1437 ई. – राव रणमल राठौड़ द्वारा राघवदेव की हत्या :- राव रणमल ने राघवदेव को सिरोपाव दिलवाने के बहाने महाराणा कुम्भा के सामने बुलवाया। सिरोपाव के अंगरखे की दोनों बाहों के मुंह सीये हुए थे।
जब राघवदेव ने अंगरखा पहना तो उनके दोनों हाथ फँस गए, इतने में राव रणमल ने अपने दो सैनिकों को इशारा किया और दोनों ने तलवारों से वार कर राघवदेव की हत्या कर दी।
महाराणा कुम्भा को आभास न था कि रणमल ऐसा कर देंगे, परंतु उस समय रणमल का प्रभाव इतना अधिक बढ़ चुका था कि महाराणा कुम्भा भी कुछ न कर सके, परंतु उन्हें यह विश्वास हो गया कि रणमल का मेवाड़ में रहना उचित नहीं।
वास्तव में राव रणमल द्वारा राघवदेव की हत्या का कारण मात्र एक अनबन नहीं थी। राव रणमल के वास्तविक उद्देश्य के बीच में राघवदेव दीवार बनकर खड़े थे, इसलिए रणमल के लिए राघवदेव को रास्ते से हटाना आवश्यक हो गया था।
1438 ई. – राव रणमल्ल की हत्या :- मारवाड़ की ख्यात व मेवाड़ के ग्रंथ वीरविनोद में राव रणमल की हत्या का वर्ष 1443 ई. लिखा है, जो कि गलत है। वास्तव में राव रणमल की हत्या 1438 ई. में हुई थी।
यह बात इस तथ्य से सिद्ध होती है कि 1439 ई. में रणकपुर के जैन मंदिरों में एक शिलालेख खुदवाया गया, जिसमें महाराणा कुम्भा की 7 वर्षों की विजयों का वर्णन है, उनमें मंडोवर विजय करना भी लिखा है।
महाराणा कुम्भा ने राव रणमल के देहांत के बाद ही मंडोवर विजय किया था। राघवदेव की हत्या करने के कारण सिसोदिया राजपूत राव रणमल से नाराज़ रहने लगे, परन्तु चित्तौड़ में राव रणमल का प्रभाव काफी बढ़ गया था।
राव रणमल ने राठौड़ों को उच्च पदों पर आसीन किया। राव रणमल के खास व्यक्ति भाटी शत्रुशाल को चित्तौड़ का किलेदार बना दिया गया।
एक दिन महाराणा मोकल की हत्या में शामिल महपा व एक्का महाराणा कुम्भा के पास आए और अपने अपराधों की क्षमा मांगी, तो महाराणा कुम्भा ने उनको क्षमा कर दिया। यह बात राव रणमल को पसंद न आई।
एक दिन एक्का महाराणा कुम्भा के पैर दबा रहा था, तब उसकी आंख से निकले आंसू महाराणा के पैरों पर गिरने से महाराणा की नींद जागी। महाराणा ने रोने का कारण पूछा, तो एक्का ने कहा कि राठौड़ जल्द ही सिसोदियों से चित्तौड़ छीन लेंगे।
महाराणा ने कहा कि क्या तू मारेगा रणमल को। एक्का ने जवाब में कहा कि आपका आदेश हो तो जरूर मारूंगा। महाराणा ने कहा कि ठीक है, मार देना समय आने पर।
महाराणा कुम्भा की माता सौभाग्यदेवी की दासी भारमली राव रणमल की खास थी। एक दिन वह देर से पहुंची, तो राव रणमल ने कहा कि देर कैसे हुई। भारमली बोली कि राजमाता की दासी हूँ, इसलिए समय लग गया आने में।
राव रणमल उस समय नशे में थे, सो बिना होश के कह बैठे कि जिनको चित्तौड़ में रहना होगा, वे तेरी चाकरी करेंगे। यह बात भारमली ने राजमाता से व राजमाता ने महाराणा कुम्भा से कह दी।
तब महाराणा कुम्भा ने राव रणमल को मारना तय कर लिया। पर जिधर देखो उधर राठौड़ ही दिखते थे, इसलिए महाराणा ने राजमाता से सलाह की। राजमाता ने कहा कि चूंडा को बुलाने का समय आ गया है। चूंडा ही हमें इस समस्या से निजात दिलवा सकता है।
महाराणा ने सन्देश भेजा, जिसके बाद मांडू से रावत चूंडा अपने भाई अज्जा समेत चित्तौड़ आ गए। राव रणमल ने रावत चूंडा के चित्तौड़ आने पर एतराज जताया, तो राजमाता ने कहा कि चूंडा जैसे स्वामिभक्त व निस्वार्थ देशभक्त को भला कौन रोक सकता है।
उसी दिन से राव रणमल को कुछ अनिष्ट की आशंका होनी शुरू हुई, जो उस समय यकीन में बदल गई, जब एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि महाराणा आपको मरवा देंगे।
ये सुनकर राव रणमल ने अपने पुत्रों जोधा, कांधल आदि को सचेत किया और ये कहते हुए किले की तलहटी में भेज दिया कि “मैं बुलाऊँ तब भी तुम किले पर मत आना”
महाराणा कुम्भा और रावत चूंडा ने सलाह करके राठौड़ों को तलहटी से किले में लाकर मारने का विचार किया। एक दिन महाराणा कुम्भा ने राव रणमल से पूछा कि आजकल जोधा कहाँ रहता है ? वह यहां क्यों नहीं आता, उसे बुलाओ।
राव रणमल महाराणा के इस प्रश्न को हर बार टालते रहे। कभी कहते कि वह तो घोड़ों को चरा रहा है, तो कभी कोई और बहाना बना लेते। 2 नवम्बर, 1438 ई. की रात को भारमली के ज़रिए राव रणमल को खूब शराब पिलवाई गई।
जब रणमल बेहोश हो गए, तो उनको खाट से बांध दिया गया। फिर महपा पंवार अपने साथियों सहित भीतर गया और राव रणमल पर प्रहार किए, तो वृद्ध राव रणमल ने बड़ी बहादुरी दिखाई और खाट समेत खड़े हो गए।
राव रणमल ने उस अवस्था में भी महाराणा के एक सैनिक को कटार से मारा, दूसरे को पानी के लोटे से मारा और तीसरे को लातों से मार गिराया। इस तरह 3 सैनिकों को मार दिया और ख़ुद भी काम आए।
राव रणमल की रानियां :- राव रणमल की कई रानियां थीं, पर उनके नाम नहीं मिलते हैं। मुझे उनमें से कुछ के बारे में ही जानकारी मिली है।
उनकी एक रानी नाडौल के स्वामी लोला सोनगरा चौहान की पुत्री थी। एक रानी जैसलमेर के महारावल लक्ष्मण भाटी की पुत्री थी। राव रणमल का एक विवाह गुजरात में ध्रांगध्रा की राजकुमारी अखेर कंवर झाला से हुआ था।
राव रणमल द्वारा फिरोज़ से युद्ध लड़ने से संबंधित ऐतिहासिक भ्रम :- जोधपुर की ख्यात में राव रणमल द्वारा दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक को परास्त करना लिखा है, जो कि गलत है। क्योंकि फिरोजशाह तो राव रणमल के समकालीन ही नहीं था।
राव रणमल के समय फिरोज़ नामक एक व्यक्ति नागौर का शासक था, लेकिन उसने कभी मंडोर पर चढ़ाई नहीं की। दयालदास की ख्यात में राव रणमल द्वारा नागौर के फिरोज़ को मारना लिखा है, लेकिन यह कथन भी गलत है। क्योंकि इस फिरोज़ की मृत्यु राव रणमल के देहांत के 13 वर्ष बाद हुई थी।
राव रणमल के इतिहास के अगले व अंतिम भाग में उनके सभी पुत्रों का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
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