1428 ई. – राव रणमल की मंडोवर विजय :- राव सत्ता के पुत्र नरबद राठौड़ थे। राव सत्ता की आंखें कमजोर हो गई थीं, इसलिए राज्य का कारोबार नरबद देखने लगे।
उन दिनों रणधीर आय आदि का आधा हिस्सा अपने पास रखते थे, जिससे नरबद को खटका। एक बार कहीं से 400 रुपए नरबद के पास आए और उन्होंने आधा हिस्सा रणधीर को नहीं दिया, तब रणधीर के पुत्र नापा ने विरोध जताया।
नरबद पाली के सोनगरा चौहानों के भाणजे थे व नापा सोनगरों के जमाई थे। नरबद ने सोनगरों के जरिए नापा को मरवाना चाहा, पर सोनगरों ने ऐसा करने से मना किया।
फिर एक दासी के जरिए नरबद ने नापा को विष देकर मरवा दिया। अब नरबद ने रणधीर को मारने की तैयारियां भी शुरू कर दी और सेना एकत्र करने लगे। घी बेचने वाले एक व्यापारी ने रणधीर को सचेत कर दिया।
इसी बीच राव रणमल ने महाराणा मोकल से मंडोवर जितने के लिए सहायता मांगी, तो महाराणा ने स्वयं सेना सहित मंडोवर के लिए कूच किया। राव रणमल व महाराणा मोकल ने यह लड़ाई जीत ली और मंडोवर की गद्दी पर राव रणमल बैठे।
इस लड़ाई में राव रणमल के भतीजे नरबद की एक आँख फूट गई। कहीं तो लिखा है कि तीर लगने से आंख फूटी तो किसी अन्य जगह लिखा है कि लड़ाई के बाद ज़ख्मी हालत में ज़मीन पर पड़े नरबद जी की आंख एक गिद्ध ने निकाल ली।
इस लड़ाई में ऊदा जी ने बड़ी बहादुरी दिखाकर वीरगति पाई। नरबद जी की तरफ से 300 व रणमल जी के 70 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।
महाराणा मोकल नरबद और राव सत्ता को चित्तौड़ ले आए। महाराणा ने नरबद को एक लाख आय वाली कायलाणा की जागीर दे दी व उनको अपना सरदार बनाया।
राव रणमल की यात्रा :- राव रणमल अपने पुत्र जोधा व कांधल के साथ गयाजी की यात्रा को गए, तब वहां बहुत दान-पुण्य किया था। लौटते समय कुछ दिन आमेर में भी ठहरे।
इस समय राव रणमल का अधिकार मंडोर, पाली, सोजत, जैतारण व नाडौल पर था। राव रणमल ने अपने राज्य में एक ही प्रकार के नाप और तौल का प्रचार किया था।
राव रणमल द्वारा गांवों का दान :- राव रणमल ने जालोर परगने का कुवारडा गांव, धर्मद्वारी गांव व पाली परगने का पुनायता गांव पुरोहितों को दान में दिए थे। राव रणमल ने बीसावास नामक गाँव चारणों को भेंट किया।
वत्सराज मेहता का मारवाड़ आगमन :- मेवाड़ में मेहता अगरचन्द के घराने ने मेवाड़ राज्य की बड़ी सेवा की। इन्हीं अगरचन्द जी के पूर्वजों में वील्हा नामक व्यक्ति हुए। वील्हा के 7वें वंशधर वत्सराज मारवाड़ चले गए।
उस समय मारवाड़ के शासक राव रणमल थे। राव रणमल ने वत्सराज को अपनी सेवा में रख लिया। यह भी सम्भव है कि राव रणमल मेवाड़-मारवाड़ में कई बार आते-जाते रहते थे,
तो मेवाड़ से वत्सराज को अपने साथ मारवाड़ ले गए होंगे। वत्सराज ने राव रणमल के शासनकाल में तो मारवाड़ की सेवा की ही थी, बाद में राव जोधा के समय भी वे मारवाड़ राज्य की सेवा करते रहे।
1428 ई. – राव रणमल की जालोर विजय :- इस समय जालोर पर पठान हसन खाँ का अधिकार था, जो अपने आसपास के क्षेत्रों में उत्पात मचाने लगा था। राव रणमल ने उसे सबक सिखाने के लिए सेनापति ऊदा राठौड़ को सेना सहित भेजा।
सेना द्वारा घेरे जाने के बाद कुछ दिन तक हसन खां ने लड़ाई जारी रखी, लेकिन रसद की कमी होने पर बाहर आकर आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह जालोर पर राव रणमल का अधिकार हो गया।
राव रणमल द्वारा अजमेर को मेवाड़ में मिलाना :- महाराणा मोकल के अंतिम समय में राव रणमल राठौड़ ने पंचोली खेमसी के ज़रिए अजमेर पर विजय प्राप्त की थी और खाटू गांव का पट्टा खेमसी को जागीर में दिया था।
इस घटना के बारे में यह वर्णन भी मिलता है कि अजमेर का मुसलमान हाकिम किसी राजपूत कन्या से विवाह करने का इच्छुक था। यह बात राव रणमल को पता चली।
राव रणमल ने अच्छा अवसर देखकर हाकिम से कहलवा दिया कि हम करवाएंगे तुम्हारा विवाह। फिर राव रणमल ने अपना दूत भेजकर कहलवाया कि हम 100-200 व्यक्तियों के साथ आएंगे, क्योंकि हमारा पद भी अब बड़ा है।
हाकिम ने हामी भर दी, जिसके बाद राव रणमल 150 चुनिंदा मेवाड़ के योद्धाओं के साथ रवाना हुए। मुसलमान सतर्क नहीं थे, इसलिए राव रणमल ने अचानक हमला करके मुसलमानों को परास्त किया और अजमेर पर अधिकार कर लिया।
एक पुस्तक में यह घटना महाराणा लाखा के समय घटित होना लिखा गया है, जो कि अनुचित है। अजमेर विजय महाराणा मोकल के शासनकाल में ही हुई थी। लेकिन कुछ समय बाद नागौर के हाकिम ने अजमेर फिर से छीन लिया।
अजमेर का राज लंबे समय तक किसी एक के पास बना नहीं रहता था। अजमेर के लिए अनेक वर्षों तक मेवाड़, मारवाड़ व मुसलमानों में खींचातानी जारी रही।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)