मारवाड़ नरेश राव जोधा राठौड़ (भाग – 2)

राव जोधा का चित्तौड़ से बच निकलना :- 1438 ई. में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में महाराणा कुम्भा व रावत चूंडा सिसोदिया द्वारा राव रणमल की हत्या कर दी गई, जिसके बाद रणमल के पुत्र जोधा को भी मारने का आदेश हुआ।

रावत चूंडा सेना सहित चित्तौड़गढ़ की तलहटी में पहुंचे। तलहटी से राव जोधा तो बच निकले, पर उनके साथी जो वहां ठहर गए वे मारे गए।

रावत चूंडा सिसोदिया को अपने भाई राघवदेव की हत्या का दुःख अब तक कचोटता था। वे राव रणमल को मारकर नहीं रुके, वे राव जोधा को मारने का हरसम्भव प्रयास करने को आतुर थे।

रावत चूंडा द्वारा राव जोधा का पीछा करना :- रावत चूंडा 4 हज़ार की सेना सहित राव जोधा के पीछे रवाना हुए। चीतरोड़ी गांव के निकट सिसोदियों ने राठौड़ों को घेर लिया। राठौड़ किसी तरह चाहते थे कि राव जोधा जीवित रह जाए।

रावत चूंडा

दोनों तरफ कुछ घण्टों तक लड़ाई होती रही, शाम को अंधेरा होते ही राठौड़ों ने फिर से मारवाड़ की तरफ प्रस्थान किया। राठौड़ों ने मारवाड़ जाने के रास्ते भी बदल दिए, कुछ जगह अलग-अलग टुकड़ियों में भी बंट गए।

रावत चूंडा भी उनके पीछे चल दिए। कपासन के निकट सिसोदियों ने राठौड़ों को पुनः घेर लिया। दोनों पक्षों में भीषण लड़ाई हुई। कपासन की लड़ाई में राव जोधा के 3 प्रमुख सरदार व 200 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।

इस लड़ाई में जोधा के भाई पाता ने वीरगति पाई। जोधा के चचेरे भाई वरजांग ज़ख्मी होकर गिर पड़े और सिसोदियों द्वारा कैद कर लिए गए। वरजांग राव जोधा के काका भीम के पुत्र थे। जोधा यहां से भी बच निकले।

इसके बाद भी लड़ाइयां होती रहीं, लेकिन भाग्य जोधा के साथ रहा। जब राव जोधा चित्तौड़ से रवाना हुए थे, तब उनके साथ 700 राठौड़ थे, लेकिन जब वे सोमेश्वर की नाल तक पहुंचे, तब तक 600 राठौड़ वीरगति पा चुके थे।

राठौड़ों ने वहां विचार किया कि यदि ऐसे ही चलता रहा, तो जोधा भी मारे जाएंगे। उनका जीवित रहना आवश्यक है। हालांकि राव जोधा अपने पिता के ज्येष्ठ पुत्र नहीं थे, परन्तु उनके सरदार जानते थे कि राव जोधा में योग्य शासक बनने के सभी गुण हैं।

राव जोधा

इसलिए राव जोधा को 7 राठौड़ वीरों के साथ मंडोर की तरफ रवाना किया गया और शेष राठौड़ों ने तंग घाटी में मोर्चा जमा दिया। रावत चूंडा सोमेश्वर की नाल पहुंचे, तो राठौड़ों से सामना हुआ।

संख्याबल सिसोदियों के साथ था। राठौड़ जानते थे कि वे सभी इस लड़ाई में मारे जाएंगे, फिर भी हिम्मत से डटे रहे। इस लड़ाई में सभी राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुए। माण्डल में जोधा व उनके भाई कांधल की मुलाकात हुई। वहां से ये मारवाड़ चले गए।

इस तरह जोधा केवल 7 घुड़सवारों के साथ मारवाड़ पहुंचने में सफल रहे। राव जोधा की शक्ति मेवाड़ के महाराणा की तुलना में नगण्य थी, इसलिए इस समय राव जोधा द्वारा अपने प्राण बचा पाना ही उनकी विजय थी।

सिसोदियों द्वारा मारवाड़ के इलाकों पर अधिकार :- रावत चूंडा भी राठौड़ों का पीछा करते-करते मारवाड़ पहुंचे और मंडोवर पर कब्जा कर लिया। रावत चूंडा ने अपने पुत्रों कुन्तल, आका व सूवा को वहां तैनात किया।

साथ ही हाजा धोरणिया व हिंगलू आहाड़ा को भी वहां तैनात कर दिया। मेवाड़ की सेना की मंडोर विजय 1438 ई. के अंत में या फिर 1439 ई. की शुरुआत में हुई थी। इस विजय की पुष्टि रणकपुर के जैन मंदिर में खुदे हुए शिलालेख से होती है।

रावत चूंडा द्वारा इन स्थानों पर निम्न योद्धाओं को तैनात किया गया :- सोजत में राघवदेव राठौड़, विक्रमादित्य झाला, सांचोरा चौहान जैसा, शेखसदू, बीसलदेव पंवार को तैनात किया गया।

राव जोधा राठौड़

रोहिट में मांजा, आस्थान, नरा को तैनात किया गया। चोकड़ी में रावल इदा, बनवीर भाटी, सिंघल दर भाम को तैनात किया गया।

राघवदेव को मारवाड़ भेजना :- रावत चूंडा ने मेवाड़ में सन्देश भिजवाया और महाराणा कुम्भा से कहलवाया कि हमें और सेना की आवश्यकता है। तब महाराणा कुम्भा ने राघवदेव राठौड़ को सोजत की जागीर देकर सोजत पर अधिकार करने भेजा।

पाठक इन राघवदेव को महाराणा लाखा का पुत्र समझने की भूल न करें, क्योंकि ये राघवदेव सिसोदिया नहीं बल्कि राघवदेव राठौड़ थे। राघवदेव राठौड़ मारवाड़ नरेश राव चूंडा के पुत्र सहसमल के पुत्र थे और राव जोधा के काका थे।

महाराणा कुम्भा ने राघवदेव को यह भी कहा कि अगर तुमने सोजत का अच्छा प्रबंध किया, तो मंडोर की जागीर भी तुम्हें ही दे देंगे। राघवदेव सोजत पहुंचे, उन्होंने सोजत पर अधिकार कर लिया।

राघवदेव ने महाराणा कुम्भा की नज़र में योग्य साबित होने की दृष्टि से सोजत के नजदीकी क्षेत्रों पर भी अधिकार करने की योजना बनाई। फिर राघवदेव ने बगड़ी, कापरड़ा, चौकड़ी व कोसाना पर अधिकार करके वहां सैनिक चौकियां स्थापित कर दीं।

राघवदेव ने सोजत में लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर बनवाया। रावत चूंडा ने मंडोवर के चारों तरफ मेवाड़ के थाने नियुक्त कर दिए और फिर स्वयं चित्तौड़ लौट गए। इन थानों में सैंकड़ों की संख्या में सिसोदिया राजपूत तैनात थे।

राव जोधा का काहुनी गांव में पड़ाव :- मंडोवर हाथ से निकलने के बाद राव जोधा ने जांगल प्रदेश में प्रवेश करके काहुनी गांव में पड़ाव डाला। राव जोधा द्वारा जांगल प्रदेश में जाने के 3 मुख्य कारण थे :-

यह प्रदेश पूरी तरह रेतीला था व जल की बहुत कमी थी, जिससे मेवाड़ की सेना उनका पीछा करते हुए यहां ज्यादा दिन नहीं रुक सकती थी। मेवाड़ के सैनिक मरुस्थल में रहने के आदि नहीं थे।

दूसरा कारण ये कि इस प्रदेश के निकट स्थित चूंडासर आदि क्षेत्रों पर राठौड़ों का अधिकार था, जिससे समय आने पर उनकी सहायता ली जा सकती थी।

महाराणा कुम्भा

तीसरा कारण ये कि जांगल प्रदेश के सांखला राजपूत व पूगल के भाटी राजपूत राव जोधा के संबंधी थे, जिनकी मदद ली जा सकती थी। इस प्रकार राव जोधा द्वारा इस संकट के समय में जांगल प्रदेश में जाना उन्हें एक योग्य रणनीतिकार सिद्ध करता है।

राव जोधा की माता का सती होना :- राव जोधा जब जांगल प्रदेश में थे, तब उन्होंने अपनी माता द्वारा बनवाए गए कोडमदेसर तालाब के निकट अपने पिता राव रणमल का श्राद्धकर्म किया। राव जोधा की माता कोडमदे इसी तालाब के निकट रहती थीं, इस समय वे यहां सती हो गईं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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