राव जोधा राठौड़ का परिचय :- ये राव रणमल के पुत्र थे। डॉक्टर मोहनलाल गुप्ता व विश्वेश्वर नाथ रेउ ने राव जोधा को राव रणमल का दूसरा पुत्र बताया है, जबकि डॉक्टर ओझा ने राव जोधा को राव रणमल का सबसे बड़ा पुत्र बताया है।
मेरे अनुसार राव जोधा राव रणमल के दूसरे पुत्र ही थे। राव जोधा का जन्म 29 मार्च, 1415 ई. (डॉक्टर ओझा के अनुसार 1 अप्रैल, 1416 ई.) को बुधवार के दिन भटियाणी रानी कोडमदे के गर्भ से धणला गांव में हुआ।
रानी कोडमदे वीकूँपुर व पूंगल के स्वामी केल्हण भाटी की पुत्री थी। बांकीदास री ख्यात में राव जोधा को देवड़ा राजपूतों का भाणेज बताया गया है, जो कि गलत है। राव जोधा भाटियों के भाणेज थे।
राव जोधा का व्यक्तित्व :- राव जोधा वीर व साहसी थे। वे बहुत अधिक धैर्यवान थे। विषम से विषम परिस्थिति या अपनी पराजय से कभी घबराते नहीं थे। चाहे जंगलों में रहना पड़े या घनघोर मरुस्थल में, राव जोधा इन संघर्षों से कभी विचलित नहीं हुए।
वे असाधारण घुड़सवार थे। राव जोधा एक अच्छे नेतृत्वकर्ता थे, सभी को साथ लेकर चलते थे। राव जोधा दूरदृष्टि सोच रखते थे। नए दुर्ग व नए शहर को बसाने का कार्य इतना महान था कि उनकी आने वाली अनेक पीढियां इससे लाभान्वित हुईं।
कहते हैं बहादुरों का भाग्य भी साथ देता है, ऐसे कई अवसर आए जब राव जोधा के प्राण संकट में पड़े, परन्तु वे उस संकट से बच निकलने में सफल रहे। राव जोधा ने मारवाड़ के राठौड़ वंश के राज्य को जितना फैलाया, उतना उनसे पहले इस वंश में किसी ने नहीं फैलाया।
राव जोधा के पिता ने तो अपना अधिकतर समय मेवाड़ में बिताया, लेकिन राव जोधा ने शुरू से ही मारवाड़ के राज्य को बढ़ाना तय कर रखा था और जीवनभर उसी लक्ष्य की ओर अग्रसर रहे।
राव जोधा का कुँवरपदे काल :- कुँवर जोधा की पढ़ाई व घुड़सवारी के लिए राव रणमल ने भीम राठौड़ (राव रणमल के भाई), शत्रुशाल भाटी (लूणकरण भाटी के पुत्र) व पृथ्वीराज (ईंदा राजसिंह के पुत्र) को नियुक्त किया।
राव रणमल अपने पुत्र जोधा को अपने भाई राव सत्ता से मिलाने पहुंचे। राव सत्ता की आंखें बहुत कमजोर हो चुकी थीं, उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था। राव रणमल ने जोधा को राव सत्ता के पैर छूने का इशारा किया, तब जोधा ने राव सत्ता के चरणों में अपना सिर झुकाया।
राव सत्ता ने जोधा को छूकर उठाया, तो बोले कि ये बालक कौन है ? राव रणमल ने कहा कि ये आपका भतीजा है जोधा। राव सत्ता ने कहा कि ये तो इतनी कम आयु में ही अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित है।
कुछ बातचीत होने के बाद राव सत्ता ने कहा कि इस बालक में कई गुण हैं, इसे छूने से ही मालूम पड़ता है कि यह बहुत बलिष्ठ है। ये तुम्हारा बड़ा नाम करेगा।
1428 ई. में जब राव रणमल ने मंडोवर का युद्ध जीता, तब उस युद्ध में 13 वर्षीय जोधा ने भी अपने पिता का साथ दिया था। 1433 ई. में महाराणा मोकल की हत्या हुई, तब राव रणमल उनके हत्यारों को सज़ा देने के लिए चित्तौड़ गए, उस समय जोधा भी उनके साथ थे।
राव जोधा के पिता राव रणमल की हत्या :- 1438 ई. में राव रणमल को आभास हुआ कि महाराणा कुम्भा और रावत चूंडा उन्हें मरवाने का प्रयास करने वाले हैं, तो रणमल ने अपने पुत्र जोधा आदि को चित्तौड़ के किले की तलहटी में भेज दिया।
राव रणमल ने अपने पुत्रों से कहा कि मैं बुलाऊँ तब भी ऊपर मत आना। घोड़ों को चराने के बहाने जोधा किले की तलहटी में रहने लगे।
महाराणा कुम्भा ने जोधा को बुलाने का भी प्रयास किया था, पर राव रणमल ने बहाना बनाकर टाल दिया। 2 नवम्बर, 1438 ई. को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में राव रणमल की हत्या कर दी गई।
चित्तौड़गढ़ की तलहटी में सिसोदियों व राठौड़ों के बीच हुई लड़ाई :- 1438 ई. में महाराणा कुम्भा व रावत चूंडा ने मिलकर राव रणमल राठौड़ की हत्या करवा दी। इस समय चित्तौड़ के महलों में राव रणमल के सहयोगी भी मौजूद थे।
उन्हें राव रणमल की हत्या की सूचना मिली, तो उन्होंने भी अपनी तलवारें निकालीं। भाटी शत्रुशाल इस समय चित्तौड़ के किलेदार थे, जिनको राव रणमल ने ही यह पद दिलाया था, उन्होंने भी अपनी तलवार निकाल ली।
सिसोदिया राजपूत तो पहले ही राठौड़ों को मारने के लिए तैयार बैठे थे। किले में हुई लड़ाई में राव रणमल की तरफ से राठौड़ रणधीर चुंडावत (राव चूंडा राठौड़ के पुत्र), भाटी शत्रुशाल लूणकरणोत व रणधीर सूजावत लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
इस वक्त राव रणमल के पुत्र जोधा, नापा आदि अपने अन्य राठौड़ साथियों सहित चित्तौड़गढ़ दुर्ग की तलहटी में ही मौजूद थे।
रात्रि का समय था, इसलिए राव जोधा तलहटी में सो रहे थे कि तभी एक बुढिया ने किले से तेज़ आवाज़ में ये दोहा कहा :- “चुंडा अजमल आविया, मांडू हूं धक आग। जोधा रणमल मारिया, भाग सके तो भाग।।”
ये सुनकर राव जोधा की नींद उड़ गई। राव जोधा ने अपने साथियों को नींद से जगाया और फौरन वहां से बच निकलने की तैयारी की। रावत चूंडा तलहटी पहुंचे, तब तक जोधा तो वहां से रवाना हो गए, लेकिन उनके कुछ साथी वहीं रह गए।
रावत चूंडा ने वहां मौजूद राठौड़ों पर आक्रमण किया। इस लड़ाई में राव जोधा की तरफ से 7 प्रमुख सरदार व कुल 50 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।
राव जोधा की तरफ से जो प्रमुख राजपूत काम आए, उनके नाम कुछ इस तरह हैं :- शिवराज, पूना भाटी, भीमा, तेजसिंह, वैरीशाल, पृथ्वीराज ईंदा, चरडा चाँदराव अरड़कमलोत।
शराब ने कब किसी का भला किया है। इस लड़ाई के वक्त भीम चुंडावत राठौड़ (राव चूंडा राठौड़ के पुत्र) नशे में थे, इसलिए राव जोधा के साथ वहां से सुरक्षित निकल पाने में असफल रहे।
भीम राठौड़ ने महाराणा कुम्भा के परिवार में ही विवाह किया था, इसलिए संबंधी होने के नाते उनको मारने की बजाय कैद कर लिया गया। बाद में मारवाड़ के एक पुरोहित के निवेदन पर भीम को क़ैदमुक्त कर दिया गया।
रावत चूंडा सेना सहित राव जोधा के पीछे रवाना हुए, आगे का वर्णन अगले भाग में किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
राठौड़ो का श्रेष्ठ इतिहास।
बहुत बहुत साधुवाद आप का इतिहासिक जानकारी के लिएं तनवीर सिंह सा इस मैं जो राव जोधा को चित्तौड़ से निकल ने मैं दोहा की सी बुढ़िया ने नहीं वरन मारवाड़ के रणधवल राजपूत देहदडा पड़िहार पृथ्वीराज के भाई जिन को वर्तमान मैं राजदमामी कहा जा ता हैं ने नगाड़े पर बोला था क्यों की चित्तौड़ दुर्ग से तलहटी तक आवाज बुढ़िया नही पहुंचा सकती …
जोधा भाग सकें तो भाग थारो रणमल मारियो जाए …इस मैं चारपाई वाली बात का जिक्र भी नही हुआ..जोधपुर मैं चारपाई तब से 5 फूट से ज्यादा लंबी नही बना ते …इस पूरे घटना क्रम मैं राज दमामी जी का बड़ा योगदान रहा इस को उजागर करना चाहिए क्यों की कोई भी राजा अपने दमामी के बिना कहीं नहीं जा ता था