मुहणौत नैणसी की ख्यात में राव रणमल से संबंधित अशुद्धि :- नैणसी ने एक घटना में राव रणमल द्वारा आमेर नरेश पूरणमल कछवाहा के भरे दरबार में उन पर हावी होना लिखा है। परन्तु यह घटना अतिशयोक्ति से अतिरिक्त कुछ नहीं, इसलिए इसे यहां स्थान नहीं दिया जा रहा है।
1433 ई. – महाराणा मोकल की हत्या :- एक दिन मारवाड़ में राव रणमल राठौड़ दरबार लगाए बैठे थे, तब उन्होंने कहा कि “बहुत दिन हो गए, चित्तौड़ से कोई समाचार नहीं आया।”
कुछ दिन बाद ही एक संदेशवाहक राव रणमल के पास आया और सन्देश सुनाया कि महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध संतानों चाचा व मेरा ने महपा, एक्का आदि के साथ मिलकर महाराणा मोकल की हत्या कर दी।
राव रणमल को अपने भाणजे महाराणा मोकल की हत्या की खबर सुनकर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने उसी समय पगड़ी उतारकर फैंटा बांध लिया और प्रतिज्ञा ली कि
“जब तक अपने भाणजे मोकल की हत्या का प्रतिशोध न ले लूँ, तब तक सिर पर पगड़ी धारण न करूँगा। मोकल के हत्यारों को मारकर सिसोदियों की कन्याओं के ब्याह राठौड़ों से न करवाए तो मेरा नाम रणमल नहीं।”
राव रणमल ने चित्तौड़ आकर महाराणा कुम्भा से आज्ञा ली और वहाँ से 500 सवारों की फौज लेकर पई व कोटड़ा की पहाड़ियों में चले गए, जहां चाचा और मेरा अपने परिवार वालों के साथ छिपे थे।
पहले कभी एक बार राव रणमल ने भीलों के एक मुखिया को मार दिया था, जिस वजह से भील लोग उनसे नाराज़ थे। राव रणमल 6 महीनों तक पहाड़ियों में रहने के बावजूद चाचा व मेरा तक नहीं पहुंच सके।
फिर उन्होंने विचार किया कि भीलों की सहायता के बिना ये सम्भव नहीं। भीलों को अपने पक्ष में करने के लिए वे उस भील मुखिया की विधवा स्त्री के घर गए। भीलों में एक कायदा था कि अगर कोई शत्रु भी उनसे मदद मांगने उनके घर तक आ जाए, तो उसकी मदद करते थे।
राव रणमल ने अपनी करनी का पछतावा किया, जिससे उस भीलनी ने उनको क्षमा किया। भीलनी ने अपने 5 पुत्रों को राव रणमल की हरसम्भव सहायता करने का आदेश दिया।
भीलनी के कहने पर उसके सभी पुत्रों ने चाचा व मेरा को मारने के लिए राव रणमल के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भीलों की मदद से राव रणमल ने पहाड़ियों में धावे बोल दिए।
एक कोट में छिपे चाचा और मेरा बुरी तरह मार दिए गए। उनके परिवारों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इन पहाड़ियों में कुछ मेर भी रहते थे, जिनमें से एक मेर राव रणमल के साथ मिल गया।
मेर ने राव रणमल से कहा कि महपा कहाँ रहता है मुझको मालूम है। राव रणमल ने कहा कि हमें भी उस तक ले चल। मेर ने कहा कि ले तो चलूं, पर आपको एक महीना रुकना पड़ेगा।
राव ने कारण पूछा, तो मेर ने कहा कि मार्ग में एक शेरनी ने बच्चों को जन्म दिया है। राव ने कहा कि तू शेरनी की फिक्र मत कर, उसे हम देख लेंगे।
मेर राव रणमल को महपा के घर की तरफ ले गया, जहां मार्ग में शेरनी मिली। राव रणमल के आदेश से उनके पुत्र अरड़कमल ने तलवार के एक ही वार से शेरनी को मार दिया।
राव रणमल को वह मेर उस घर तक ले गया जहां महपा रह रहा था। राव रणमल ने आवाज़ लगाई, तो अंदर से एक बुढ़िया बोली कि “महपा तो मेरे कपड़े पहनकर भाग गया है, ताकि कोई पहचान न पाए।”
महपा व एक्का भागकर मांडू के सुल्तान महमूद की शरण में चले गए। राव रणमल राठौड़ ने महाराणा कुम्भा के पिता महाराणा मोकल के हत्यारों को मारकर मेवाड़ में अपना रुतबा क़ायम कर लिया।
राव रणमल ने जब महाराणा मोकल के हत्यारों चाचा व मेरा के डेरों पर हमला किया था, तब वहां पुरुषों को तो मार डाला और लड़कियों को देलवाड़ा ले आए। ये लड़कियां चाचा व मेरा के पक्ष वालों की थी।
मुहणौत नैणसी ने उन लड़कियों का विवाह राठौड़ों से करवाने की बात लिखी है, जो कि काल्पनिक है। वैसे भी वे लड़कियां चाचा व मेरा के पक्ष की थीं, इसलिए शुद्ध राजपूत नहीं थीं।
वास्तव में जब राव रणमल उन लड़कियों को देलवाड़ा ले गए, तो यह बात महाराणा लाखा के पुत्र राघवदेव को बहुत बुरी लगी। राघवदेव तुरंत देलवाड़ा गए और उन लड़कियों को वहां से लेकर चित्तौड़ आ गए। इस बात से राव रणमल को अत्यंत क्रोध आया।
1437 ई. – सारंगपुर का युद्ध :- महाराणा कुम्भा व मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम के बीच सारंगपुर में युद्ध हुआ, जिसमें महाराणा कुम्भा ने विजय प्राप्त की। मारवाड़ के इतिहास में राव रणमल द्वारा इस लड़ाई में भाग लेने व महमूद खिलजी को मारने का वर्णन मिलता है।
लेकिन मेवाड़ के इतिहास में राव रणमल के इस युद्ध में भाग लेने का वर्णन नहीं मिलता है। वास्तव में राव रणमल के देहांत के लगभग 30 वर्ष बाद महमूद खिलजी की मृत्यु हुई थी, इसलिए राव रणमल द्वारा महमूद को मारने की बात मिथ्या है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)