मारवाड़ नरेश राव जोधा राठौड़ (भाग – 4)

राव जोधा को घोड़ों की प्राप्ति :- मंडोर आदि मारवाड़ के कई क्षेत्रों पर महाराणा कुम्भा का राज था। राव जोधा ने कई बार मंडोर पर आक्रमण किए, परन्तु हर बार असफल रहे और उनके पास घोड़े भी गिनती के बचे।

महाराणा कुम्भा की दादीसा हंसाबाई जी राठौड़ ने आशिया चारण डूला को संदेश देकर राव जोधा के पास भेजा। चारण डूला मारवाड़ के गांव भाडंग और पड़ावे के जंगलों में पहुंचा, जहां राव जोधा अपने साथियों के साथ बाजरे के सिट्टों से अपनी भूख शांत कर रहे थे।

सन्देश में लिखा था कि “महाराणा कुम्भा की सहमति है कि तुम मंडोर वगैरह पर आक्रमण कर लो, इन थानों की रक्षा हेतु महाराणा कुम्भा कोई भी अतिरिक्त सेना नहीं भेजेंगे।”

इस संदेश से राव जोधा को आस बंधी, पर उनके पास घोड़ों की सख़्त कमी थी। राव जोधा सेतरावा के रावत लूणकरण के पास गए, जो कि उनके मौसा थे। रावत लूणकरण कई घोड़े रखते थे।

राव जोधा राठौड़

राव जोधा ने उनसे कहा कि आपके पास 500 घोड़े हैं, उनमें से 200 मुझे दे दीजिए। राव लूणकरण ने कहा कि “तुम भले ही मेरे रिश्तेदार हो, पर मैं महाराणा कुम्भा का आश्रित हूँ। अगर ये घोड़े तुम्हें दे दिए, तो राणाजी मेरी जागीर छीन लेंगे”

राव जोधा रावत लूणकरण की पत्नी भटियाणी (राव जोधा की मौसी) के पास गए और उनसे कहा कि “मैंने मौसाजी से घोड़े मांगे थे, पर उन्होंने तो घोड़े देने से मना कर दिया है, अब आप ही बताएं क्या किया जाए।”

भटियाणी जी ने कहा कि “तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें घोड़े दिलाती हूँ”। भटियाणी जी ने अपने पति को महल में बुलाया और कुछ आभूषण देते हुए कहा कि “ये आभूषण तोशाखाने में रखवा दीजिए”।

जब लूणकरण तोशाखाने गए, तो भटियाणी जी ने बाहर से कुंडी लगा दी और एक दासी को राव जोधा के साथ अस्तबलवालों के पास भेजकर कहलाया कि रावत लूणकरण का आदेश है कि राव जोधा को लवाज़मे सहित घोड़े दे दो।

अस्तबलवालों ने राव जोधा को 140 घोड़े लवाज़मे सहित दिए, जिन्हें लेकर राव जोधा वहां से रवाना हो गए। जब रावत लूणकरण को तोशाखाने से बाहर निकाला गया, तब वे अपनी पत्नी व कामदारों पर बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने घोड़ों के चरवादारों को पिटवाया।

राव जोधा द्वारा कई राजपूतों को अपनी तरफ मिलाना :- हरभू जी के आशीर्वाद व घोड़ों की प्राप्ति के बाद राव जोधा को कुछ चौहान सरदारों का भी साथ मिल गया। फिर राव जोधा ने राठौड़ों की कई शाखाओं को अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया।

लोकदेवता हरभू जी सांखला

मालानी के राठौड़, सिवाना के जैतमलोत राठौड़, पोकरण के पोकरणा राठौड़, सेतरावा के देवराजोत राठौड़ राव जोधा के साथ इस मुहिम में शामिल हो गए।

रूण के सांखला, ईंदावाटी के ईंदा, सेखाला के गोगादे चौहान, गागरोन के खींची चौहान, बीकमपुर के भाटी, पूगल के भाटी व जैसलमेर के भाटी भी राव जोधा की मदद खातिर तैयार थे।

अब राव जोधा के पास घोड़े भी थे, कई राजपूतों का सहयोग भी था और हंसाबाई जी का समर्थन व महाराणा कुम्भा की सहमति भी थी।

राव जोधा द्वारा मेवाड़ी थाने हटाना :- महाराणा कुम्भा ने हंसाबाई जी के कहने पर यह दिलासा दे रखा था कि जोधा द्वारा मंडोर व उसके आसपास के इलाकों पर आक्रमण किया जाएगा, तो मैं अलग से उसके विरुद्ध सेना नहीं भेजूंगा।

इसके अलावा महाराणा कुम्भा वैसे भी 1453 ई. में मालवा और गुजरात के सुल्तानों से भीषण संघर्ष में उलझे हुए थे। राव जोधा ने उचित अवसर देखते हुए अपनी सेना को 3 भागों में बांट दिया।

चौकड़ी के थाने पर राठौड़ों का आक्रमण :- इनमें से एक सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व राव जोधा ने किया। उन्होंने आधी रात में चौकड़ी में तैनात मेवाड़ी छावनी पर अचानक हमला करके विजय प्राप्त की। चौकड़ी के थाने पर दोनों पक्ष के राजपूतों ने बड़ी बहादुरी दिखाई।

इस लड़ाई के दौरान सोजत के ठाकुर राघवदेव राठौड़, जो कि महाराणा कुम्भा द्वारा सोजत में नियुक्त किए गए थे, वे इस समय चौकड़ी में ही थे। हालांकि ठाकुर राघवदेव राठौड़ इस हमले में बच निकलने में सफल रहे और वे मेवाड़ की तरफ चले गए।

महाराणा कुम्भा

चौकड़ी के थाने पर हुए हमले में महाराणा कुम्भा की तरफ से नियुक्त बनवीर भाटी, राणा वीसलदेव, रावल दूदा आदि योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए।

कोसाना के थाने पर राठौड़ों का आक्रमण :- इसी प्रकार दूसरी सैनिक टुकड़ी के नेतृत्वकर्ता चांपा राठौड़ ने कोसाना में तैनात मेवाड़ी छावनी पर आधी रात में हमला करके विजय प्राप्त की।

चांपा राठौड़ राव जोधा के भाई थे। इन दोनों गांवों पर राठौड़ों का अधिकार हो गया, जिससे राठौड़ों का मंडोर को लेने का उत्साह और बढ़ गया। सिसोदियों के कुछ घोड़े भी राठौड़ों के हाथ लगे।

राव जोधा की मंडोर विजय :- तीसरी सैनिक टुकड़ी का नेतृत्वकर्ता वरजांग राठौड़ को बनाया गया था, जो कि राव जोधा के चचेरे भाई थे। इस सैनिक टुकड़ी को मंडोर पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया था।

इस सैनिक टुकड़ी में अच्छी तादाद में राठौड़ थे, लेकिन यह संख्या इतनी नहीं थी कि मंडोर विजय कर सके। इस समय तक चौकड़ी व कोसाना पर अधिकार कर लिए जाने के कारण दोनों सैनिक टुकड़ियां भी वरजांग के साथ मिल गईं।

रात का कुछ समय शेष था, इसलिए सभी ने रात ढलने का इंतजार किया। सुबह होते ही तीनों सैनिक टुकड़ियों ने मिलकर राव जोधा के नेतृत्व में मंडोर पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की।

दोनों तरफ के कई योद्धा इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए। यह मान्यता है कि हरभू जी सांखला इसी लड़ाई में राव जोधा की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

ख्यातों में लिखा है कि मंडोर के कोतवाल कल्याणसिंह मांगलिया राव जोधा के साथ मिल गए और गढ़ के द्वार खोल दिए, जिससे राव जोधा का काम आसान हो गया।

इन लड़ाइयों में मेवाड़ की तरफ से कुंतल, सूआ, अक्का, हिंगलू आहड़ा भी वीरगति को प्राप्त हुए। हिंगलू आहड़ा की छतरी बालसमन्द झील किनारे अब तक विद्यमान है। कुंतल व सूआ रावत चूंडा सिसोदिया के पुत्र थे।

राव जोधा ने मंडोर विजय करके अपने विजय अभियान की मात्र शुरुआत की थी। मंडोर विजय ने उनका हौंसला इतना बढ़ा दिया कि अब वे उसके आसपास के सभी क्षेत्र पाने को आतुर थे।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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