मेहता अगरचन्द के घराने का मेवाड़ राज्य में योगदान (भाग – 3)

मेहता शेरसिंह :- मेहता अगरचन्द के वंश में मेहता शेरसिंह हुए, जिनसे महाराणा स्वरूपसिंह ने जुर्माना वसूल करना चाहा। यह ख़बर सुनकर राजपूताने के ए.जी.जी लॉरेंस ने 1 दिसम्बर, 1860 ई. को शेरसिंह के घर जाकर उनको तसल्ली दी।

ए.जी.जी लॉरेंस व पोलिटिकल एजेंट मेजर टेलर द्वारा शेरसिंह का पक्ष लेने के कारण महाराणा स्वरूपसिंह का इन अंग्रेज अफसरों से मनमुटाव हो गया। महाराणा ने शेरसिंह की जागीर भी ज़ब्त कर ली और उनसे 3 लाख रुपए भी वसूल किए।

1861 ई. में महाराणा शम्भूसिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। उनकी नाबालिग अवस्था के कारण रीजेंसी काउंसिल का गठन किया गया, जिसका एक सदस्य मेहता शेरसिंह को भी बनाया गया।

इस समय शेरसिंह के पुत्र सवाईसिंह ने राज्य के खजाने से 3 लाख रुपए निकाल लिए। कुछ समय बाद सवाईसिंह का देहांत हो गया। मेहता शेरसिंह ने अजीतसिंह को गोद लिया।

मेहता पन्नालाल

मेहता शेरसिंह के जिम्मे चित्तौड़ में ठीक तरह से प्रबंध नहीं किए जाने से शेरसिंह को रकम चुकाने को कहा गया। शेरसिंह रकम नहीं चुका पाए और सलूम्बर की हवेली में रहे। उसी हवेली में उनका देहांत हो गया।

रकम वसूली के लिए शेरसिंह की जागीर पूरी तरह से महाराणा द्वारा ले ली गई। मेहता अजीतसिंह को कोई संतान न हुई, तब मांडलगढ़ से मेहता चतरसिंह को गोद लिया गया। चतरसिंह कई वर्षों तक मांडलगढ़, राशमी, कपासन, कुम्भलगढ़ आदि के हाकिम रहे।

मेहता गोकुलचंद्र :- एक समय महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता शेरसिंह को पद से हटाकर उनकी जगह देवीचंद के पौत्र मेहता गोकुलचंद्र को मेवाड़ का प्रधान घोषित कर दिया।

मेवाड़ में रीजेंसी काउंसिल के स्थान पर एक कचहरी की स्थापना की गई, जिसमें मेहता गोकुलचन्द्र को भी महत्वपूर्ण पदभार सौंपा गया। 1866 ई. में गोकुलचन्द्र मांडलगढ़ चले गए।

3 वर्ष बाद 1869 ई. में महाराणा शम्भूसिंह ने गोकुलचन्द्र को मेवाड़ के प्रधान पद का कार्यभार सौंपा। बड़ी रूपाहेली व लांबा ठिकानों के बीच जमीन को लेकर झगड़ा हुआ था, तब महाराणा शम्भूसिंह ने मेहता गोकुलचन्द्र की अध्यक्षता में एक फ़ौज तसवारिया गांव में भेजी थी।

महाराणा शम्भूसिंह के शासनकाल में 1874 ई. में मेहता गोकुलचन्द्र को महकमा खास का कार्य सौंपा गया। कुछ समय यह कार्य करके गोकुलचन्द्र मांडलगढ़ चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।

मेहता पन्नालाल :- ये मेहता अगरचन्द के छोटे भाई हंसराज के ज्येष्ठ पुत्र दीपचंद के द्वितीय पुत्र प्रतापसिंह के पुत्र मुरलीधर के पुत्र थे। एक बार महाराणा ने इनसे 1,20,000 रुपए वसूलने चाहे।

मेहता पन्नालाल

परन्तु कविराजा श्यामलदास की सलाह से महाराणा ने केवल 40 हजार रुपए ही वसूले। मेहता पन्नालाल मेवाड़ के सच्चे हितैषी थे। उनसे ईर्ष्या रखने वाले लोगों ने महाराणा शम्भूसिंह को उनके खिलाफ भड़काया और कहा कि पन्नालाल जादू-टोने करता है।

उस समय महाराणा बीमार भी थे, तो वे उन लोगों की बातों में आ गए और 1874 ई. में पन्नालाल को उदयपुर राजमहल के कर्णविलास महल में कैद कर लिया। मेहता पन्नालाल पर लगे आरोप की जांच की गई, जिसमें वे निर्दोष साबित हुए।

इसी वर्ष महाराणा शम्भूसिंह का देहांत हो गया। महाराणा की दाहक्रिया के समय पन्नालाल को ईर्ष्यालु लोगों ने मारने का प्रयास भी किया, पर असफल रहे। मेहता पन्नालाल अजमेर चले गए।

फिर महकमा खास का काम धीमा पड़ गया, जिससे पन्नालाल की कमी खलने लगी। महाराणा सज्जनसिंह के शासनकाल में पोलिटिकल एजेंट हर्बर्ट ने 4 सितंबर, 1875 ई. को पन्नालाल को उदयपुर बुलाया और महकमा खास का काम उनके सुपुर्द किया।

1 जनवरी, 1877 ई. को प्रसिद्ध दिल्ली दरबार का आयोजन हुआ था। उस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन था। इस दरबार में मेहता पन्नालाल को ‘राय’ की उपाधि दी गई थी।

1880 ई. में महाराणा सज्जनसिंह ने महद्राज सभा का गठन किया, तब मेहता पन्नालाल को भी उसका सदस्य बनाया गया।

महाराणा सज्जनसिंह के शासनकाल के अंत तक मेहता पन्नालाल महकमा खास के सेक्रेटरी के पद पर रहे। कई ईर्ष्यालु लोगों ने पन्नालाल के विरुद्ध महाराणा के कान भरे, लेकिन महाराणा ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।

1884 ई. में महाराणा फतहसिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। इनको महाराणा बनाने में मेहता पन्नालाल का पूरा सहयोग रहा। अंग्रेज सरकार ने पन्नालाल को C.I.E. के खिताब से सम्मानित किया।

1894 ई. में मेहता पन्नालाल ने यात्रा जाने हेतु 6 माह की छुट्टी ली। यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 1918 ई. में मेहता पन्नालाल का देहांत हो गया।

मेहता पन्नालाल ने आजीवन मेवाड़ राज्य की बड़ी सेवा की। इनके पुत्र फतेहलाल हुए, जो महाराणा फतहसिंह के विश्वासपात्र रहे। फतेहलाल के पुत्र देवीलाल हुए। महाराणा फतहसिंह ने देवीलाल को महकमा देवस्थान का हाकिम नियुक्त किया।

मेहता पन्नालाल

इस प्रकार मेहता अगरचन्द के घराने से 4 व्यक्ति मेवाड़ के प्रधान पद पर रहे और राज्य की सेवा की। इस घराने के व्यक्ति कई वर्षों तक मांडलगढ़ के हाकिम रहे और मांडलगढ़ में निर्माण व जीर्णोद्धार कार्य करवाए।

इस घराने ने राज्य विरोधी बगावतों को कुचलने में महाराणा का सहयोग किया व उदयपुर राजमहल में भी विभिन्न कार्यों का सम्पादन किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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