राव रणमल राठौड़ :- ये मारवाड़ के शासक राव चूंडा राठौड़ के पुत्र थे। राव रणमल का जन्म 28 अप्रैल, 1392 ई. को हुआ। राव रणमल चतुर, शरीर से बलिष्ठ, साहसी व वीर थे। ख्यातों में इनका नाम राव रिड़मल भी मिलता है।
राव रणमल पितृभक्त थे, वे अपने पिता के हर आदेश की पालना करते थे। राव रणमल का सारा जीवन ही युद्धों में व्यतीत हुआ। राव रणमल मेवाड़ की राजनीति को काफी प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।
राव चूंडा राठौड़ द्वारा पुत्र रणमल को राज्य से निर्वासित करना :- राव चूंडा की मोहिल रानी को पुत्र हुआ, जिसका नाम कान्हा रखा गया। राव चूंडा ने रानी से पूछा कि तुमने बालक को घुंटी क्यों नहीं दी, तो रानी ने कहा कि रणमल को राज्य से निकालो, तो घुंटी दूं।
राव चूंडा ने रणमल को बुलाकर कहा कि तू तो सपूत है, पिता की आज्ञा मानना ही पुत्र का धर्म है। रणमल ने कहा कि पिताजी, आप यह राज्य कान्हा को दे दीजिए, मुझे इससे कोई मतलब नहीं। इतना कहकर रणमल ने अपने पिता के पैर छूए और सोजत के लिए निकल गए।
राव रणमल वहां से रवाना हुए, तब उनके साथ कई राजपूत योद्धा भी थे। सिखरा, ईंदा, ऊदा त्रिभुवनसिंहोत, राठौड़ कालोटीवाणो आदि राजपूत राव रणमल के साथ थे। मार्ग में एक रहट चलता देखा, तो घोड़ों को जल पिलाकर खुद भी थोड़ा विश्राम किया।
इस जगह सिखरा ने एक दोहा कहा, जिससे नाराज होकर ऊदा और काला ने कहा कि हम इसके साथ आगे नहीं बढ़ेंगे। इतने में दल्ला गोहिलोत के पुत्र भी वहां से उठे और राव चूंडा के पास चले गए।
राव रणमल की नाडौल विजय :- इस तरह कुछ साथी छूट गए, फिर भी राव रणमल के साथ 500 साथी शेष रहे। कुछ समय तक राव रणमल जोजावर नामक गाँव में रहे और फिर वे सब धणला गांव में पहुंचे। यह गांव नाडौल के निकट स्थित था। नाडौल में उन दिनों सोनगरा चौहानों का राज था।
सोनगरों ने एक चारण को राव रणमल के पास भेजा ये पता करने के लिए कि राठौड़ों के पास कितनी सेना है। चारण ने राव रणमल के पास जाकर बातचीत की, फिर भोजन की तैयारी हुई।
चारण से कहा गया कि आप एक दिन यहीं रुकें। फिर भोर होते ही राव रणमल अपने साथियों समेत शिकार के लिए निकले और एक पर्वत पर 5 जंगली सूअरों का शिकार किया। कुछ समय बाद फिर से खबर मिली कि एक नदी के निकट बड़ा जंगली सूअर दिखाई दिया है।
राव रणमल उक्त चारण को साथ लेकर निकल पड़े और उस सूअर को मारकर वापिस लौटे। फिर कुछ समय बाद सूचना मिली कि कोलर के तालाब के निकट एक बाघ और बाघिन का जोड़ा दिखाई दिया है। राव रणमल उक्त चारण के साथ गए और दोनों का शिकार कर लिया।
नाडौल से एक कोस की दूरी पर राव रणमल ने चारण को विदा किया। चारण ने नाडौल पहुंचते ही सोनगरा चौहानों से कहा कि “राव रणमल ने पास ही डेरा किया है, जल्द ही हमला कर सकते हैं। उनके पास धन भी बहुत है। मालूम नहीं कि इतना धन आया कहाँ से है।”
नाडौल के स्वामी लोला सोनगरा ने अपनी पुत्री का विवाह राव रणमल से करवा दिया। लेकिन सोनगरों ने विवाह करवाने के बाद भी किसी कारण यह विचार किया कि राव रणमल सही व्यक्ति नहीं है, इसे मार देना चाहिए।
राव रणमल जब नाडौल में ही थे, तब उनकी पत्नी व सास ने इस षड्यंत्र की बात उन्हें बताकर नाडौल से सुरक्षित बाहर निकलवा दिया। इसके बाद राव रणमल सोनगरों से बदला लेने का अवसर देखते रहे।
एक दिन इन्होंने सोनगरों पर अचानक हमला कर दिया, सोनगरे सतर्क नहीं थे। राव रणमल ने सोनगरों को मारकर एक कुएं में फिंकवा दिया। आखिर में उन्होंने अपने सगे साले को फेंका और फिर नाडौल पर अधिकार कर लिया।
राव रणमल की नाडौल विजय किस वर्ष हुई यह अधिक स्पष्ट नहीं है। किसी ख्यात में तो इनकी नाडौल विजय मेवाड़ आगमन के बाद 1425 ई. में लिखी है, जबकि किसी अन्य ख्यात में राव चूंडा के देहांत के कुछ समय बाद ही राव रणमल द्वारा नाडौल जीतना लिखा है।
राव रणमल का मेवाड़ आगमन :- राव रणमल ने कुछ दिन वहीं रहने के बाद मेवाड़ की तरफ प्रस्थान किया। इस समय मेवाड़ पर प्रसिद्ध महाराणा हम्मीर के पौत्र महाराणा लाखा का शासन था।
मारवाड़ के मुहणौत नैणसी लिखते हैं कि “महाराणा लाखा के यहां राजपूतों के सभी 36 कुल के लोग चाकरी करते थे। रणमल भी वहां जाकर महाराणा लाखा का चाकर हुआ।”
महाराणा लाखा ने राव रणमल को 40 गांवों सहित धणला की जागीर दी। राव रणमल ने कुछ समय मेवाड़ में ही रहना तय किया। इस समय उनके साथ उनकी बहन हंसाबाई राठौड़ भी थीं। अगले भाग में जारी….
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)