महाराणा लाखा व हंसाबाई जी राठौड़ का विवाह :- मारवाड़ के राव रणमल राठौड़ अपने साथियों सहित मेवाड़ चले गए। एक दिन मेवाड़ के महाराणा लाखा ने मजाक किया, जिसे सुनकर उनके ज्येष्ठ पुत्र कुँवर चूंडा को लगा कि महाराणा लाखा की इच्छा राव रणमल की बहन हंसाबाई से विवाह करने की है।
कुँवर चूंडा ने प्रण लिया कि वे यह विवाह करवा कर रहेंगे। उन्होंने राव रणमल से कहा, तब रणमल ने कहा कि महाराणा की उम्र काफी अधिक है और उनके ज्येष्ठ पुत्र तो आप ही हैं, इसलिए गद्दी तो आपको ही मिलेगी।
मारवाड़ की एक ख्यात के अनुसार जब राव रणमल ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह महाराणा लाखा से करवाने पर मना कर दिया, तब कुँवर चूंडा ने राव रणमल के चानण नामक एक चारण के जरिये विवाह की बात आगे बढ़ाई।
चानण ने कहा कि विवाह हो सकता है, यदि उनसे होने वाले पुत्र को उत्तराधिकारी घोषित करने का वचन दिया जावे। तब कुँवर चूंडा ने भीष्म प्रतिज्ञा ली और कहा कि महाराणा लाखा और हंसाबाई जी से जो पुत्र उत्पन्न होगा, वही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगा।
फिर महाराणा लाखा व हंसाबाई जी का विवाह हुआ और 13 माह बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम मोकल रखा गया। मोकल महाराणा लाखा के 8वें पुत्र थे, लेकिन फिर भी मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने।
1421 ई. – महाराणा लाखा का देहांत :- महाराणा लाखा का देहांत हो गया। हंसाबाई जी सती होने को जा रही थीं, पर चूंडा जी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। महाराणा मोकल का राज्याभिषेक हुआ।
रावत चूंडा द्वारा राज्य-त्याग :- फिर कुछ समय बाद हंसाबाई जी को लगा कि कहीं चूंडा राजगद्दी पर अपना दावा न कर दे। इसलिए उन्होंने रावत चूंडा से कहा कि “अगर तुम मोकल के नौकर हो, तो मेवाड़ के बाहर जहां चाहो वहां चले जाओ और यदि राज्य चाहते हो तो मैं अपने पुत्र समेत कहीं चली जाऊं।”
चूंडा जी ने कहा कि “मैं ही जाता हूँ, आप यहीं रहें।” कर्नल जेम्स टॉड ने हंसाबाई जी को बहुत अधिक षड्यंत्रकारी बताया है।
चूंडा जी ने मांडू के लिए प्रस्थान करने से पहले अपने छोटे भाई राघवदेव को महाराणा मोकल का संरक्षक नियुक्त कर दिया। इस समय राजमाता हंसाबाई व राव रणमल के प्रभाव के कारण राघवदेव का प्रभाव कम होता दिखाई दे रहा था।
महाराणा मोकल भी अपने मामा राव रणमल की बात ज्यादा मानते थे। राव रणमल ने मेवाड़ में राठौड़ों को उच्च पदों पर आसीन करवा दिया। मेवाड़ में राठौड़ों की शक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
1423 ई. :- मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ का देहांत हो गया। फिर राव रणमल मारवाड़ गए। एक ख्यात में लिखा है कि इस दौरान सलीम नाम का एक हाकिम अजमेर दरगाह जा रहा था, कि तभी राव रणमल ने उसका मार्ग रोक लिया।
दोनों पक्षों में लड़ाई हुई, जिसमें सलीम मारा गया। राव रणमल ने अपने पिता के वचनानुसार अपने भाई कान्हा को राजगद्दी पर बिठा दिया।
राव रणमल द्वारा भाटियों से बैर लेना :- अपने पिता की हत्या का बैर लेने के लिए राव रणमल ने बार-बार भाटी राजपूतों पर चढ़ाइयाँ की। ख्यातों में तो यहां तक लिखा है कि राव रणमल ने जैसलमेर के भाटियों पर छोटी-बड़ी कुल 41 बार चढ़ाइयाँ की।
हालांकि 41 बार चढ़ाई का वर्णन बिल्कुल अतिश्योक्ति भरा है, क्योंकि जैसलमेर के इतिहास में इन चढ़ाइयों का कोई वर्णन नहीं मिलता, लेकिन यह अवश्य है कि राव रणमल ने भाटियों को तंग किया था।
राव रणमल द्वारा राज्य विस्तार :- 1426 ई. में राव रणमल ने तोगा सींधल राठौड़ को पराजित करके जैतारण पर अधिकार कर लिया। राव रणमल ने हुलों को भगाकर सोजत पर भी अधिकार कर लिया।
सोजत की इस लड़ाई में राव रणमल के साथ उनके पुत्र अखैराज भी थे, इसलिए सोजत की जिम्मेदारी अखैराज को ही सौंप दी गई।
राव रणमल द्वारा झावर के युद्ध में कचरा सींधल को, बगड़ी में चरड़ा सींधल को व सोजत में नाढा सींधल को मारने का वर्णन मिलता है। ख्यातों में लिखे वर्णन के अनुसार राव रणमल ने अपने पिता की हत्या में शामिल केलण भाटी को मारकर वीकमपुर को लूट लिया।
राव रणमल द्वारा भाटी कन्या से विवाह करना :- राव रणमल ने भाटी राजपूतों के विरुद्ध अंतिम चढ़ाई 1430 ई. में की थी, तब भाटियों ने एक चारण भुज्जा सिंढायच को राव रणमल के पास भेजा।
चारण ने यश पढा, जिसके बाद राव रणमल ने कहा कि अब मैं कभी भाटियों से बिगाड़ नहीं करूंगा। जैसलमेर के महारावल लक्ष्मण भाटी ने अपनी कन्या राव रणमल को ब्याह दी।
मुहणौत नैणसी की ख्यात में राव रणमल से संबंधित अशुद्धि :- नैणसी ने एक घटना में महाराणा मोकल के देहांत के समय राव रणमल राठौड़ का नागौर पर राज करना लिखा है, जो कि गलत है। इस समय नागौर पर मुसलमान शासक फिरोज़ का राज था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)