मारवाड़ नरेश राव कान्हा राठौड़ :- राव चूंडा राठौड़ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र रणमल के स्थान पर कान्हा को उत्तराधिकारी घोषित किया था। 1423 ई. में राव चूंडा के देहांत के बाद राव कान्हा का राज्याभिषेक हुआ।
राव कान्हा का जन्म 1408 ई. में हुआ था। राज्याभिषेक के समय वे मात्र 15 वर्ष के थे। जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार रणमल ने कान्हा को टीका दिया और फिर खुद मेवाड़ के महाराणा मोकल के पास चले गए।
उक्त ख्यात का यह कथन बिल्कुल गलत है, क्योंकि राव रणमल तो महाराणा लाखा के शासनकाल में ही मेवाड़ चले गए थे। राव कान्हा ने नागौर के आसपास के इलाकों पर आक्रमण करके वहां अपना अधिकार स्थापित किया।
लेकिन कुछ समय बाद नागौर के फिरोज़ खां ने राव कान्हा को परास्त कर दिया, जिससे राव कान्हा को नागौर छोड़कर मंडोर जाना पड़ा।
राठौड़ों व सांखलों के बीच हुआ युद्ध :- जांगलू पर माणकराव सांखला के पुत्र पुण्यपाल का राज था। पुण्यपाल के पास उस समय लगभग 2500 सैनिक थे।
राव चूंडा राठौड़ के शासनकाल में होली, दीपावली व दशहरे के अवसर पर सांखला राजपूत, राव चूंडा के दरबार में उपस्थित रहते थे, परन्तु राव कान्हा के गद्दी पर बैठने के बाद किसी भी त्योहार पर सांखला राजपूतों ने अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई।
इन्हीं दिनों पुण्यपाल ने राव कान्हा के राज्य की सीमाओं पर आक्रमण करना भी शुरू कर दिया। राव कान्हा ने विचार किया कि सांखलों ने अब आदेश पालन करना तो बन्द कर ही दिया है, तो क्यों न उन्हें मारकर जांगलू को भी अपने राज्य में मिला लिया जावे।
जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार सांखला पुण्यपाल ने एक ऊंट सवार को भेजकर राव कान्हा के भाई राव रणमल से सहायता मांगी, तो रणमल सेना सहित उनकी मदद खातिर रवाना हुए।
राव रणमल ने सारूंडा गांव में पड़ाव डाला। किसी ख्यात में इस लड़ाई में राव रणमल द्वारा खुद न जाकर 1 हजार सैनिकों सहित अपने पुत्र जोधा व भाई भीम को भेजना लिखा है।
सारूंडा गांव से आगे बढ़ने के लिए रवाना होने ही वाले थे कि ऊदा राठौड़ ने उनसे कहा कि आप कुछ समय यहीं ठहरें, क्योंकि यदि कान्हा मारा गया तो राज आपका ही रहेगा और सांखले मारे गए तो जांगलू पर आप अधिकार कर लेना।
यह बात राव रणमल को पसंद आई और वे उसी गांव में ठहरे रहे। एक दूत ने सांखला राजपूतों को खबर दे दी कि राव रणमल आपकी मदद खातिर नहीं आएंगे, तब सांखलों ने निश्चय किया कि अब हम उनके भरोसे न रहकर खुद ही राव कान्हा का सामना करेंगे।
पुण्यपाल ने अपने चचेरे भाई वरसिंह से कहा कि तुम परिवारजनों सहित यहां से निकल जाओ। वरसिंह ने बड़ी मुश्किल से हामी भरी, लेकिन एक आपत्ति जताई और कहा कि राव कान्हा की सेना में जैता भी शामिल है,
जिसकी मुझसे पहले भी अनबन हुई है, वह मुझे जाता हुआ देखेगा तो जरूर हमला करेगा। हुआ भी वैसा ही। राव कान्हा और पुण्यपाल के बीच लड़ाई हुई, जिसमें सांखले परास्त हुए।
हाथी पर सवार जैता की नज़र वरसिंह पर पड़ी, तब जैता हाथी से उतरकर घोड़े पर सवार हुए और दोनों लड़ने को आमने-सामने आए। वरसिंह ने भीषण प्रहार किया, जिससे जैता वीरगति को प्राप्त हुए। कहीं कहीं ऐसा लिखा है कि जैता के हाथों से वरसिंह मारे गए।
सांखलों की तरफ से पुण्यपाल, विजौ, वीरा, झांवो व उदौ वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह राव कान्हा राठौड़ ने विजय प्राप्त की।
ख्यातों के अनुसार राव कान्हा ने मात्र 11 महीनों तक शासन किया और फिर पेट की किसी बीमारी के कारण उनका देहांत हो गया। ख्यातों में यह भी लिखा है कि यह बीमारी उन्हें प्रसिद्ध करणी माताजी द्वारा दिए गए किसी शाप के कारण हुई थी।
एक ख्यात में लिखा कि “राव चूंडा के देहांत के बाद रणमल का राजतिलक किया जा रहा था, तब रणधीर ने दरबार में आकर राव सत्ता का पक्ष लिया और फिर रणधीर ने नागौर से मुसलमानों की फौज लेकर मंडोवर पर चढ़ाई करवाई।
इस लड़ाई में महाराणा मोकल परास्त हो गए, पर रणमल ने मुसलमानों को परास्त किया और फिर मेवाड़ लौट गए।” इस ख्यात का यह सम्पूर्ण कथन कपोलकल्पित है, क्योंकि उस समय राजतिलक राव कान्हा का हुआ था, ना कि रणमल का।
मारवाड़ नरेश राव सत्ता राठौड़ :- ये राव चूंडा राठौड़ के पुत्र व राव कान्हा के भाई थे। राव कान्हा के देहांत के बाद राव सत्ता मंडोर की गद्दी पर बैठे। राव सत्ता ने खारी नामक गांव एक चारण को भेंट किया था।
बांकीदास री ख्यात के अनुसार राव सत्ता शराब का सेवन अधिक करते थे, इसलिए राजकाज का कार्य उनके भाई रणधीर सम्भालते थे।
राव सत्ता का ज्यादा इतिहास नहीं मिलता है, परन्तु इनके समय भी राव रणमल की प्रसिद्धि काफी हो गई थी। राव सत्ता का थोड़ा बहुत वर्णन राव रणमल के इतिहास में ही करना उचित होगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)