैराज भी यह बात स्वीकार करते थे, इसीलिए उन्होंने स्वयं अपना अंगूठा चीरकर अपने छोटे भाई राव जोधा का राजतिलक किया।

इतिहास में ऐसे मौके बेहद कम देखने को मिलते हैं, जहां स्वयं बड़ा भाई छोटे भाई का राजतिलक करे। राव जोधा ने अखैराज को वचन दिया कि मैं बगड़ी का राज सिसोदियों से छीनकर आपको दिलाऊंगा।

राव जोधा द्वारा जागीरें प्रदान करना :- राजतिलक के बाद राव जोधा ने उन सभी सरदारों, भाइयों, साहूकारों आदि जिन्होंने उनकी सहायता की, कुरब आदि सम्मान देकर उनका मान बढ़ाया।

राव जोधा राठौड़

राव रणमल ने शत्रुशाल भाटी को चित्तौड़ का किलेदार बनाया था। राव रणमल की हत्या के समय शत्रुशाल भी सिसोदियों के हाथों मारे गए थे। राव जोधा ने शत्रुशाल भाटी के पुत्र अर्जुन भाटी को भाद्राजूण की तरफ कई गांवों की जागीर प्रदान की।

राव जोधा ने खींची सारंग को गांघाणी सहित 24 गांव जागीर में दिए। खींची सारंग ने अपने नाम से सारंगवासणी का क्षेत्र बसाया। राव जोधा ने मेलाजी को नारवा सहित 24 गांवों की जागीर दी। मेलाजी ने अपने नाम से मेलाव क्षेत्र बसाया।

राव जोधा ने कलकरण के पुत्र जैसा को मंडोर के एक चौथाई हिस्से जितनी कोई जागीर दी। लेकिन कुछ समय बाद जैसा की पुत्री लक्ष्मी का विवाह राव जोधा के पुत्र सूजा के साथ हुआ।

उस समय सूजा ने दहेज में उक्त जागीर, जो राव जोधा ने जैसा को दी थी, वह मांग ली। जैसा उस समय मना नहीं कर पाए और जागीर सूजा को दे दी। जैसा नाराज़ होकर मेवाड़ चले गए और प्रण लिया कि अब से हम मारवाड़ नरेश को अपनी बेटी नहीं ब्याहेंगे।

वास्तव में यहां गलती सूजा की थी, क्योंकि जो जागीर स्वयं उनके पिता ने किसी को दी हो, उसी की मांग करना बहुत अनुचित था। राव जोधा को जैसा की नाराज़गी का पता चला, तो उन्होंने उनकी जागीर पुनः बहाल कर दी।

1455 ई. – जोधेलाव तालाब का निर्माण :- राव जोधा ने जोधेलाव नामक तालाब का निर्माण करवाया। यह तालाब बालसमन्द से मंडोर जाते समय बाएं हाथ की तरफ है।

राव जोधा से पहले मारवाड़ के किसी शासक ने तालाब आदि बनाने में ज्यादा रुचि नहीं ली थी, परन्तु राव जोधा समझ गए थे कि मारवाड़ जैसी धरती पर लंबे समय तक राज करना है, तो यहां जलस्रोतों का निर्माण बेहद आवश्यक है।

जोधेलाव तालाब

राव जोधा द्वारा राज्य विस्तार :- राव जोधा केवल मंडोर विजय तक नहीं रुके। अब उन्होंने अपने विजय अभियान को गति प्रदान की। राव जोधा ने अपने भाई चांपा राठौड़ को कापरड़ा पर अधिकार करने भेजा।

चांपा ने बड़ी आसानी से वहां अधिकार कर लिया। राव जोधा ने अपने चचेरे भाई वरजांग को रोहट पर अधिकार करने भेजा। वरजांग ने रोहट पर अधिकार कर लिया और उसके साथ-साथ पाली, खैरवा व नाडौल को भी अपने अधिकार में लेकर नारलाई तक पहुंच गए।

यह वह स्थान था, जहां से मेवाड़ राज्य की सीमा शुरू होती थी। इन लड़ाइयों में वरजांग के हाथों रावत चूंडा सिसोदिया के पुत्र मांजा वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह मारवाड़ की राज्य सीमा मेवाड़ की सीमा को छूने लगी।

वरजांग राठौड़ व रावल बीदा के बीच संघर्ष :- जब वरजांग रोहट में थे, तब उनके कुछ घोड़े चरते-चरते तलवाड़ा की तरफ चले गए, जहां जसोल के रावल बीदा ने उन घोड़ों को पकड़ लिया।

वरजांग ने अपने आदमी जसोल भेजकर घोड़ों की मांग की, तो जसोल वालों ने मना कर दिया। फिर वरजांग ने जसोल पर चढ़ाई की। उस समय रावल बीदा जसोल में नहीं थे, तो उनके पुत्र ने वरजांग की सेना का सामना किया और वीरगति पाई।

वरजांग ने जसोल वालों को पराजित किया और फिर अपने घोड़े लेकर लौट गए। जब रावल बीदा जसोल लौटे, तो उन्हें अपने पुत्र के मारे जाने का पता चला।

रावल बीदा ने सेना सहित वरजांग के विरुद्ध रोहट पर चढ़ाई की। यहां हुई लड़ाई में वरजांग राठौड़ ने विजय प्राप्त की और रावल बीदा वीरगति को प्राप्त हुए।

राव जोधा द्वारा मूता को लूटना :- एक दिन एक श्रीमाली ब्राह्मण ने राव जोधा को सूचना दी कि महाराणा कुम्भा का एक आदमी मूता रैणायर धन लेकर जा रहा है। राव जोधा ने मूता से धन लूटकर उसे छोड़ दिया।

राव जोधा की सोजत विजय :- सोजत के ठाकुर राघवदेव राठौड़ थे, जिनको महाराणा कुम्भा ने ही वहां नियुक्त किया था। सोजत वर्तमान में पाली जिले में स्थित है।

राव जोधा स्वयं सोजत की तरफ सेना लेकर गए और राघवदेव को परास्त करके सोजत पर अधिकार कर लिया। फिर राव जोधा ने अपने वचनानुसार बगड़ी पर अधिकार करके यह जागीर अपने बड़े भाई अखैराज को सौंप दी।

इस घटना के बाद मारवाड़ में यह रिवाज बन गया कि जब भी मारवाड़ के किसी शासक का देहांत हो जाता, तो बगड़ी की जागीर जब्त कर ली जाती थी।

जब नए राजा गद्दी पर बैठते, तब बगड़ी के ठाकुर द्वारा अंगूठा चीरकर राजा का राजतिलक किया जाता, फिर ठाकुर को बगड़ी की जागीर पुनः सौंप दी जाती।

नरबद व राव जोधा के बीच मंडोर को लेकर संघर्ष :- राव जोधा के चचेरे भाई नरबद राठौड़ ने गुजरात के सुल्तान की सेना की सहायता से मंडोर पर अधिकार करके वहां अपने सेनानायक नियुक्त कर दिए।

राव जोधा ने अपने भाई कांधल के नेतृत्व में एक सेना मंडोर की तरफ भेजी और मंडोर में तैनात नरबद के सेनानायकों को सन्देश दिया कि “तुम अपने भविष्य की सोचो कि तुम्हें लगातार राज्य विस्तार कर रहे राव जोधा के सान्निध्य में लड़ना है या उस अंधे नरबद के ?”

कांधल जी राठौड़

यह संदेश पाकर नरबद के सेनानायकों ने राव जोधा का साथ देना तय किया। अपने सेनानायकों को अपने विरोध में देखकर नरबद गुजरात की तरफ जाने लगे, लेकिन रास्ते में ही उनका देहांत हो गया।

कांधल राठौड़ ने मंडोर पहुंचकर बड़ी आसानी से वहां अपना अधिकार स्थापित कर लिया। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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